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मातृभूमि कविता का महत्व और व्याख्या

हेलो माय डियर स्टूडेंट्स वेलकम टू माय चैनल अल्फा नॉलेज बॉक्स इस वीडियो में आज हम एनसीईआरटी कक्षा छ हिंदी मलहार के पाठ एक मातृभूमि के शब्दार्थ और व्याख्या को करने वाले हैं पाठ एक मातृभूमि एक कविता है जिसे लिखा है सोहन लाल द्विवेदी जी ने कविता को शुरू करने से पहले चलिए कवि के बारे में थोड़ा सा जानते हैं द्विवेदी जी का जन्म आज से 100 साल पहले हुआ था उस समय अंग्रेजों का भारत पर पत्य था यानी हम अंग्रेजों के गुलाम थे उन्होंने अपनी लेखनी में अंग्रेजों का विरोध किया है उनकी लेखनी का सबसे प्रिय विषय था देशभक्ति भारत के गौरव का गान करना उन्हें बहुत पसंद था बहुत अच्छा लगता था उनकी और चर्चित रचनाएं हैं बढ़े चलो बढ़े चलो कोशिश करने वालों की हार नहीं होती कवि अपनी मातृभूमि से बहुत अधिक प्यार करते थे वो एक देशभक्त थे इस कविता के माध्यम से उन्होंने अपने देश के प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है और साथ ही अंग्रेजों के गुलाम होने के कारण उन्हें जताने की कोशिश की है कि मातृभूमि मेरी है ये समृद्ध भूमि हमारी है यहां पर जो कुछ भी है सब कुछ हमारा है चलिए कविता को पढ़ते हैं और इसके अर्थ को समझते हैं ऊंचा खड़ा हिमालय आकाश चूमता है नीचे चरण तले झुक नित सिंधु झूमता है यहां पर हिमालय शब्द हिमालय पर्वत के लिए प्रयोग हुआ है आकाश शब्द का अर्थ हम सभी जानते हैं आसमान अंबर नीलेश नभ यहां पर चरण का अर्थ है पैर नित का अर्थ है हमेशा और सिंधु शब्द यूज किया गया है सिंध महासागर के लिए कवि देश की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करते हुए कहता है कि हमारा हिमालय पर्वत इतना ऊंचा है कि आकाश को चूमता है और अगर उसके चरणों की तरफ देखें उसके तले की तरफ झुके तो वहां पर निरंतर नित लगाता सिंध महासागर झूमता है लहराता हुआ दिखाई देता है सिंध महासागर हि महासागर का एक छोटा सा भाग है जहां पर हमारे देश की पुरानी सभ्यताएं शुरू हुई कवि आगे कहता है गंगा यमुना त्रिवेणी नदियां लहर रही है जगमग छटा निराली पक पक छहर रही है त्रिवेणी का अर्थ होता है जहां तीन नदियां आपस में मिलती हो त्रिवेणी संगम पर गंगा यमुना और सरस्वती तीन नदियां मिलती हैं छटा का अर्थ है शोभा सुंदरता कवि कहता है कि गंगा यमुना सरस्वती जैसी नदियां हमारे देश में है त्रिवेणी जैसा संगम हमारे देश में है यह नदियां चारों ओर लहरा रही है बह रही है और हमारे देश की शोभा सुंदरता बहुत निराली है प्रकाशमान है हर जगह पर पग पग हर कदम पर फैली हुई है वह पुण्य भूमि मेरी वह स्वर्ण भूमि मेरी वह जन्म भूमि मेरी वह मातृभूमि मेरी पुण्य भूमि का अर्थ है पवित्र भूमि स्वर्ण भूमि का अर्थ है सोने जैसी भूमि जन्म भूमि का अर्थ है जहां जन्म लिया और मातृभूमि का अर्थ है पूर्वजों की भूमि कवि कहता है कि वह पुण्य भूमि मेरी है यानी पवित्र भूमि मेरी है वह स्वर्ण भूमि मेरी है वह सोने जैसी भूमि भी मेरी है वह जन्मभूमि मेरी है जहां मैंने जन्म लिया है वह जन्मभूमि मेरी है और वह मातृभूमि भी मेरी है यानी मेरे पूर्वजों की जो भूमि है वह मेरी है वह मां जैसी भूमि मेरी है ने अनेक झरते जिसकी पहाड़ियों में चिड़िया चहक रही है हो मस्त झाड़ियों में कवि कहता है कि मेरी मातृभूमि ऐसी है जहां जिसकी पहाड़ियों पर अनेकों झरने झरते हैं बहते हैं और इसकी झाड़ियों पर मस्त होकर खुश होकर चिड़िया चह जाती हैं गुनगुनाती हैं आनंदित होकर चहकती है आगे कवि लिखता है अमरा घनी है कोयल बगती है बहती मलय पवन है तन मन संवार है अराया का अर्थ है आम की पड़ों का झुंड और मलय पवन का अर्थ है मलय पर्वत से आने वाली हवा कवि कहता है कि हमारी मातृभूमि में आम के पेड़ों का झुंड है आम के पेड़ बहुत पासपास लगे हुए हैं जहां कोयल गुनगुनाती है पुकारती है कक करती है घने सुंदर आम के पेड़ों पर कोयल अपनी मधुर आवाज में गाना गाती है और मलय पर्वत से आने वाली हवा हमारे देश के तन मन को संवार है उसके शरीर को मन को सुंदर बनाती है देश के तन मन को निखारती है कवि आगे लिखता है वह धर्म भूमि मेरी वह कर्म भूमि मेरी वह जन्म भूमि मेरी वह मातृभूमि मेरी धर्म भूमि का अर्थ है धार्मिकता की भूमि कर्म भूमि का अर्थ है कार्य और मेहनत की भूमि इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कह रहा है कि वह भूमि जो कि धर्मों से भरी है वह मेरी है वह भूमि जो कर्म और मेहनत से भरी हुई है वह मेरी है वह भूमि जहां मैंने जन्म लिया है वह मेरी है और यह मां के जैसी भूमि जो है वह भी मेरी है कविता में आगे है जन्मे जहां थे रघुपति जन्म जहां थी सीता श्री कृष्ण ने सुनाई वंशी पुनीत गीता यहां पर रघुपति का अर्थ है श्री राम कवि कहता है कि जहां श्री राम जी ने जन्म लिया था जहां सीता माता ने जन्म लिया था जहां श्री कृष्ण ने अपनी मधुर वंशी से गीता सुनाई थी वह मातृभूमि मेरी है कवि आगे लिखता है गौतम ने जन्म लेकर जिसका सुयश बढ़ाया जग को दया सिखाया जग को दिया दिखाया कवि कहता है कि मातृभूमि मेरी ऐसी है जहां गौतम बुद्ध जैसे महान लोगों ने जन्म लिया उन्होंने यहां जन्म लेकर हमारे देश की महिमा को बढ़ाया है ज्ञान की ओर ले गए हैं और अंत में कवि लिखता है वह युद्ध भूमि मेरी वह बुद्ध भूमि मेरी वह मातृभूमि मेरी वह जन्म भूमि मेरी अंत में कवि कह रहा है कि ये युद्ध की भूमि मेरी है वह बुद्ध की भूमि भी मेरी है यह मां जैसी मातृभूमि भी मेरी है और यह जन्म भूमि जहां मैंने जन्म लिया यह भूमि मेरी है इस तरह से कवि ने अपने देशभक्ति को देश प्रेम को गहरे प्रेम और सम्मान के साथ प्रस्तुत किया है दिस इज द एंड ऑफ वीडियो नेक्स्ट वीडियो में इस चैप्टर के प्रश्न अभ्यास को करेंगे थैंक्स फॉर वाचिंग