हाय गाइस, वेलकम बैक टू अनदर वीडियो। बालको आज अपन बात कर रहे हैं कक्षा 12वीं बिजनेस स्टडीज चैप्टर नंबर टू प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट की। आज इस चैप्टर को स्टार्टिंग से लेकर एंड तक पूरी तरीके से समाप्त कर देंगे। तो भैया कुर्सी की पेटी को टाइट कर लो और ये चैप्टर सबसे ज्यादा इंटरेस्टिंग भी है और सबसे बेहतरीन तरीके के नंबर भी आपको लाके देने वाला है। चलो बिना समय व्यर्थ किए जल्दी से शुरू करते हैं। लेट्स गेट स्टार्टेड विद द कांसेप्ट ऑफ प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट। वीडियो की शुरुआत करने से पहले बालको अगर अब तक आप लोगों ने हमारी हेल्प बुक नहीं ली है तो जाके ले लेना। डिस्क्रिप्शन में उसका लिंक है। बिजनेस और इकोनॉमिक्स की हर परेशानी का समाधान हो जाएगा। क्योंकि अब इसके साथ फ्री में माइंड मैप्स भी आ रहे हैं। और जिन्होंने ले ली है ज्यादा चौड़ में मत आओ। चैप्टर नंबर टू चुपचाप ओपन करो। चलिए शुरुआत करते हैं। देखो सबसे पहले बात करते हैं कि सर ये जो प्रिंसिपल्स ऑफ मैनेजमेंट है जो चैप्टर का नाम है। ये प्रिंसिपल मतलब क्या है? देखो सिंपल भाषा में बोले तो प्रिंसिपल का मतलब है सच्चाई। क्या है? सच्चाई कोई एक नया बंदा जब भी बिजनेस करता है तो उसको बहुत सारी परेशानी आती है। तो अगर कोई पुराने व्यक्ति से वो राय मशवरा ले ले कि भैया यार तूने ऐसे किया था कैसे होगा तो उसका बिज़नेस थोड़ा सा आसान हो जाएगा। कुछ ऐसी प्रॉब्लम जो वो एक्सपीरियंस आदमी ने कभी जीवन में दे ली है उनका फायदा इसको मिल जाएगा। भाई मैंने मान लो एक नया बिज़नेस शुरू करा है कपड़ों का। तो मैं अगर ऐसे आदमी से राय ले लूं जो पिछले 5 साल से कपड़ों का बिज़नेस कर रहा है तो आने वाली परेशानियों के बारे में थोड़ा सा पहले से तैयार रहूंगा। मुझे पता होगा कि क्या-क्या प्रॉब्लम्स आ सकती हैं। यानी सिंपल भाषा में बोला जाए तो उसका एक्सपीरियंस उसका एक्सपीरियंस मेरी एफिशिएंसी को इंक्रीस कर देगा। इंक्रीस कर देगा। क्योंकि उसने जो जो एक्सपीरियंस लिया है वो मुझे बता देगा। तो मेरी एफिशिएंसी यानी कि वेस्टेज ऑफ रिसोर्सेज जो है उसमें कमी आ जाएगी और बेहतर तरीके से मैं काम कर पाऊंगा। तो यानी कि बिजनेस को चलाने के लिए भी कुछ सच्चाइयां होती हैं। कुछ ऐसे कानून होते हैं जिनको आपको अपने दिमाग में बिठाना पड़ता है। फर्ज कीजिए कि आपके पास काम बहुत सारा है। तो एक कानून है कि भैया कामों को टुकड़ों में बांट दो। हर एक व्यक्ति को एक टुकड़ा दे दो ताकि उससे वो बेहतर काम कर पाए। ये क्या है? ये बेसिक सी राय है। पर बिनेस में इसको कहते हैं प्रिंसिपल्स ऑफ मैनेजमेंट। तो क्या है प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट? दे आर दी स्टेटमेंट। ये वो बातें हैं जो क्या बताती है? फंडामेंटल ट्रुथ सच्चाई बताती है। किस चीज की सच्चाई? बिजनेस करने की सच्चाई बताती है। जो एक्ट करती है एज अ गाइडलाइंस। क्या करती है? एज अ गाइडलाइन। यानी कि भाई देखो ऐसा करोगे तो बेहतर रहेगा। नहीं करोगे तो तुम्हारी इच्छा है। मान लीजिए कि आपने एक नई दुकान खोली। आपके फूफा जी आ गए। कोई लोग पिछली बारी मैनेजमेंट में हलवाई के यहां बैठे थे। वो आ गए। हां भाई क्या करा है तूने? वाह वाह वाह बेटा वाह। क्या दुकान खोली है। अच्छा एक काम कर मेरी बात सुन। यहां पर एक बड़ा सा बोर्ड लगाते हैं। हमारे बच्चे के भाई ने भी दुकान खोली तो उसने बोर्ड लगाया। उसका बिजनेस चल गया। बड़ा सा बोर्ड लगा। यहां ऐसी वसी लगा दे। लाइटेंट वाइट बढ़िया कर दे। ऐसे चमचमाती य चमकनी चाहिए। अरे कांचवांच लगा दे बढ़िया सा। फूफा जी ने राय दी। ये राय क्या है? अगर ये सच्ची राय है, सही राय है तो एक तरीके से प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट है। अब ये आपके ऊपर है कि आप उस राय को कैसे इस्तेमाल करते हो? कितना इस्तेमाल करते हो? करते भी हो या नहीं करते। तो वैसे ही प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट भी जो है वो एक राय है जिसको आप चाहो तो इस्तेमाल करो चाहो तो नहीं करो यानी कि ये गाइडलाइन की तरह मदद करती है। यानी कि आपको किसी प्रॉब्लम में फंस जाओगे तो उसका सशन देने में मदद करती है। किस प्रकार की प्रॉब्लम? मैनेजरियल डिसीजन। यानी कि मैनेजमेंट से रिलेटेड अगर किसी भी परेशानी में हो तो ये प्रिंसिपल आपको बता देंगे कि यार ऐसा कर लो तो शायद आपको फायदा मिल जाए। अभी आपके ऊपर है कि आप ऐसा करते हो, नहीं करते हो या कितना करते हो। तो अगर प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट के कुछ फीचर्स के बारे में बात करें तो काफी सारे फीचर्स हैं इसके। सबसे पहला फीचर ये है कि भ ये जो प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट है ना ये बेसिक एंड जनरल गाइडलाइंस हैं। ये क्या है? बेसिक एंड जनरल गाइडलाइंस है। कोई बड़ी बातें नहीं है। कोई बहुत इंपॉर्टेंट बातें नहीं है। ये बहुत बेसिक बातें हैं। बहुत जनरल बातें हैं। ये आपको सीधे तरीके से चलने की बात बताती है। जैसा अभी मैंने बताया कि बहुत सारे काम से परेशान हो रहे हो। कामों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट दो। आपका काम आसान हो जाएगा। तो कोई बहुत बड़ी बात है। नहीं भैया बहुत बड़ी बात नहीं है। बट ये ऐसी बात है जो आपके लिए काफी फायदे की हो सकती है। तो प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट क्या है? बहुत बेसिक एंड बहुत जनरल गाइडलाइंस है जिनको आप इस्तेमाल करके काम कर सकते हो। समझ में आया? दूसरे फीचर की बात करें तो सेकंड फीचर कहता है भैया कि ये मैनेजमेंट को मदद करती हैं। ये जितनी भी सलाह है, जितनी भी राय है, जितनी भी बातें हैं, जितने भी प्रिंसिपल्स हैं ये बेसिकली क्यों बनाए गए हैं? ये इसलिए बनाए गए हैं ताकि मैनेजमेंट को आसानी हो जाए। देखिए धंधा बहुत सालों से चल रहा है। बरसों से चल रहा है। लोगों ने कुछ करा होगा, गलतियां करी होंगी, फिर उससे सीखे होंगे, फिर गलतियां करी होंगी, फिर उससे सीखे होंगे, फिर गलतियां करी होंगी, फिर उससे सीखे होंगे। तो अगर 2000 साल से बिज़नेस चल रहे हैं तो आज अगर मैं एक नया बिज़नेस कर रहा हूं, तो क्या मैं वापस से 2000 साल पुरानी गलती करूं? नहीं ना? तो मैं वो गलती ना करूं इसलिए प्रिंसिपल जो है बनाए गए हैं ताकि ये आपको मैनेजमेंट में मदद कर पाए। अगर तीसरे फीचर के बारे में बात करते हो तीसरा फीचर है कि भैया ये फ्लेक्सिबल है। ऐसा नहीं है कि आपको पता है देखो इतना ही करना है। काम को छह टुकड़ों में ही बांटो। सातवें टुकड़ों में मत बांटना या पांच टुकड़ों में मत बांटना। छह में बांटो और छह भी ये ये होंगे तो ही काम होगा। नहीं। प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट काफी ज्यादा फ्लैक्सिबल है। ये बस आपको बता देते हैं। बांट देगा तो आसान हो जाएगा। अब ये वो तेरी इच्छा है कि तू उसको दो लोगों के बीच में बांट काम को। चार लोगों के बीच में बांट। 10 लोगों के बीच में बांट। कितना बांट? एक आदमी से 10 काम करवा, पांच करवा। चार करवा या एक ही कर्म। तो ये जो प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट है ये रिजिड नहीं है। यानी कि एज़ इट इज़ नहीं अप्लाई करने होते। ये फ्लेक्सिबल है। आदमी अपनी इच्छा के हिसाब से इनको मॉडिफाई कर सकता है। समझ में आ गया? अगर नेक्स्ट प्रिंसिपल के बारे में बात की जाए तो भैया अगला प्रिंसिपल कहता है कि ये हवा में नहीं बनाए गए हैं। ये बनाए गए हैं बाय प्रैक्टिस एंड। जैसा मैंने बताया हजारों सालों से बिज़नेस चल रहा है। हजारों सालों से तो उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा। उसको अप्लाई करा, सीखा, अप्लाई करा। अगर सेम रिजल्ट मिल रहा है तो कहेंगे कि हां यार ये काम की चीज है। ये काम की चीज है। जैसे अगर मैं बोलूं कि एक आदमी जो है वो अभी-अभी नौकरी पे लगा है और आपको लग रहा है कि ढंग से काम नहीं कर रहा है तो उसको इंस्टेंटली निकालो मत। उसको रोको थोड़े दिन के लिए। उसको पहले यहां थोड़ा सा एडजस्ट होने दो। एक बार अगर वो एडजस्ट हो जाएगा तो उसके बाद देखना कि वो कितना बेहतर तरीके से काम कर पाता है। इसको कहते हैं प्रिंसिपल ऑफ़ स्टेबिलिटी ऑफ़ टेन्योर। कि जो भी आपके पास आदमी आया उसको स्टेबिलिटी दो थोड़ी सी थोड़ा रोको उसको एक दो महीने उसको फ्री में तनख्वाह दे दो कोई बात नहीं है एक बार वो सेटल हो जाएगा फिर वो अच्छा आउटपुट देने लगेगा तो भैया ये कैसे पता लगा लोगों को कि ये प्रिंसिपल है जब उन्होंने देखा कि हां यार रोक रहे हैं तो देखो दो महीने बाद तो अच्छा काम करने लग गया धीरे-धीरे ये काम और बेहतर करने लग गया तो ये कैसे बनाए हैं बाय प्रैक्टिस एंड एक्सपेरिमेंट अगले फीचर के बारे में बात करें तो सर ये कॉज एंड इफेक्ट रिलेशनशिप पे काम करते हैं सर सर क्या होता है ये कॉज एंड इफेक्ट रिलेशन रिलेशनशिप देखो कॉज एंड इफेक्ट रिलेशनशिप का मतलब क्या है? जैसे मैंने बोला कि आपको बीमारी है। कौन सी बीमारी लगाएं? बुखार लगाते सादा सिंपल। आजकल बीमारियों का भी बड़ा खतरनाक मामला है। इसका भी मामला खराब है। थोड़ा सा मुझे एक मिनट। कहां अटक गए? हां जी। कहां पे थे अपन? अपन थे बीमारियों पे। तो आपको एक बीमारी लगाते हैं। कौन सी बीमारी लगाएं? आपको लगाते हैं बुखार। क्या है? बुखार। आपको हो गया बुखार तो आपको आपकी माताजी पिताजी या जो भी है वो क्या बोलेंगे भाई भाई एक गोली ले ले कौन सी गोली ले ले चलो पैरासिटामॉल ले लो पैरासिटामॉल ले ठीक है इससे क्या होगा सुधर जाएगा क्या होगा बुखार सुधर जाएगा समझना ये तो है कॉज और ये है इसका इफेक्ट सिंपल भाषा में समझाने के लिए बता रहा हूं ऐसे समझना कि भाई बुखार है तो अगर ये वाली गोली ले लेगा तो तेरी हालत में सुधार आ सकता है। कोई नहीं बताएगा आपको कि एक गोली से ही सुधार आ जाएगा। हो सकता है किसी को चार गोली लगे, किसी को पांच गोली लगे, किसी को हफ्ते भर का कोर्स लगे और कोई एक दिन में ठीक हो जाए। तो भाई कितनी जल्दी सुधार आएगा वो हम नहीं कह सकते। पर हां अगर बुखार है तो ये काम करने से सुधार आ सकता है। तो देखिए ये है आपकी प्रॉब्लम। ये है हमारा प्रिंसिपल यानी राय और ये है आपका सॉल्यूशन। तो ये कॉज एंड इफेक्ट रिलेशनशिप पे काम करते हैं। यानी कि अगर आपके सामने एक प्रॉब्लम है तो आप हमारा बताया हुआ एक प्रिंसिपल लगाओ तो आपकी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन मिल सकता है। समझ में आ गया? तो ये कहलाता है कॉज एंड इफेक्ट रिलेशनशिप कि अगर आपको परेशानी है तो ये काम कीजिए। आपको बेहतर रिजल्ट मिल सकता है। समझ में आ गया? ठीक है जी? आगे बढ़े? आगे बताइए। तो अगले फीचर के बारे में बात करते हैं। सेकंड लास्ट फीचर तो वो कहता है कि इंप्रोवाइजेशन की रिक्वायरमेंट होती है। देखो हम तो सिर्फ आपको राय देते हैं। आप उसको अपने दिमाग के हिसाब से और अपनी जरूरत के हिसाब से लगाइए और इंप्रोवाइज करिए। मतलब ऐसा नहीं है कि ये रेडीमेड वो खाना नहीं है कि लाया बस कढ़ाई में डाला और पक गया। ये क्या है? ये बस मसाले हैं। आपकी इच्छा है तो नमक तेज करो। आपकी इच्छा है तो नमक कम करो। आपकी इच्छा है तो मिर्ची तेज करो। तो प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट क्या है? ये ऐसे मसाले हैं जिसके अंदर आपको अपना दिमाग लगाना पड़ेगा, इंप्रोवाइजेशन करना पड़ेगा ताकि ये आपकी ऑर्गेनाइजेशन के हिसाब से फिट टुस बैठ जाए। समझ में आया? अगला और अंतिम फीचर के बारे में अगर बात करते हैं तो वो कहलाता है कि ये यूनिवर्सली एक्सेप्टेड है। जनाब जैसे प्रिंसिपल होता है ना परवेसिव है। क्या है? परवेसिव। परवे अरे क्या हो गया? परवेसिव। परवेसिव मतलब रिक्वायर्ड एवरीवेयर हर जगह लगता है। वैसे ये जो प्रिंसिपल है ये यूनिवर्सली एक्सेप्टेड है। ऐसा नहीं है कि आप ही के लिए बिजनेस में चल रहे होंगे। दुनिया के हर बिजनेस में चलेंगे। यहां है, जापान में है, मलेशिया में है, यूएस में है, चाइना में है, कहीं पे भी है। ये प्रिंसिपल अगर आप लगाओगे तो बेहतर काम रहेगा। समझ में आ गया? तो ये प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट के क्या हैं? कुछ फीचर हैं। अगर सिंपल भाषा में आपको समझना है प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट तो ये सोचिए कि आप कहीं घूमने गए हैं। किसी बढ़िया सी जगह घूमने गए हैं और आपने एक टूरिस्ट गाइड कर लिया। अब वो टूरिस्ट गाइड के होने से क्या होगा? आपको सारी जानकारियां मिलेंगी। आप किसी अनइवन अजीब सी सिचुएशन में नहीं फंस पाओगे और आपको अगर कोई भी समस्या होगी तो उसका अमूमन समाधान वो आपको बता देगा। आप उससे भी पूछो ना पास में कोई बढ़िया सा होटल है तो वो भी आपको बता देगा कि यार यह वाला ट्राई कर लो। इसमें ज्यादा बढ़िया है। हां बात है कि उसमें उसका कमीशन होगा। बट हां वो आपको एक राय जरूर दे देगा। तो ये प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट आपके बिजनेस के लिए एक गाइड का ही काम करते हैं जो आपकी परेशानियों के समाधान में वर्क ऑन कर रहे होते हैं। तो चलो बात करते हैं कि जो प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट है इनकी जरूरत क्या है? व्हाट इज द बेसिक इंपोर्टेंस ऑफ प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट? हां जी जनाब बताइए जरा बढ़िया से प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट के इंपोर्टेंस। देखो एक-एक करके समझते हैं क्या-क्या इंपोर्टेंस है। सबसे पहले इंपोर्टेंस की बात करें तो ये आपको डायरेक्शन देते हैं। जैसे टूरिस्ट गाइड का काम क्या होता है? देखिए वहां ऐसा था यहां पर राजा जो है ना मछलियां पकड़ता था। अब यहां जंगल बना दिया गया है। तो ये क्या है? ये आपको डायरेक्शन दे रहा है। वैसे ही अगर बिनेस में कहीं फंस जाओगे तो ये जो प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट है ये आपको डायरेक्शन देंगे कि ऐसा कर लो इस तरीके से आगे बढ़ लो तुम्हारा काम जो है वो बहुत बढ़िया तरीके से हो जाएगा। अगर सेकंड फीचर की बात करें तो ये आपको बेहतर तरीके से एडमिनिस्ट्रेशन करने में मदद करते हैं। सर एडमिनिस्ट्रेशन का मतलब क्या होता है? कोई समझाता नहीं है। बस बता देते हैं। देखो एडमिनिस्ट्रेशन का सिंपल भाषा में मतलब होता है पीछे के बैक एंड के जो काम है ना संभालने वाले। फ्रंट एंड के काम तो हम सबको दिख रहे हैं कि अच्छा ऐसा हो रहा है वैसा हो रहा है। सामान बेच बिक रहा है। पीछे का काम क्या है? सामान को बनाना, सामान के ऑर्डर्स को मैनेज करना। ठीक है? उनकी एंट्री इन्वेंटरी देखना कुछ खराब हो जाता है तो उसको देखना कस्टमर केयर ये सारे बहुत सारे पीछे के काम है। तो बेसिकली ये एडमिनिस्ट्रेशन की कैटेगरी में आ सकते हैं। तो ये आपको एडमिनिस्ट्रेशन करने में बिजनेस को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। क्योंकि ज्यादातर बिनेसमैन इसलिए फेल नहीं होते कि उनकी सेल नहीं आती बल्कि इसलिए फेल होते हैं कि उनसे काम मैनेज नहीं होता। क्योंकि इतना सारा काम होता है। तो ये प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट आपको एक बेहतर तरीके से एडमिनिस्ट्रेशन करने में मदद कर रहे होते हैं। अगर तीसरे फीचर की बात करें तो सर इनका मेन फोकस क्या होता है? ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन ऑफ रिसोर्सेज। भाई प्रिंसिपल बनाए ही इसलिए गए हैं ताकि किसी और के एक्सपीरियंस से आपकी एफिशिएंसी बढ़े। और एफिशिएंसी का मतलब क्या होता है? दो बातें बताई थी। एक थी इफेक्टिवनेस, एक थी एफिशिएंसी। क्या था एफिशिएंसी सर? एफिशिएंसी का मतलब होता है ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन ऑफ़ रिसोर्सेज। तो ये जो प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट है ये बने ही ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन के लिए हैं। ये बने ही इसलिए हैं ताकि आप रिसोर्सेज का वेस्टेज कम करो और बेहतर तरीके से काम को कर लो। ठीक है? अगलेेंस के बारे में बात करें तो सर ये हवा में बात नहीं करते। अपन ने पढ़ा ना कि प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट जो हैं वो क्या है? वो साइंटिफिक डिसीजन पे काम करते हैं। प्रैक्टिस और एक्सपेरिमेंट से बने। तो भैया साइंस के प्रिंसिपल भी तो ऐसे बने। प्रैक्टिस से, एक्सपेरिमेंट से बार-बार सेम चीज को ट्राई करा तो आउटपुट यही आया। तो ये क्या है? ये साइंटिफिक डिसीजन पे फोकस करते हैं। रूल ऑफ़ थंब पे काम नहीं करते। रूल ऑफ़ थंब सर ऐसी ये क्या होता है? रूल ऑफ़ थंब। अरे रूल ऑफ़ थंब का मतलब मेरी इच्छा। अब मैं मालिक हूं। मेरी इच्छा भाई ऐसे काम नहीं करते। ये साइंटिफिक डिज़ पे काम करते हैं कि क्या चीज सही है और जो सही है वही होना चाहिए। जो मालिक ने कह दिया जरूरी नहीं है कि हर बार वही हो। अगले फीचर के बारे में अगलेेंस के बारे में बात करें तो वो है ये सोशल रिस्पांसिबिलिटीज को भी पूरा करते हैं। देखो अपन ने तीन प्रकार के ऑब्जेक्टिव पढ़े थे। कौन-कौन से? ऑर्गेनाइजेशनल, सोशल और तीसरा पर्सनल। ऑर्गेनाइजेशन में प्रॉफिट तो भैया ये प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट, प्रॉफिट-फिट बढ़ाने का काम तो कर ही रहे हैं। ठीक है? सोसाइटी के बेहतर के लिए। तो जितने भी प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट हैं ये ये भी याद रखते हैं कि भैया सोसाइटी का फला हो। क्या हो? भला हो। क्योंकि अल्टीमेटली सोसाइटी का भला होगा। तभी तो हमारा भी भला होगा। तो जो प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट है यह सोशल रिस्पांसिबिलिटी को भी पूरा करते हैं और साथ-साथ पर्सनल रिस्पांसिबिलिटी यानी कि आपके एंप्लाइजज़ के भी फायदे के बारे में बात कर रहे होते हैं। ठीक है? ये ट्रेनिंग एंड डेवलपमेंट पे फोकस करते हैं। देखो एक सिंपल सी बात समझना। अगर आपका एंप्लई है जिसको कुछ नहीं आता। बिल्कुल खड़ा है। कुछ भी नहीं आता उसको। ए भाई क्या आता है तेरे को? कुछ हूं नहीं मालिक जो आप बताते हो तो या तो हां जी करता हूं या ना जी करता हूं। इसके आगे मुझे कुछ नहीं आता। तो ऐसा एम्प्लई आपके किसी काम का नहीं है। एक बहुत बढ़िया कहावत है कि अगर आपको सक्सेसफुल बनना है तो आपको खुद तेज दिमाग का नहीं होना पड़ेगा। आपको अपने इर्दगिर्द आपकी कंपनी में जो लोग हैं ना उनको सबसे शार्प दिमाग का बनाना पड़ेगा। आप खुद तेज दिमाग के हो जाओगे। क्या उखाड़ कुछ नहीं उखाड़ सकते। पर आपके आसपास वाले आपकी कंपनी के लोग अगर तेज दिमाग के होंगे तो आप बस बैठिए। वो सारा काम अपने आप मैनेज कर लेंगे। प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट कहता है कि भैया एम्प्लाइजस की ट्रेनिंग कराओ, इनसे काम करवाओ, इनको इनको नए-नई चीजें सिखाओ, इनका डेवलपमेंट कराओ। इनका विकास होगा तो ये आपको भी बेहतर आउटपुट दे पाएंगे। तो ये सारे प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट है जो कि आपको या ये सारे प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट कीेंस है जो कि आपको समझनी चाहिए। अब सर आप है ना पिछले 10 मिनट से हमें बता रहे तो प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट ये है। प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट ऐसा है। प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट वैसा है। प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट का ये फायदा है। सर कौन है ये प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट? कैसे दिखते हैं ये प्रिंसिपल ऑफ मैनेजमेंट? तो चलो देखते हैं कुछ प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट। तो बेसिकली आपकी पुस्तक के अंदर दो लोग हैं जिनके बारे में आपको समझना है जिन्होंने अलग-अलग प्रिंसिपल दिए हैं। कौन लोग हैं? सबसे पहले भाई आपके पीछे दिख रहे होंगे। इनका नाम है हेनरी फयल। क्या नाम है? हेनरी फयल। और ये जो है ये 1841 में पैदा हुए थे। इनको कहा जाता है फादर ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड थॉट। इन्होंने इन टोटल 14 प्रिंसिपल दिए। कितने दिए भाई? 14 प्रिंसिपल दिए हैं। 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14। ये 14 के 14 प्रिंसिपल आपके दिमाग में फिट होने चाहिए। सर ये 14 याद करने हैं। बिल्कुल भी नहीं। नहीं। आपको ये प्रिंसिपल याद नहीं करने होते बेटा। क्या होता है? आपके ऐसा सवाल आता है। आपको एक बढ़िया सी केस स्टडी दे देंगे और पूछेंगे कि यहां पर कौन सा प्रिंसिपल नहीं लग रहा है या कौन सा प्रिंसिपल लग रहा है। तो अगर आपको इन 14 प्रिंसिपलों का मतलब पता है। क्या पता है सर? मतलब पता है तो आप बेहतर तरीके से काम कर पाओगे। आपको बस ये पता होना चाहिए हां भाई ये वाला प्रिंसिपल लग रहा है। ठीक है? तो ना तो आपको याद करने हैं और ना ही इनका सीक्वेंस फॉलो करना है। हमने कुछ बेहतरीन से लोग देखे हैं। वो क्या करते हैं? भाई साहब हर चैप्टर के शॉर्ट फॉर्म बना देंगे। अरे मेरे को लॉन्ग फॉर्म याद नहीं हो रहे। अब पहले मैं एक्सप्लेनेशन याद करूं, फिर लॉन्ग फॉर्म याद करूं, फिर उसकी शॉर्ट फॉर्म भी याद करूं। पहले दो चीजें नहीं हो रही थी। मेरे से एक चीज और बढ़ा दी। तो आपको कोई शॉर्ट फॉर्म कुछ भी याद नहीं रखना है। आपको बस इनका मतलब समझना है। क्योंकि देखो एक बात याद रखना हम भूलते वो हैं जो याद करते हैं। हम भूलते वो हैं जो याद करते हैं जो समझा जाता है वो कभी भी नहीं भला जाता। तो आपको सिर्फ चीजों को समझना है। याद नहीं करना है। रट्टू तोता नहीं बनना। वो तोता भी बढ़िया काम कर लेता। तुम्हें क्या बनना है? तुम्हें समझदार आदमी बनना है। तुम्हें चीजों को समझना है। बिजनेस रटने से नहीं समझने से किया जाता है जनाब। ठीक है जी। चलो आ जाओ। आज क्या हो रहा है भैया? चलो देखें। ओके। तो फेयल बाबा ने 14 प्रिंसिपल दिए हैं। एक-एक करके अपन सारे प्रिंसिपल को पकड़ते हैं। सबसे पहला प्रिंसिपल सबसे आसान प्रिंसिपल कहलाता है डिवीजन ऑफ वर्क। क्या कहलाता है? डिवीजन ऑफ वर्क। देखो जितना छोटा नाम है इसका उतना ही छोटा इसका काम। अगर आपके पास बहुत सारा वर्क लोड है और आप फंस चुके हो कि मैं क्या-क्या करूं? इकलौती जान बड़ा परेशान क्या-क्या करूं मैं? तो ये कहता है कि भैया एक काम करो ऐसे दो-तीन लोग रख लो। एक सपोर्ट सर्विस में काम कर लेगा। एक डाटा एंट्री में काम कर लेगा। आप जरा प्लानिंग में काम कर लेना। यानी कि ये कहता है कि पूरे वर्क को आप दो चार टुकड़ों में डिवाइड कर दो। हर टुकड़े को बोलो जॉब। क्या बोलो? जॉब और हर आदमी को अगर आप जो जॉब दे रहे हो उसको दो उसकी क्वालिफिकेशन क्वालिफिकेशन एंड स्किल के हिसाब से या नॉलेज के हिसाब से। समझ गए? यानी कि सारा काम तुम्हें करने की जरूरत नहीं है। तुम पूरे काम को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट दो और हर टुकड़े को बोलो एक नौकरी। और जिस आदमी को जो काम आता है उस आदमी के लिए वो नौकरी फिक्स कर लो। यानी कि कोई एडिटर है तो उसको एडिटिंग की जॉब दे दो। ठीक है? तुम्हारे कस्टमर केयर का है तो एक आदमी हायर कर लो जो कस्टमर केयर को संभाल लो। यानी कि सिंपल भाषा में हर आदमी के लिए एक काम डिसाइड करो ताकि तुम फ्री हो जाओ। ठीक है? तो प्रिंसिपल ऑफ़ मैनेजमेंट क्या कहते हैं भैया? पहला वाला कि वर्क शुड बी डिवाइडेड इन स्मॉलर टास्क। छोटे-छोटे टुकड़ों में काम को तोड़ दीजिए। हर आदमी को एक जॉब दीजिए। उसकी कैपेसिटी, उसकी स्किल और उसके क्वालिफिकेशन के हिसाब से। अगर ऐसा करोगे तो आपका बिज़नेस अच्छा चलेगा। और अगर ऐसा नहीं करोगे सारा काम तुम खुद ही करोगे। कर दे रहा हूं। कोई दिक्कत नहीं करते रहो। बहुत सारे गधे आए और चले गए। समझदार बनना है तो काम को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटना है। ये फल बाबा के पहले प्रिंसिपल के अंदर कहा गया है। तो फयल ने जो दूसरा प्रिंसिपल दिया वो क्या था सर? उसने कहा कि जब तुम ये काम बांट दोगे तो एक चीज का बहुत अच्छे से ध्यान रखना वो है अथॉरिटी एंड रिस्पांसिबिलिटी। फल के सेकंड प्रिंसिपल क्या कहते हैं? अथॉरिटी। अथॉरिटी का मतलब होता है पावर टू टेक डिसीजन। क्या है? पावर टू टेक डिसीजन। ताकत जो आपके पास है और रिस्पांसिबिलिटी का मतलब है जिम्मेदारी। जिम्मेदारी फल बाबा कहते हैं कि भैया जिस आदमी को तुम जितनी ताकत दे रहे हो उस आदमी को उतनी ही जिम्मेदारी दे दो। तभी आपकी ऑर्गेनाइजेशन काम कर पाएगी। मान लीजिए कि हमारे ऑफिस में चाय पानी का खर्चा होता है ₹2000 महीना। कितना होता है? ₹2000 महीना मैंने एक आदमी को बोला कि यह खर्चा तू संभालेगा और उसको दिए मात्र ₹500 तो क्या वो यह काम कर पाएगा? कर पाएगा क्या? नहीं साहब कैसे कर पाएगा? ₹500 में 2000 कैसे उधार चढ़ाया? तो देखो ये तो थी अथॉरिटी जो ताकत मैंने उसको दी और ये थी रिस्पांसिबिलिटी कि ये वाला काम तुझे करना है। तो अगर अथॉरिटी कम होगी रिस्पांसिबिलिटी ज्यादा होगी। यानी कि जिम्मेदारी तो है आपको 2000 की और आपको पैसे मिले हैं मात्र 500 तो आप उस अथॉरिटी को कभी भी पूरा नहीं यूज कर पाओगे। कभी उस अथॉरिटी के बलबूते काम नहीं होगा। ठीक है? और अगर उल्टा मान लो चलो मैंने आपको दे दिए ₹5,000 ऑफिस का खर्चा होता है ₹2000। मुझे पता है तो क्या होगा? आपको लगता है वो ₹3000 मुझे वापस देगा। तीन नहीं देगा ढाई देगा। अरे यार वो चाय महंगी हो गई। वो थोड़ा बिस्किट नमकीन भी खा लिए थे हमने। है ना? है ना? ना करेगा। करेगा भाई वो। ठीक है? तो बेसिकली क्या है? अगर आप ज्यादा अथॉरिटी दे दोगे, ज्यादा ताकत दे दोगे तो उस अथॉरिटी का मिसयूज़ करेगा भाई साहब। तो फयल ने क्या बोला कि अगर ऑर्गेनाइजेशन को बेहतर तरीके से चलाना है तो अथॉरिटी मस्ट बी मैच विद रिस्पांसिबिलिटी। जितनी आपकी ताकत है उतनी ही आपकी जिम्मेदारी होनी चाहिए। वो कहते हैं ना पावर कम्स विद रिस्पांसिबिलिटी। यहीं से बना है वो कि ताकत जो है वो जिम्मेदारियों के साथ आती है। अगर आपके पास ज्यादा ताकत है तो आपकी जिम्मेदारी भी ज्यादा होगी। तो अथॉरिटी मीन्स पावर टू टेक डिसीजन एंड रिस्पांसिबिलिटी मींस ऑब्लिगेशन टू कंप्लीट टास्क। फल बाबा ने कहा कि इन दोनों को मैच कर दीजिए। इन दोनों का बैलेंस बना दीजिए। कुछ भी एक ज्यादा हुआ ना तो मिसमैच हो जाएगा सब कुछ। आप इन दोनों का बैलेंस बनाइए। ऑर्गेनाइजेशन आपकी बेहतर चली गई। समझ में आ गया? पहला था काम बांट दो। दूसरा था जिसको जितनी ताकत दी है उतनी ही उसको जिम्मेदारी दीजिए। चलिए तीसरे प्रिंसिपल की बात करते हैं। तीसरा प्रिंसिपल इन्होंने कहा प्रिंसिपल ऑफ़ डिसिप्लिन। अब डिसिप्लिन आप और हम सब जानते हैं क्या होता है। बेसिकली रूल्स को फॉलो करना। बट जब कंपनी की बात आती है तो ये डिसिप्लिन का मतलब जो है थोड़ा सा बदल जाता है। कंपनी के माजने में ये जो डिसिप्लिन है इसका मतलब चेंज हो जाता है और ये रूल्स एंड रेगुलेशन को फॉलो करने के साथ-साथ कमिटमेंट टुवर्ड दी ऑर्गेनाइजेशन की तरफ भी बढ़ जाता है। देखो एक सिंपल बात समझना। अगर आपके एंप्लई खुद को मालिक समझते हैं। यानी कि वो कंपनी को अपनी कंपनी मानते हैं तो आपकी कंपनी बहुत बढ़िया चली गई। पर अगर आपके एम्प्लई सिर्फ सैलरी उठाने आते हैं तो आज नहीं तो कल आपकी कंपनी बंद होगी ही होगी। समझ में आ रही है मेरी बात? तो यहां पर प्रिंसिपल कहता है कि भाई डिसिप्लिन लागू कीजिए। यानी रूल्स एंड रेगुलेशन को फॉलो तो करवाइए पर उसके साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखिए कि आपके एम्प्लाइजस कमिटमेंट में आ जाए। यानी आपके एम्प्लाइज अपना मान के काम करें। अगर वो अपना मान के काम करेंगे तो आपकी ऑर्गेनाइजेशन बहुत बढ़िया चलेगी। मैनेजमेंट और एम्प्लाइज दोनों को प्रॉपर सपोर्ट प्रोवाइड कराइए। आपकी ऑर्गेनाइजेशन बहुत बढ़िया चलेगी। वरना क्या होगा? सैलरी लेने आएंगे, पूरे दिन आराम करेंगे। बिना सैलरी कुछ नहीं होने वाला। ठीक है? चलिए चौथे प्रिंसिपल की बात करें तो चौथा प्रिंसिपल था यूनिटी ऑफ़ कमांड। देखो यूनिटी मतलब एक यूनिटी ऑफ़ कमांड मतलब एक जगह से कमांड। एक जगह से कमांड सर इसका मतलब क्या हुआ? मान लो आप अपनी क्लास से बाहर जा रहे हो। ठीक है? और बाहर चल रहे हो। ऐसे ही घूम रहे हो। सामने आपको मिल जाती है इंग्लिश टीचर। वो बोलती है बेटा एक काम कर स्टाफ रूम में से चौक लेके आ। आप स्टाफ रूम की तरफ जाते हो। आप जा ही रहे हो कि पीटी टीचर मिल जाते। रुक जा भैया। क्या हुआ? एक काम कर स्पोर्ट्स रूम में से एक बॉल लेके आ। अब क्या है? दिक्कत है। दिक्कत ये है कि इंग्लिश मैडम का काम करोगे तो पीटी टीचर नाराज हो जाएंगे। पीटी टीचर का काम करोगे तो इंग्लिश मीडियम नाराज हो जाएगी। तो अगर आपको दो जगह से कमांड मिली है तो एक ना एक तो नाराज होगा ही। दोनों का काम आप एक साथ तो नहीं कर सकते हो। तो यहां पर बिजनेस में क्या है? एक चीज बहुत ज्यादा जरूरी है कि कमांड देने वाला जो व्यक्ति होता है ना वो एक ही होना चाहिए। कमांड देने वाला जो व्यक्ति है वो एक ही होना चाहिए। एन एंप्लई शुड रिसीव एन एंप्लई शुड रिसीव ऑर्डर्स फ्रॉम वन सुपीरियर ओनली एक ही सुपीरियर से एक ही वॉच से आपको कमांड मिलनी चाहिए तब जाके आप उस कमांड को प्रॉपर तरीके से फॉलो कर पाओगे। एक कह रहा है कॉस्ट कम करो। दूसरा कह रहा है क्वालिटी बढ़ाओ। तो कॉस्ट कम करके तो क्वालिटी बढ़ाई नहीं जा सकती। तो आप फंस गए क्या करें? तो यहां पर अगर एक जगह से ऑर्डर आएंगे तो बढ़िया काम आपका चलेगा। अगले प्रिंसिपल पांचव प्रिंसिपल की बात करें तो वो कहता है यूनिटी ऑफ कमांड का भाई यूनिटी ऑफ़ डायरेक्शन कि भाई अभी तक एक आदमी से तो ऑर्डर मिल रहा है पर अगर वो एक ही आदमी बोले कॉस्ट भी कम करो और क्वालिटी भी बढ़ाओ। तो भी तो गड़बड़ हो सकती है। तो यहां पर अगला प्रिंसिपल है कि एंप्लई जो है ना वो एक यूनिफाइड प्लान की तरह काम करने चाहिए। आपका गोल सबका एक ही डायरेक्शन में होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि कोई कुछ कर रहा है, कोई कुछ कर रहा है। कोई किसी और गोल की तरफ जा रहा है, कोई किसी और दो गोल की तरफ जा रहा है। ऑर्गेनाइजेशन का जो कंबाइंड गोल है वो पूरा होना चाहिए। एक ही जगह से ऑर्डर भी मिलना चाहिए और एक ही डायरेक्शन के ऑर्डर भी मिलने चाहिए। तब जाके आपकी कंपनी बढ़िया चलेगी। अगर अलग-अलग डायरेक्शन में जाओगे तो ठन ठन गोपाल हो जाएगा। समझ में आया? चलिए अगले प्रिंसिपल की बात करें। प्रिंसिपल क्रमांक छह तो ये कहता है सबोर्डिनेशन ऑफ इंडिविजुअल इंटरेस्ट विद जनरल इंटरेस्ट। सिंपल भाषा में समझाएं तो ये मान लो ये है एंप्लई का फायदा। ये प्रिंसिपल कहता है कि ऑर्गेनाइजेशन का फायदा यहां होना चाहिए। यानी कि ऑर्गेनाइजेशन अपना फायदा देखे उसमें एंप्लई का भी फायदा आ ही जाए। या एंप्लई अपना फायदा देखे उसमें ऑर्गेनाइजेशन का भी फायदा हो जाए। कैसे होगा सर ये? अरे बहुत आसान है। तुम काम कर रहे हो। अभी मुझे वर्क लोड बहुत ज्यादा है। अभी जैसे अपनी हेल्प बुक जा रही है तो अभी हमें ओवरटाइम काम करना पड़ रहा है। भाई अपन तो क्या है मालिक आदमी तो अपन तो कर लेंगे। ठीक है भाई पूरा पूरा दिन बैठ जाओ। पूरापू दिन बैठ जाओ। अभी कुछ बच्चे बोले थे दो चार बच्चों का आया था कि सर है ना किताब के जो पेज है ना वो निकले हुए मिले हमें। मैंने कहा भाई ऐसे कैसे हो सकता है? तो एक दो से बात हुई। बोले हां सर हुआ। मैंने कहा रुक भाई एक तो पहले हमने उसको बोला कि भाई एक-एक किताब चेक कराओ। तो आज मैं ऑफिस वालों के साथ मैंने कहा चलो बैठो। हमारे पास पूरा 6 7000 किताबों का बंडल है। मैंने एक एक किताब को खोल खोल के चेक करो। एक महीने निकली। हां यार मेहनत और हो गई। तो बेसिकली क्या है जो एंप्लई है वो सिर्फ सैलरी कमाने आएगा। मान लीजिए एक तो सब कुछ कर ले। पर कुछ ऐसा जुगाड़ करते हैं कि वो अपना फायदा देखे। उससे कंपनी का भी फायदा हो जाए तो मजा आ जाए। जैसे 5:00 बजे तक का काम तो हम ठीक है। 6:00 बजे तक का तो हम करा देते हैं। अब मुझे भी बहुत ज्यादा काम है। तो मैंने बोला कि जो आदमी 8:00 बजे तक रुकेगा उसको हम 10% बोनस देंगे। 10% बोनस के लालच में वो आदमी 2 घंटे एक्स्ट्रा रुक रहा है। और क्योंकि अभी मेरा वर्क लोड ज्यादा है तो उसके 2 घंटे ज्यादा रुकने से मेरा भी फायदा हो रहा है। तो हो गया ना दोनों का फायदा एक ही चीज से। वो अपना पैसा कमाने के लिए रुका हुआ है और उसके पैसे कमाने से मेरा फायदा हो रहा है। तो बेसिकली सबोर्डिनेट कर दो इंडिविजुअल इंटरेस्ट को जनरल इंटरेस्ट से। तो ऑर्गेनाइजेशनल इंटरेस्ट शुड टेक प्रायोरिटी ओवर पर्सनल इनिशिएट इंसेंटिव्स या पर्सनल इंटरेस्ट। और इसको कैसे किया जाता है? दोनों को एक ही मिलान में कर दो। समझ में आ गया? अगला प्रिंसिपल। क्या कहता है जनाब? अगला प्रिंसिपल। अगला प्रिंसिपल आपसे कहता है रिमुनरेशन ऑफ़ पर्सन। देखो हम कितना भी इधर-उधर की बातें करें कुछ भी करें। पर ये बात तो बड़ी क्लियर है कि आज अगर आपको दो ऑप्शन मिले। ऑप्शन नंबर एक ₹00 की नौकरी करनी है। सेम काम करना है। और दूसरा ऑप्शन ₹00 की नौकरी करनी है। सेम काम करना है। आप कहां जाओगे? आप जाओगे साहब 50 में। कोई भी आदमी भी इसमें नहीं जाएगा। यानी कि सिंपल भाषा है भैया पैसे कमाने को तो हम काम कर रहे हैं। तो एंप्लई आया है पैसे कमाने को उसको वो अच्छा चीज देनी पड़ेगी। बेहतर सैलरी देनी पड़ेगी। तो प्रिंसिपल कहता है कि भाई मार्केट में जो स्टैंडर्ड चल रहा है ना उस स्टैंडर्ड के हिसाब से अपने एंप्लई को पैसा दो। आपका एंप्लई सैलरी को लेके दुखी नहीं होना चाहिए। क्योंकि अगर वो सैलरी को लेके रोएगा तो वो कभी काम नहीं कर पाएगा। फल बाबा कहते हैं उनको फेयरली एडिक्वेटली पे करो जितने के वो हकदार हैं। अगर मार्केट में उनकी सैलरी मान लो 300 मिल रही है। तुम 20,000 दोगे तो तुम्हारे पास नहीं आएंगे। तुम्हें एटलीस्ट 30 तो देनी पड़ेगी। समझ गए? तो बाजार में जो सैलरी है आप उतनी सैलरी उनको दीजिए। फेयर सैलरी उनको दीजिए। एडिक्वेट सैलरी जितने के हकदार हैं वो सैलरी उनको दीजिए। वो बढ़िया तरीके से काम करेंगे। अगर आप सैलरी में कम ज्यादा करें ना तो छोड़ के भाग जाएंगे दूसरे के पास और तुम्हारी सीक्रेट भी उठा के ले जाएंगे। समझ गए? चलिए अगला प्रिंसिपल। तो प्रिंसिपल नंबर आठ है। फेयर और बाबा कहते हैं कि भैया सेंट्रलाइजेशन और डिसेंट्रलाइजेशन पे फोकस कीजिए। सर मतलब क्या है इन दोनों का? देखो सेंट्रलाइजेशन का मतलब होता है पावर कंसंट्रेशन एट टॉप लेवल या फ्यू हैंड्स। कुछ लोगों के पास ही पावर हो डिसीजन लेने की। और डिसेंट्रलाइजेशन का मतलब होता है सबके पास हो। ध्यान रखना वर्ड बहुत इंपॉर्टेंट है। सबके पास सेंट्रलाइजेशन कहता है कि डिसीजन लेने की पावर सिर्फ टॉप लेवल के पास ही होनी चाहिए। और डिसेंट्रलाइजेशन कहता है कि नहीं नहीं नहीं सबके पास ताकत होनी चाहिए। भाई सब अपने-अपने लेवल पर डिसीजन ले सके। हर हर आदमी को दूसरे से पूछना पड़ेगा। तो फिर ऐसे तो बहुत डिले हो जाएगा ना मामला। अब फल लॉ ने सोचा बात तो सही है। अगर सिर्फ टॉप लेवल के पास ही होगी तो बार-बार चाय पीनी है सर इसके लिए मेरे को ही फोन आएगा सर चाय पीनी है पी लें क्या तो मामला गड़बड़ हो जाएगा मैं मेरा काम करूं या इनका चाय देखूं तो क्या किया जाए फिर बाबा ने कहा एक काम करो जो बहुत इंपॉर्टेंट डिसीजन है फाइनेंस रिलेटेड डिसीजन है प्लानिंग रिलेटेड डिसीजन है इसको तो कंट्रोल सेंट्रलाइज्ड कि भाई ये तो टॉप लेवल ही लेगा और जो बेसिक डिसीजन है चलते फिरते जो इधर-उधर के डिसीजन है उनको क्या कर दो डिसेंट्रलाइज कर दो यानी कि इन दोनों का बैलेंस बना के रखो। कोई भी ऑर्गेनाइजेशन कंप्लीटली सेंट्रलाइज नहीं होगी ना ही कंप्लीटली डिसेंट्रलाइज होगी। जो कोर डिसीजन है उसको सेंट्रलाइज रखो। यानी कि कुछ लोगों के पास ही ताकत दो कि डिसीजन लेना है और क्या लेना है और जो बेसिक डिसीजन है उसको डिसेंट्रलाइज कर दो। यानी कि ठीक है जिसके पास जितनी ताकत है उसके हिसाब से वो ये काम कर पाए। समझ में आ गया? तो चाय के लिए मुझे फोन नहीं करते। हमने ऑफिस में एक आदमी रख रखा है। भैया ₹2000 तक का काम तू संभाल। तो अब वही कर लेता है उसमें से। तो हमने क्या करा? उस डिसीजन को डिसेंट्रलाइज कर दिया। पर किताब में कौन से क्वेश्चन डलेंगे? हेल्प बुक में क्या-क्या आएगा? अपुन बताएगा। तो ये क्या है? ये सेंट्रलाइज फंक्शन हो गया। तो फल ने कहा कि इन दोनों को क्या कर दो? बैलेंस कर दो। आपकी ऑर्गेनाइजेशन बढ़िया चलेगी। अगला प्रिंसिपल प्रिंसिपल क्रमांक नाइन क्या कहता है? सबसे इंपॉर्टेंट प्रिंसिपल है स्केलर चेन। देखो एक चीज समझना। अगर आपको कोई भी प्रॉब्लम है स्कूल में तो आप किससे बात करोगे? सर हम अपने स्कूल के मॉनिटर से बात कर ले रहे हैं। मॉनिटर नहीं हुआ तो क्लास टीचर से कर लेंगे। क्लास टीचर नहीं हुआ तो जो वो होते हैं क्या कहते हैं हेड बॉय वगैरह होते हैं उनसे कर लेंगे एचएमए से कर लेंगे और वो भी नहीं हुई तो सर फिर तो प्रिंसिपल सर है उनसे बात करेंगे अगर आपको छोटी-मोटी दिक्कत है किसी बच्चे से प्रॉब्लम है तो आप किसके पास जाओगे क्लास टीचर के पास जाओगे सीधे प्रिंसिपल सर के पास तो नहीं जाओगे अगर क्लास टीचर से काम नहीं हो रहा है तो प्रिंसिपल के पास जाओगे यानी कि स्कूल में भी हम एक पैटर्न को फॉलो करते हैं इंफॉर्मेशनेशन के लिए क्या करते हैं एक पैटर्न को फॉलो करते हैं इंफॉर्मेशनेशन के लिए और ऑर्गेनाइजेशन ेशन में ये पैटर्न और भी ज्यादा स्ट्रिक्ट हो जाता है। ये कुछ इस प्रकार से चलता है। किस प्रकार से? इस प्रकार सर ये क्या है? ये एक स्केलर चेन है। स्केलर चेन का मतलब सिंपल है। मुश्किल नहीं है। ठीक है? ये मान लो एफ जी एच आई जे के। ये अलग डिपार्टमेंट है। पूरा ये अलग डिपार्टमेंट है पूरा। ये मान लेते हैं प्रोडक्शन का डिपार्टमेंट है। ठीक है? यहां पर वर्कर है, लोअर लेवल है, मिडिल लेवल है। ठीक है? मिडिल लेवल में भी दो मान लो और लेवल आ गए। ऐसे करके है। मतलब अलग-अलग लोग हैं। और ये सेल्स का डिपार्टमेंट है। तो स्केलर चेन क्या कहता है कि अगर वर्कर को प्रोडक्शन रिलेटेड वाले वर्कर को कोई भी बात अपनी पहुंचानी है सेल्स डिपार्टमेंट तक तो ऐसा नहीं है कि वो जाके सीधा बोलेगा। वो अपने हेड को बताएगा। अगर वो सही समझता है इस बात को तो वो अपने को बताएगा। फिर वो अपने को बताएगा। फिर वो अपने को बताएगा। फिर वो टॉप को बताएगा। तो आपको लगता है कि सही बात है तो फिर वो यहां आएगी। फिर यहां आएगी। फिर यहां आएगी। बीच में एक आदमी रह गया। यहां आएगी और फिर यहां आएगी। यानी कि आपकी जो इंफॉर्मेशनेशन होगी वो इस पाथ से फ्लो होगी हमेशा। सर इससे तो बहुत डिले हो जाएगा। बिल्कुल डिले होता है। पर इससे एक फायदा होता है कि अब इस लाइन में आने वाले हर एक मैनेजर को पता है कि इंफॉर्मेशन क्या है। इससे आपके टॉप लेवल का समय भी बचता है और सीधी और सटीक बात आप तक पहुंचती है। कभी-कभी ऐसा होता है ना कि सर हमें प्रिंसिपल सर से कुछ बात करनी है। बहुत जरूरी बहुत है। बहुत इंपॉर्टेंट बात है। अगर बीच में दो लोग डाल दिए जाए। क्लास टीचर ने बोला हां मुझे बता। तो आप उनको बताओगे तो पूरी बात में से 10% 20% बात खा जाओगे। फिर क्लास टीचर के बाद आप किसके पास गए? है वो वाइस प्रिंसिपल के बाद चले गए। सेम बात अगर उनको बताओगे तो 50% खा जाओगे। सिमिलरली अगर आपके क्लास टीचर यह बात वाइस प्रिंसिपल को बताएंगे तो वो काम की बात बताएंगे तो उधर की है ना सर ये वाली बात नहीं बताएंगे। और वाइस प्रिंसिपल अगर प्रिंसिपल के पास जाएगा तो वो और भी ज्यादा काम की बात बताएगा। तो एट द एंड जो टॉप लेवल है ना उसके पास सिर्फ एक लाइन की बात पहुंचती है। फिर वो डिसीजन लेता है हां या ना खत्म। इसके आगे पीछे कोई डिसीजन होता ही नहीं। तो यहां पर स्केलेटन क्या कहती है कि जो भी आपकी इंफॉर्मेशन होगी वो इस पाथ से होकर चलेगी। किससे? इस पाथ से ही होके चल रही होगी। आगे पीछे कहीं भी नहीं जा रही। ये समझ में आ गया? पर सर मान लो कोई बहुत ज्यादा इमरजेंसी आ गई। तो अगर बहुत ज्यादा इमरजेंसी आ गई है तो फल बाबा ने कहा है कि भैया एक पाथ बना दो। इसको बोलते हैं गैंग प्लैंक। क्या बोलते हैं? गैंग प्लैंक। यानी कि इमरजेंसी के समय में आप अपने ही लेवल के आदमी से बात कर सकते हो। दूसरे डिपार्टमेंट में जाके। बहुत ज्यादा इमरजेंसी में अगर आवाग लग गई, प्रोडक्शन में कुछ गड़बड़ हो गई तो वरना आपको ये जो है पाथ फ्लो करना ही करना पड़ रहा होगा। समझ में आ गया? क्लियर हो गया? चलिए। अगला प्रिंसिपल प्रिंसिपल क्रमांक 10। क्या है सर? प्रिंसिपल ऑफ ऑर्डर। सर ऑर्डर मतलब ऑर्डर देना। नहीं भाई। ऑर्डर मतलब ऑर्डर देना नहीं है। ऑर्डर मतलब ऑर्डरली अरेंजमेंट ऑफ मैन एंड मटेरियल। जैसे आपके स्कूल में अगर प्रिंसिपल सर को ढूंढना हो तो कहां मिलेंगे सर? प्रिंसिपल रूम में। अच्छा टीचर्स को ढूंढ रहा हो तो कहां मिलेंगे सर? स्टाफ रूम में है। क्लास 12th कॉमर्स के बच्चे को ढूंढना हो तो कहां मिलेगा सर? क्लास 12th कॉमर्स के रूम में। यानी कि हर व्यक्ति विशेष की एक जगह है। सिमिलरली हर सामान की भी एक जगह है। तो प्रिंसिपल यही कहता है कि बेसिकली हर व्यक्ति की और हर सामान्य की एक स्पेसिफिक जगह होनी चाहिए ऑर्गेनाइजेशन में ताकि उस चीज को या उस व्यक्ति को ढूंढने में समय व्यर्थ ना हो। अगर सोच के देखो कोई प्रिंसिपल रूम ही नहीं है। तो आप पूरे स्कूल में ढूंढते रहो। प्रिंसिपल सर कहां गए? अरे अभी यहां पाए गए थे। यहां से निकले थे। ऐसा ही होता रहेगा फिर। ठीक है? पर उनकी एक जगह है तो आपको पता है कि आज नहीं तो कल मतलब अभी नहीं तो 10 मिनट बाद सही। वो यहीं इसी रूम में आ रहे होंगे। समझ गए? सो व्हाट इज प्रिंसिपल ऑफ़ ऑर्डर? एवरीथिंग मैन एंड मटेरियल शुड बी इन इट्स प्रॉपर प्लेस। ताकि डिले ना हो, कंफ्यूजन ना हो और हर चीज के लिए आपको पता हो कि वो चीज कहां मिल रही होगी। एग्जांपल के रूप में ये फाइलें यहां मिलेंगी। मान लो पिछले साल की है, ये करंट ईयर की है। ठीक है? तो ये सारी चीजें हैं। इसमें के अंदर आपके कुछ और डॉक्यूमेंट रखे हैं। पहले से पता है कि किस में क्या रखा है। तो उसको ढूंढने में समय व्यर्थ नहीं होगा। प्रिंसिपल नंबर 11 क्या है भैया फल बाबा फल ने कहा इक्विटी भैया इक्विटी होना बहुत जरूरी है इक्विटी मतलब इक्वल एंड जस्ट ट्रीटमेंट इक्वल एंड जस्ट ट्रीटमेंट चाहे पुरुष और महिला का हो या फिर मैनेजमेंट और एंप्लई का हो टॉप और मिडिल का हो भैया इक्वल ट्रीटमेंट होना चाहिए मतलब सबकी बात सुनी जाएगी और सबकी बात पे सही तरीके से डिसीजन लिया जाएगा ऐसा नहीं कि मैनेजमेंट है तो रैप मार दिया नहीं यार वो नहीं कर सकते यार ठीक है? आपकी गलत बात को भी सही मान लें। नहीं होगा ये काम। तो क्या कहते हैं? फेयर एंड क्र काइंड ट्रीटमेंट टू एम्प्लाइज टू बूस्ट देयर मोरल एंड मोटिवेशन। उनके मोरल को और उनके मोटिवेशन को बढ़ाने के लिए आप उनसे सही और सब भी तरीके से व्यवहार करो। ऐसा नहीं है वो आपके एंप्लई है तो आपने उनको खरीद लिया है पूरी तरीके से कि बदतमीजी से बात करोगे। सही तरीके से बात करो तो आपके एम्प्लई लंबे चलेंगे। नहीं करोगे तो फिर तो जाना ही है उनको। चलिए अगला प्रिंसिपल नंबर 12। इसके बारे में अपन पहले भी बात कर चुके हैं। स्टेबिलिटी ऑफ टेन्योर ऑफ पर्सोनल। देखो क्या है हम लोग है ना केवी से हैं। मैं केवी से हूं। तो हमारे यहां ना ट्रांसफर वगैरह का कांसेप्ट काफी चलता था। टीचर चले गए। ठीक है? और 20 सेशन में कोई बच्चा आ गया सर कहां से? किसी और शहर के केवी से उसके पिताजी का ट्रांसफर हो गया तो वो यहां आ गया। तो हमने इस प्रिंसिपल को बड़ा नजदीक से समझा है। क्या होता है? जब भी कोई बच्चा जैसे कि जिसके तुम में से अगर किसी के पिताजी जो हैं उनका फ्रीक्वेंट ट्रांसफर वगैरह होता है तो तुम उस चीज को फील करोगे। जब भी किसी नए स्कूल में जाते हैं तो 10 दिन 15 दिन थोड़ा हिचकि जाते हैं। अजीब लगता है यार यहां क्या है? यहां पुराने में तो ऐसा नहीं होता था। है ना? फिर धीरे-धीरे किसी एक से बात करते हैं। हां हां तू कहां रहता है? मैं यहां रहता हूं। अच्छा मैं भी इधर धीरे-धीरे बातें होती है। फिर दो महीने बाद और बता कौन पुराना कौन? नहीं यार मैं तो जानता ही नहीं। अरे यार अपना तो यही बढ़िया है। ऐसा हो जाता है ना। वो कब हुआ? जब आपको थोड़ा समय दिया गया कि आप ठीक है आप बैठिए और आराम से थोड़ा अपना टाइम लीजिए। टेक योर टाइम इजीली। टेक योर टाइम। अपना समय लो और आराम से जो है एडजस्ट हो जाओ। तो क्या होगा? एकद महीने के अंदर आप पूरी तरीके से रन जाओगे। फल ने भी यही बोला कि जब भी किसी एंप्लई को आप ऑर्गेनाइजेशन के अंदर लाते हो तो एक बात को याद रखिएगा कि आते ही उससे प्रोडक्टिविटी की उम्मीद मत कीजिए। आप उसको लाइए थोड़े दिन रुकिए। थोड़ा समय लगेगा उसको महीना 2 महीना उसको एडजस्ट होने में और एकद महीने में वो अच्छा आउटपुट दे जाएगा। पर अगर आप पहले दिन से आउटपुट करेंगे कि नहीं नहीं यार चार दिन हो गए इसको रखे हुए काम नहीं कर रहा निकाल दो तो फिर वो जिंदगी भर टपका ही खाता रहेगा। कभी भी वो ढंग से काम नहीं कर पाएगा। तो स्टेबिलिटी ऑफ़ टेन्योर ऑफ़ पर्सनल क्या है? स्टेबिलिटी मतलब रोकना। टेन्योर मतलब काम करने का समय पर्सनल का एक आदमी का। ठीक है? तो उसके फ्रीक्वेंट ट्रांसफर या टर्मिनेशन करोगे तो वो कभी भी आउटपुट नहीं दे पाएगा। आपको उस चीज को अवॉइड करना चाहिए। उसको जॉब सिक्योरिटी आपको देनी पड़ेगी तभी वो बेहतर काम कर पाएगा। ठीक है जी। अगले प्रिंसिपल की बात करें। सेकंड लास्ट प्रिंसिपल फल बाबा का तो वो कहता है प्रिंसिपल ऑफ़ इनिशिएटिव। देखो सेल्फ एफर्ट। मैंने कहा कि अगर आपके एम्प्लाइजस का कमिटमेंट नहीं होगा आपके ऑर्गेनाइजेशन के थ्रू तो अच्छा काम नहीं होगा। और कमिटमेंट कैसे पता लगता है आपको? जब वो आपको भी रोकते हैं। आज हमारी टीम में कुछ ऐसे हैं मतलब अब तो सभी हो गए हैं ऐसे। अगर उनको लगता है कि मैंने कुछ बोला है कि ऐसा कर लो और वो हेल्थ के लिए सही नहीं है। हेल्थ मतलब कंपनी के हेल्थ के लिए गुडविल के लिए अच्छा नहीं है। तो वो हमें रोक देते हैं। सर मत करो। समझ रहे हो? वो मेरे को रोक देते हैं। मैं सैलरी दे रहा हूं उनको। मेरे दिमाग पे चल रही है कंपनी। फिर भी वो मेरे को रोक देंगे। क्यों रोकेंगे भाई? क्योंकि उनको ऐसा लगता है कि इस कंपनी में वो भी मालिक है जो कि एक तरीके से सही भी बात। तो अगर आपके एंप्लई के पास इतनी शक्ति है कि वो अपना इनपुट दे सकता है क्योंकि एट दी एंड वही लोग बात करते हैं। एट दी एंड आपके एंप्लई ही कस्टमर से जुड़े हुए हैं। तो अगर आपकी कंपनी में वो एंप्लई आपको इनिशिएटिव दे सकता है। कुछ अपना दिमाग बता सकता है। अपना सजेशन दे सकता है तो उससे बेहतर कुछ भी नहीं होगा। तो फल ने बोला कि लोगों से सजेशन मांगो। और एम्प्लई से सजेशन मांगो। वो सजेशन देते हैं और अगर उनका सजेशन सही लगता है आपको तो उनको रिवॉर्ड भी दो ताकि वो बेहतर सजेशन भी दे पाए और आपको ग्राउंड लेवल रियलिटी का भी पता लग पाए। ठीक है? उनको लगेगा कि हां भाई हमने कुछ किया है। ठीक है जी। अंतिम प्रिंसिपल फेवर बाबा का। आखिरी प्रिंसिपल कहता है आई नहीं चलेगा। वी चलेगा। क्या चलेगा? आई नहीं चलेगा। वी चलेगा। आई शुड बी रिप्लेस्ड बाय वी। यानी कि मैं कर रहा हूं। नहीं हम कर रहे हैं। मैं नहीं कर रहा हूं। हम कर रहे हैं। ठीक है? तो फेयरल टीम वर्क और यूनिटी पे बहुत ज्यादा फोकस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भैया टीम वर्क से ही काम होगा। आप इकलौते कुछ नहीं कर पाओगे। लोगों को क्यों कहा सबको भगा दो फिर? अगर आपको लंबे रेस का घोड़ा बनना है तो आपको सबको साथ में लेके भागना पड़ेगा। फल ने कहा कि टीम वर्क लाइए, यूनिटी लाइए तब जाके काम होगा। एक लकड़ी को तोड़ोगे टूट जाएगी। एक साथ 100 लकड़ियों को एक के ऊपर एक रख के तोड़ के देख लो। हिम्मत नहीं है तुम्हारी तोड़ने की क्योंकि एक लकड़ी दूसरे को बचाएगी। उसी प्रकार से अगर आप एक टीम बिल्ड अप कर लेते हो तो एक आदमी की गलती दूसरा सुधार देगा। आपकी ऑर्गेनाइजेशन कभी भी डिफेक्ट में नहीं जाएगी और बहुत बढ़िया तरीके से आपकी ऑर्गेनाइजेशन काम करेगी। तो एंप्लाइजस मस्ट सी देमसेल्व एज अ पार्ट ऑफ टीम। एम्प्लई को लगना चाहिए कि हम जो है एक टीम के पार्ट हैं जो एक साथ काम कर रहे हैं किसी चीज को बेहतर बनाने के लिए। समझ में आ गया? क्लियर है? चलिए तो ये फयल मामा ने टोटल 14 प्रिंसिपल दिए थे। इनको अपन ने समझ लिया। अब जब फयल ने 14 दिए हैं तो एक व्यक्ति और आए। बोले हम भी देंगे भाई साहब। कौन आए? ये आए। इनका नाम था एफ डब्ल्यू टेलर। का एफ डब्ल्यू टेलर। 1856 में ये पैदा हुए। 41 में 56 में 15 साल बाद। ठीक है? इनको कहा जाता है फादर ऑफ़ साइंटिफिक मैनेजमेंट। सिंपल भाषा में बोले तो इन्होंने कहा कि अपनी इच्छा से कुछ मत करो। साइंस लगाओ। साइंस मतलब लॉजिक लगाओ। तो हम कह सकते हैं कि ये फादर ऑफ साइंटिफिक मैनेजमेंट मतलब फादर ऑफ लॉजिकल मैनेजमेंट भी है। क्योंकि ये कहते हैं कि हर चीज में लॉजिक लगाइए। अपनी इच्छा से कुछ भी मत करो। रूल ऑफ थंब मत करो। अपनी इच्छा से मत करो। लॉजिक पे फोकस करो। साइंस पे फोकस करो। ठीक है? इन्होंने कहा कि साइंटिफिक मेथड से अप्लाई कीजिए। मैनेजेरियल प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने के लिए। मैनेजमेंट रिलेटेड प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए लॉजिकल एक्सप्लेनेशन का यूज़ कीजिए ना कि किसी के कहने पे आइए। इन ये भी प्रिंसिपल देना शुरू कर गए। अब इन्होंने जो है 14 प्रिंसिपल नहीं दिए। इन्होंने दिए हैं मात्र चार प्रिंसिपल। कितने प्रिंसिपल? चार प्रिंसिपल। बहुत आसान-आसान चार प्रिंसिपल है। पहला प्रिंसिपल है साइंस नॉट रूल ऑफ थंब। मेरे साथ बोलो। साइंस नॉट रूल ऑफ़ थंब। साइंस लगाओ रूल ऑफ़ थंब मत लगाओ। इन्होंने कहा कि मैनेजमेंट में कोई सा भी अगर आपको डिसीजन लेना है। तो हर एक डिसीजन के पीछे लॉजिक होना जरूरी है। मालिक ने कह दिया ऐसा होना चाहिए। इसलिए नहीं होना चाहिए। अगर सही में ये तरीका सबसे सही है तो ही होना चाहिए। समझ में आया? तो अकॉर्डिंग टू दिस वर्क शुड बी डन यूजिंग साइंटिफिक मेथड नॉट बाय गेस वर्क। किसी के ने कहा कि ऐसा करके देख लेते हैं या ट्रेडिशन या ट्रायल एंड एरर कर लो ना करने में क्या जा रहा है। ऐसे नहीं होना चाहिए। बहुत सोच समझ के साइंटिफिक तरीके से काम होना चाहिए। तो एव्री टास्क शुड बी सिस्टमैटिक टेस्टेड एंड प्रोड्यूस टू इंप्रूव एफिशिएंसी एंड इफेक्टिवनेस। ठीक है? काम समय पर होना चाहिए और एफिशिएंसी आनी चाहिए। ऐसे तरीके का इस्तेमाल आप करेंगे। मालिक के कहने से कुछ भी नहीं होगा। दूसरे प्रिंसिपल को जो इन्होंने लेकर आए उसको क्या कहते हैं भैया? उसको कहते हैं हार्मोनी नॉट डिस्कॉर्ड। मैंने पहले चैप्टर में हार्मोनी का मतलब समझाया तो वापस लिख रहा हूं। यहां पे लिखना हार्मोनी जिससे किसी को हार्मकोनी वो कहलाता है हार्मोनी यानी सिंपल भाषा में मेलजोल बढ़ाओ और बढ़िया तरीके से काम करो। ऐसा लड़ झगड़ के काम नहीं करना है तुमको। ठीक है? हार्मोनी नॉट रिस्क। लड़ाई नहीं करनी है। हार्मोनी मिलजुल के काम करना है। ठीक है? प्रेम भाव से काम करना है। लड़ झगड़ के काम नहीं करना है। तो टेलर बाबा का साइंटिफिक प्रिंसिपल क्या था? इन्होंने कहा कि एम्प्लई जो है देखो फयल जो थे ना वो मैनेजमेंट रिलेटेड बता रहे थे। ये फैक्ट्री पे आ गए। अब ये फैक्ट्री रिलेटेड बता रहे हैं कि एम्प्लई जो काम कर रहे हैं ना कुछ ऐसा करो कि एंप्लई जो है वो एक दूसरे से कमपीट ना करें। साथ में मिलके काम करें। बढ़िया रहेगा। ठीक है? हारमोनियम से काम करें। और तीसरा प्रिंसिपल इसी का भाई है। बोले साथ में तो काम करें पर अकेले ना करें। यानी बिना लड़े तो काम करें और साथ-साथ में मिलजुलकर भी काम करें। दोनों एक ही बात है। थोड़ा सा अलग है। क्या अलग है? हार्मोनी नॉट डिस्कर्ड मतलब लड़ाई नहीं करनी है। और इसमें इंडिविजुअलिज्म नहीं लाना है। अकेले नहीं करना। ऐसा नहीं कि तुम लड़ाई नहीं कर रहे हो पर अकेले-अकेले कर रहे हो। नहीं सबके साथ मिलके काम करो। ठीक है? तो लड़ाई नहीं कर रहे हो पर सबके साथ मिलके तो कर रहे हो। तो कोपरेशन से काम कीजिए। इंडिविजुअलिज्म मत लगाइए। अलग-अलग काम नहीं करना है। कोपरेशन से मिलजुल के काम करो। बढ़िया रहेगा। एक्सटेंशन है हार्मोनी और नॉट और डिस्कर्ड का। ठीक है? आपका फोकस किस पे है? टीम वर्क पे। जो वो होता है ना स्पिरिट डीकॉप्स सेम यही है। आई को हटा दो वी से। ठीक है? तो मैनेजर मस्ट एनकरेज सजेशन, मेंटेन ओपन कम्युनिकेशन। आपस में बात कीजिए एंड अवॉइड स्ट्र्राइक्स एंड अननेसेसरी डिमांड। ठीक है? मैनेजमेंट और वर्कर्स आपस में मिलजुल के काम करें, लड़ाई भी ना करें और अकेले-अकेले भी नाकाम करें। चौथा प्रिंसिपल बड़े काम का है। वो कहलाता है डेवलपमेंट ऑफ वर्कर्स टू द ग्रेटेस्ट एफिशिएंसी इन प्रोस्पेरिटी। कि वर्कर्स का डेवलपमेंट कीजिए, विकास कीजिए। किस हद तक टू द ग्रेटेस्ट एफिशिएंसी जितना आप बेहतर कर सकते हो और प्रोस्पेरिटी। मतलब उनको इतना शानदार बना दो कि उनको भी लगे यार मैं यहां आया था भूजू सा और यहां इस कंपनी में आके मैं कितना बढ़िया बन गया। मैं सब कुछ सीख लिया है तो वो आपकी इज्जत भी करेगा और आपके साथ रुका भी रहेगा क्योंकि उसको लगेगा कि यहां पर मुझे नई-नई चीजें सीखने को मिलती है। तो टेलर बाबा ने इन टोटल ये चार प्रिंसिपल दे दिए। दे के वो घर जाके सो गए। अब जब सुबह उठे तो पता लगा कि यार फेयल के 14 हैं। हमारे चार हैं। अब नए प्रिंसिपल भी नहीं दे सकते। नाम खराब हो जाएगा ना। बोले यार क्या है ये कल तक चार थे। आज पांच हो गए। फिर छह हो गए। फिर सात हो गए। मतलब यह मजाक चल जाएगा। तो यार बोले क्या करें? तो फल बाबा ने कहा कि चलो हमने प्रिंसिपल दे दिए। अब हम टेक्निक देते हैं। क्या देते हैं? अब हम अलग-अलग जुगाड़ देते हैं। टेक्निक देते हैं। सर ये टेक्निक और प्रिंसिपल में फर्क क्या है? ऐसा समझ ले प्रिंसिपल जो है ना वो सच्चाई बता रहे हैं। और टेक्निक कह रहा है कि काम करने का तरीका क्या होना चाहिए? इन टोटल करीब सात आठ टेक्निक जो है वो टेलर बाबा ने दी है। एक-एक करके पढ़ते हैं। पहली टेक्निक थोड़ी बड़ी है। बाद की तो सारी एजी है। तो पहली टेक्निक क्या है? जरा आइए। पहली टेक्निक है फंक्शनल फोरमैनशिप। ध्यान से समझना। बिल्कुल अलग बिल्कुल शानदार है। फंक्शनल फोरमैनशिप। फयल ने बोला फल क्या? टेलर भाई ने बोला कि यार अगर तुम फैक्ट्री में परेशान हो रहे हो कि तुमसे काम नहीं हो रहा है, नहीं संभल रहा है। तो इस टेक्निक का इस्तेमाल करो। ये टेक्निक कहती है क्या कहती है? ध्यान से समझेंगे। ये टेक्निक भैया कहती है कि आपकी जो पूरी कंपनी है, जो पूरी ऑर्गेनाइजेशन है उसको दो टुकड़ों में बांट दीजिए। एक हो गई प्लानिंग डिपार्टमेंट, एक होगा प्रोडक्शन डिपार्टमेंट या ऑपरेशनल डिपार्टमेंट। एक डिपार्टमेंट एक डिपार्टमेंट बनाइए जो सिर्फ प्लान करेगा और एक जो है उस प्लान पे एग्जीक्यूशन करेगा। ऐसे दो डिपार्टमेंट बांट दिए। और हर डिपार्टमेंट के अंदर इन टोटल चार-चार हेड बनाइए। कितने हेड बनाइए? चार-चार हेड बनाइए। प्लानिंग में भी ये चार हेड होंगे। ऑपरेशन में भी ये चार हेड होंगे। याद रखिएगा वर्कर्स इनके नीचे हैं। उन्होंने कहा वर्कर को इनके नीचे रखिए। ठीक है? अब ये इसके नीचे वर्कर हैं। इसके नीचे वर्कर हैं। इनके नीचे सबके नीचे वर्कर्स हैं। पर क्या बोला गया कि भैया जो आपकी फैक्ट्री है उसमें अगर आपको प्रॉब्लम आ रही है तो दो डिपार्टमेंट बना दीजिए। एक प्लानिंग है, एक ऑपरेशनल है। प्लानिंग के अंदर चार हेड रखिए और ऑपरेशनल के अंदर चार हेड रखिए। चारों हेडों को देखें सर क्या काम करते हैं? कैसे काम करते हैं? ठीक है? एक-एक करके समझते हैं। सबसे पहले पकड़ते हैं इंस्ट्रक्शन कार्ड क्लर्क। देखो पहले अपन पढ़ रहे हैं प्लानिंग डिपार्टमेंट के हेड। यानी कि ये लोग काम कुछ नहीं करेंगे। सिर्फ प्लान करेंगे। क्या करेंगे? ये सिर्फ प्लान करेंगे साहब। इंस्ट्रक्शन कार्ड क्लर्क ये क्या करते हैं? इंस्ट्रक्शन देने का काम करते हैं कि भैया काम कैसे होगा? कब होगा? किस प्रकार से होगा। ठीक है? ये सिर्फ प्लानिंग डिपार्टमेंट में इंस्ट्रक्शन देंगे साहब। एक समझाएगा कैसे होना है, काम क्या होना है। दूसरे हैं रूट। किस तरीके से काम होगा? पहले ये करना है, फिर ये करना है, फिर ये करना है। तो एक रूट डिसाइड कर लें ताकि एफिशिएंसी आ जाए। होता है ना कि भाई पहले ये कर लोगे, फिर दूसरा काम ये करना, फिर तीसरा काम ये करना। तो क्या है? समय खराब नहीं होगा। ठीक है? जैसे कूरियर में होता है ना कि भाई पहले एक एरिया पकड़ लो। इस एरिया में डिसाइड कर लो कि हां कहां-कहां पे कूरियर देना है। तो ऐसे चलना कि तुम्हें वापस घूम के आने की जरूरत ना पड़े। तो ये क्या करते हैं? रूट डिसाइड करते हैं। तीसरा टाइम एंड कॉस्ट क्लर्क। इनका काम क्या होता है? कितना टाइम लगना है एक काम को करने के लिए? कितना कॉस्ट लगना है, खर्चा लगना है ये आप डिसाइड करो। एक स्टैंडर्ड टाइम और स्टैंडर्ड खर्चा डिसाइड कर लो। याद रखिए खुद कुछ नहीं कर रहे हैं। ये सिर्फ डिसाइड कर रहे हैं। प्लानिंग कर रहे हैं। और चौथा डिसिप्लिनरियन जो बेसिकली डिसिप्लिन मेंटेन करने में जो है काम कर रही है कि ये सब चीजें कि काम के थ्रू होनी चाहिए। ठीक है? अब इन चारों ने प्लानिंग कर ली। अब बात करते हैं ऑपरेशनल डिपार्टमेंट या एग्जीक्यूशन डिपार्टमेंट। ये फैक्ट्री लेवल पे काम करेंगे। इनमें सबसे पहले आता है गैंग बॉस जो सारे रिसोर्सेज जुगाड़ने का काम करेगा। ये आना है तो कहां से आना ये आना है तो कहां से आना है। ये आना है तो कहां से आना है? ये सारे रिसोर्सेज इकट्ठे करेगा। दूसरा स्पीड बॉस ये इंश्योर करेगा कि इस भाई ने जो टाइम डिसाइड किया है उस टाइम के अंतर्गत काम हो रहा है। इसने बोला कि अगर एक दिन में इतना बनना चाहिए तो ये डिसाइड करेगा कि हां बन रहा है फैक्ट्री लेवल पे। तीसरा रिपेयर बॉस कि अगर कोई मशीन खराब हो जाती है तो इसको पकड़ना है। बस और ये आपका काम कर देगा। ऐसा एक आदमी रख लो। चौथा इंस्पेक्टर जो कि क्वालिटी कंट्रोल के ऊपर काम करेगा। किसके ऊपर? क्वालिटी कंट्रोल के ऊपर काम करेगा। क्वालिटी को मैनेज करने का काम करेगा। तो पहला क्या दिया है इन्होंने टेक्निक? कि अगर आप परेशान हो रहे हो फैक्ट्री पे तो दो डिपार्टमेंट बना दो। प्रोडक्शन और ऑपरेशनल। प्रोडक्शन क्या? प्लानिंग और ऑपरेशनल। प्लानिंग डिपार्टमेंट में चार हेड ये रहे और ऑपरेशनल में चार हेड ये रहे। इनको काम थमा दो। इनके नीचे वर्कर डाल दो। तुम्हारा काम बढ़िया हो जाएगा। ठीक साहब? समझ गए? ठीक है? तो ये थी इनकी पहली टेक्निक। पहली टेक्निक ये थी जो परेशान कर रही थी। दूसरी टेक्निक के बारे में बात करें तो दूसरी टेक्निक बड़ी सिंपल है। टेक्निक का नाम है स्टैंडर्डाइजेशन एंड सिंपलीफिकेशन ऑफ़ वर्क। देखो स्टैंडर्डाइजेशन का मतलब है हर चीज का एक स्टैंडर्ड सेट कर दो। जैसे आपने देखा होगा आप कभी फोन लेने जाओ तो आप डिस्प्ले में एक पीस देखते हैं। आपके डब्बे के अंदर जो पीस है वो चला के देखा है? कभी? 90% केसेस में हम वो चला के नहीं देखते। बट डिस्प्ले में सेम मॉडल का पीस देख के हम उठा के ले आते हैं। क्योंकि हमें ये भरोसा है कि जो स्टैंडर्ड प्रोडक्ट या जो स्टैंडर्ड इसका है सेम टू सेम टच फील से लेकर के क्वालिटी भी डब्बे के अंदर भी वही मिलेगी। ऐसा क्यों है? क्योंकि फोन बनाने वाली कंपनी हर एक मॉडल को बनाने के लिए एक स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करती है। ये टेलर बाबा ने दिए हुए हैं। क्या कहना है? इन्होंने कहा है कि मटेरियल टूल मेथड हर चीज का एक फिक्स स्टैंडर्ड होना चाहिए कि ये ऐसे ही होगा और इतनाइतना ही करना है ताकि काम जो हो आसान हो। दूसरा इन्होंने बोला सिंपलीफिकेशन ऑफ़ वर्क कर दो भाई साहब। सिंपलीफिकेशन ऑफ़ वर्क का सबसे अच्छा एग्जांपल है आपका McDonald कौन है? Macd है भैया। अब McDonald क्या करता है? McDonald चाहे तो क्या चाउमीन नहीं बेच सकता? पास्ता नहीं बेच सकता, डोसा नहीं बेचता। सब बेच सकता है पर वो बेचता सिर्फ बर्गर है। उसने इस प्रिंसिपल को अप्लाई करा है कि हम बहुत ज्यादा वैरायटी नहीं रखेंगे। कम वैरायटी रखेंगे। सिंपलीफाई कर देंगे काम। 10 वैरायटी रखो और 10 में मास्टर बन जाओ। 200 वैरायटी रखेंगे चलेगी वही 810। बाकी सब बस रख रखी है नाम के लिए। तो आप अच्छी पोजीशनिंग नहीं बना पाएंगे। तो क्या बोला टेलर बाबा ने? सिंपलीफाई कर दो काम को। अननेसेसरी डवर्सिफिकेशन को कम कर दो। जूस वाली दुकान पर देखो एक जूस वाला होता है 200 तरीके के जूस बेच रहा है। एक जूस वाला 10 तरीके के बेच रहा है। 10 वाले की क्वालिटी ज्यादा अच्छी मिलेगी क्योंकि 200 वाले को कॉस्ट भी मैनेज करनी पड़ेगी। चीजें सड़ भी जाएंगी और साथ-साथ में सब खिचड़ा कर देगा। वो मिला मिलू देगा सब कुछ। है ना? इसी में ये और इसी में वो कर देगा वो। ठीक है? तो सिंपलीफिकेशन पे काम करना है। फिर टेलर बाबा ने क्या बोला? स्टैंडर्डाइज कर दो और सिंपलीफाई कर दो। तीसरी चीज तीसरा कांसेप्ट जो टेलर लेके आए वो था फटीग स्टडी। फटीग का मतलब रेस्ट इंटरवल। फटीग का मतलब क्या होता है? रेस्ट इंटरवल। जैसे आपने कभी सोचा है कि आपके स्कूल में एक ही बार क्यों इंटरवल होता है? दो-दो बार क्यों नहीं होता? यही है उसके पीछे। इनहीं का लॉजिक चलता है। तो टेलर बाबा ने कहा कि भैया रेस्ट इंटरवल जब आप आदमी को दो तो अपनी इच्छा से मत दो। इस पे प्रॉपर स्टडी करो। कैसा काम कर रहा है, क्या काम कर रहा है, कब वो थक जाता है और कब उसको रिफ्रेश होने की जरूरत है? कितनी देर रिफ्रेश होने की जरूरत है? तो टाइम फ्रीक्वेंसी एंड ड्यूरेशन ऑफ रेस्ट इंटरवल जो है वो बहुत सोच समझ के डिसाइड करनी चाहिए। अगर कोई मैनुअल वर्क कर रहा है तो दो बार उसको छुट्टी दे दो। ठीक है? दिमागी वर्क कर रहा है तो शायद एक बार की छुट्टी में काम हो जाएगा। छुट्टी भी इतनी बड़ी नहीं देनी है। जैसे आपने देखा होगा लेबर काम करती है तो बीच में आधे 1 घंटे की छुट्टी लेते हैं वो पूरे। वो खाते हैं पीते हैं और आधे घंटे सोते हैं। अगर उनको हम बोले कि नहीं ये छुट्टी नहीं लेनी है तो तुमको 15 मिनट छुट्टी लेनी है तो वो काम ही नहीं कर पाएगा उसकी एफिशिएंसी खराब हो जाएगी तो टेला बाबा ने क्या बोला कि जो फटीग स्टडी करोगे रेस्ट इंटरवल की स्टडी करोगे कि कितनी देर तक का आपको रेस्ट इंटरवल मिलना चाहिए ताकि आप वापस से बेहतर तरीके से काम कर पाओ एफिशिएंसी बढ़ा पाओ ये बहुत सोच समझ के डिसाइड आपको करना पड़ेगा फटीक स्टडी लगा के करना पड़ेगा ऐसा नहीं है कि बस हवा में ही कर रहे हो चौथी टेक्निक जो इन्होंने कही वो थी मेथड स्टडी यानी कि किस तरीके से आपको काम करना है ये किसी के कहने पे मत सोचो। ऐसा नहीं मालिक ने बोला यह तरीका सही है तो सही है। नहीं दो चार तरीके को देखो। दोनों चारों तरीकों को अप्लाई करो। जिस तरीके में सबसे बेहतर आउटपुट और सबसे कम कॉस्ट आ रही है उस तरीके को इस्तेमाल करो। मालिक के कहने से कुछ नहीं होगा। जो सही है उस तरीके को यूज़ करो। ऐसा तरीका जो आपका समय बचाए, कॉस्ट बचाए और एफर्ट को भी बचा ले। ठीक है? पीपीटी भी बचा लेगा। चलिए, अगला, नेक्स्ट। नेक्स्ट तरीका क्या है भैया? नेक्स्ट जो आपकी टेक्निक है वो है आपकी टाइम स्टडी। टाइम स्टडी कहती है बेसिकली कि किसी भी काम को करने का जो समय है वो पहले से डिसाइड होना चाहिए। एक स्टैंडर्ड टाइम सेट करो। क्या करो? एक स्टैंडर्ड टाइम सेट करो। कि एक काम को करने के लिए कितना आपको समय देना चाहिए। और उस टाइम के हिसाब से आप देखो कि आपका वर्कर एफिशिएंट है या इनफिशिएंट है। किसी एक काम को करने का एक स्टैंडर्ड टाइम फिक्स होना चाहिए। जैसे आपने बोला कि भैया 1 दिन में 100 पेन बना दो। पर मेरी मशीन 1 घंटे में दो ही पेन बना पाती है। तो क्या 100 पेन बन पाएंगे? नहीं बन पाएंगे भाई साहब। यहां पर टाइम स्टडी करो ना कि मशीन कितनी देर चलती है, कितना प्रोडक्शन करती है और कितने घंटों तक चलेगी? ये सारी चीजों का टाइम स्टडी करो और उसके हिसाब से आप एक स्टैंडर्ड टाइम सेट करो काम करने का। अगली जो स्टडी है वो है जनाब आपकी मोशन स्टडी। ये बड़ी काम की स्टडी है। जब हम है ना यह मान लो तुम्हारा क्लास रूम है कक्षा 12वीं कॉमर्स। ठीक है? तुमने कहा कि सर हमें बाथरूम जाना है। तो यह तुम क्लास से निकले। ये वाशरूम है तो तुम यहां से यहां चले गए। अब जब वापस आएंगे तो हम यूं आएंगे। यूं आएंगे। पूरे स्कूल में भ्रमण करके आए। इमेजिन करो कि अगर तुम्हारी क्लास से वाशरूम जो है वो दो माले का फर्क होता तो तुम पहले पीरियड में जाते चौथे में वापस आते हो। तो ये इन्होंने ही दिमाग लगवाया है। इन्होंने क्या कहा? इन्होंने कहा कि आप मोशन स्टडी करिए। मोशन स्टडी का मतलब जितने भी वर्कर्स हैं उनके मोशन को देखिए कि वो पूरे दिन में कहां-कहां जा रहे हैं। पानी पीने भी जा रहे हैं, खाना खाने भी जा रहे हैं। ठीक है? ठीक है? वाशरूम भी जा रहे हैं। तो कितने मोशंस वो कर रहे हैं वो देखिए। उन मोशंस को दो कैटेगरी में डिस्ट्रीब्यूट कर दीजिए। एक होगा प्रोडक्टिव मोशंस जिससे फायदा मिल रहा है ऑर्गेनाइजेशन को। एक होगा अनप्रोडक्टिव मोशन या नॉन प्रोडक्टिव मोशन जिनको अननेसेसरी भी बोलते हैं। और इसको कट डाउन कर दीजिए। जैसे आपके क्लास से 50 मीटर के अंतराल में ही वाशरूम होगा। हर स्कूल में क्योंकि पता है कि अगर यह 50 की जगह 500 मीटर के अंतराल में हुआ 500 मीटर दूर हुआ तो बहुत ज्यादा समय खराब हो जाएगा। इसलिए पास में रख दिया पानी पीने के लिए सर अगर एंप्लई को पानी पीना है अगर उसको तीन वाले दूर जाना पड़े तो पहले वो मन बनाएगा पानी पीने का मान लो 5 मिनट मन बनाया उसने फिर पानी की बोतल लेके नीचे उतरा 5 मिनट फिर पानी भरा वहां थोड़ी देर पिया फिर इंतजार करा 5 मिनट फिर आके बैठा फिर 5 मिनट फिर बैठ के मन बनाया फिर 5 मिनट यानी कि एक बार का पानी पीने के लिए उसको 25 मिनट लग गए दिन में चार बार अगर वो पानी पीने जा रहा है तो 100 मिनट हो गए यानी अंदाजन एप्रोक्समेट 1ढ़ पौने दो घंटा 2 घंटे का टाइम मान लो। ये तो पानी पीने में निकल रहा है एक आदमी का। अगर इसकी जगह उसकी सीट पर पानी की बोतल रेडी कर दी तो 2 घंटे ज्यादा काम कर रहा है वो। सिर्फ एक पानी की बोतल उसकी डेस्क पे पड़ी है। ऐसी है। तो टेलर बाबा ने क्या बोला? प्रोडक्टिव और अनप्रडक्टिव दो कैटेगरी में बांट दीजिए। अनप्रिव मूवमेंट को जितना हो सके कम कर दीजिए। आपकी एफिशिएंसी ऑटोमेटिकली बढ़ जाएगी। नए लोगों को रखने की जरूरत नहीं है। पुराने लोग ही बेहतर काम कर पाएंगे। नेक्स्ट अगली जो स्टडी थी वो स्टडी है वो टेक्निक थी आपकी डिफरेंशियल पीस वेज सिस्टम। ये बहुतेंट है। डिफरेंशियल मतलब अलग-अलग पीस वेज हर एक पर्टिकुलर सामान का वेज का सिस्टम बना दो। जैसे हमने स्टैंडर्ड क्वांटिटी सेट करी मान लो 100 कि एक दिन में 100 स्टैंडर्ड है यानी 100 यूनिट एक आदमी प्रोडक्शन कर सकता है। हमने कहा कि जो आदमी 100 से कम बनाएगा उसको हम देंगे ₹ पर यूनिट। और जो आदमी 100 से ज्यादा बनाएगा या 100 बनाएगा उसको हम देंगे ₹7 पर यूनिट। अब समझना आपने अगर 99 यूनिट का प्रोडक्शन किया है तो आपको इतना मिलेगा। 9 * 3 = 27 दो छ 9 * 3 = 27 और दो ₹297 आपको मिल रहे हैं। और अगर आपने 100 यूनिट बना दी या 101 बना दी या 102 बना दी। 100 ही पकड़ते हैं पहले तो। तो आपको कितना मिलेगा? 100 * 700 यानी कि 99 से 100 मात्र एक यूनिट बनाने पर आपकी कमाई ₹400 बढ़ गई। बढ़ गई ना? तो हर आदमी क्या सोचेगा भाई मैं 100 से ज्यादा ही बनाऊं। कुछ भी करो 100 तक तो पहुंच ही जाऊं और 100 तक पहुंच गया ना तो फटाफट 105, 110, 120, 130 तक पहुंच जाओ। क्योंकि आज 100 तो पूरे हो गए। अब जितना भी मैं बना रहा हूं उसको ₹100 मिल रहा है। तो क्या बोला टेलर बाबा ने कि डिफरेंशियल अलग-अलग पीसवेज सिस्टम कर दो। जो प्रोडक्टिव वर्कर है जो एफिशिएंट है जो आपके स्टैंडर्ड प्रोडक्शन से कम प्रोडक्शन कर रहा है अन मतलब मान लेते हैं जो ज्यादा कर रहा है यानी कि जो एफिशिएंट एंप्लई है उसको डबल डबल पैसा दो थोड़ा ज्यादा पैसा दो और जो स्टैंडर्ड से कम कर रहा है उसको इनफिशिएंट की कैटेगरी में डाल दो। उसको कम पैसा दो। तो अगले दिन जो कम पैसा करने वाला है वो भी ज्यादा करने की सोचेगा और जो ज्यादा कर रहा है वो तो सोचेगा भाई कल तो ज्यादा किया था आज भी ज्यादा करूं। इससे आपका प्रोडक्शन ऑटोमेटिकली बढ़ जाएगा। और अंतिम और आखिरी जो है वो है मेंटल रिवॉल्यूशन। क्या है? मेंटल रिवॉल्यूशन। मेंटल रिवॉल्यूशन का सिंपल भाषा में मतलब होता है भाई वर्कर और मैनेजमेंट। ये दोनों एक दूसरे को अच्छी निगाहों से देखें। अच्छी निगाहों मतलब ऐसा लड़ने के लिए नहीं देखें। एक दूसरे से। हां भाई प्रॉब्लम है तो तू बता दे। प्रॉब्लम है तो आप बता दो। ऐसी वाली निगाहों से देखें और एक दूसरे की तरफ प्रेम भाव समभाव रखें तो बढ़िया होगा। ठीक है? तो इन दोनों का मेंटल एटीट्यूड जो है वो एक दूसरे की तरफ चेंज होना चाहिए। बेहतर होना चाहिए। क्योंकि अगर ये दोनों एक दूसरे से लड़ेंगे ना तो नुकसान किसका होना है? नुकसान तो कंपनी का ही होना है भैया। तो इसलिए मेंटल रिवोल्यूशन करो काम बढ़िया रहेगा। तो ये दिए टेलर बाबा की आठ टेक्निक। चार प्रिंसिपल आठ टेक्निक और उन्होंने दी टोटल 14। ठीक है जी? तो बालको ये आपका चैप्टर पूरी तरीके से समाप्त हो गया है। इस चैप्टर में कोई भी परेशानी, कोई दिक्कत, कोई प्रॉब्लम है तो कमेंट सेक्शन में लिख देना। जिन लोगों ने अब तक हमारी हेल्प बुक नहीं ली है, बीएसटी की है। ऐसी भाई इको की भी है और हो सकता है अकाउंट्स की भी जल्दी आ जाए। नीचे डिस्क्रिप्शन में सब कुछ चेक कर लेना। ये आपकी हर परेशानी का समाधान है। कोई सी भी परेशानी बिज़नेस स्टडीज में है। समाधान है। इको में है समाधान है। और अब तो हम चार्ट भी दे रहे हैं साथ में। बढ़िया-बढ़िया बड़े-बड़े। जिससे आपको फार्मूला रिवाइज करना है या कुछ भी चीज फटाफट दिमाग में बिठानी है सब कुछ हो जाएगा। इसको अपनी टेस्ट पर लगाइए और बढ़िया तरीके से 12वीं में नंबर लाइए। चलिए मिलते हैं आपसे अगली वीडियो के साथ। कोई दिक्कत, कोई परेशानी हो तो जरूर बनाएं। तब तक के लिए।