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कहानी: सूखी डाली
Jul 15, 2024
कहानी: सूखी डाली
लेखक
उपेंद्रनाथ अशक्त
कहानी के मुख्य बिंदु
पात्र
पुरुष पात्र
दादाजी (ब्रांच)
: परिवार के मुखिया, अपने प रिवार से बहुत प्रेम करते हैं
कर्मचंद जी
: दादाजी का मंझला लड़का
परे
: दादाजी का सबसे छोटा बेटा
कर्मचंद का मंझला लड़का
मल्लू
: कोई खास स्थान नहीं
महिला पात्र
बेला
: घर की छोटी बहू, बड़े घर की बेटी, अधिक पढ़ी लिखी
मझली बहू
: सदा दूसरों की हंसी उड़ाती है
इंदू
: दादाजी की पोती, छोटे भाई की बेटी, प्राइमरी स्कूल तक पढ़ाई की
रजवा
: घर की नौकरानी, 10 वर्षों से काम कर रही है
पारो
: कोई खास स्थान नहीं
कहानी की मुख्य बातें
यह एक संयुक्त परिवार की कहानी है जहाँ सब एक दूसरे का आदर करते हैं और प्रेम करते हैं।
दादाजी अपने परिवार को वटवृक्ष की तरह मानते हैं और किसी भी डाली को टूटने नहीं देना चाहते हैं।
कहानी का मुख्य संघर्ष छोटी बहू के फर्नीचर और नौकरानी को निकालने पर है।
घर में छोट ी बहू बेला का सभी से संघर्ष दिखाया गया है, वह अपने मायके के बड़े-बड़े कमरों की तारीफ करती है।
अन्य सदस्यों को परेशान करने के बाद अंत में दादाजी सबको समझाते हैं और शांति स्थापित करते हैं।
कहानी में पारिवारिक समझ और एकजुटता का महत्व दिखाया गया है।
अंततः, सबको परिवार में मिलकर रहने और प्रेम से काम करने की शिक्षा मिलती है।
महत्वपूर्ण संवाद
दादाजी:
"मैं अपने परिवार को वटवृक्ष मानता हूँ और परिवार के सदस्यों को पेड़ की डालियाँ।"
बेला (छोटी बहू):
"मुझे अपने मायके के बड़े-बड़े कमरे और फर्नीचर अच्छे लगते हैं।"
कर्मचंद:
"मुझे इस घर में मन नहीं लगता, यहाँ सब मेरी हंसी उड़ाते हैं।"
दादाजी:
"मेरे जीते जी यह संभव नहीं है कि कोई भी डाली टूट कर अलग हो जाए।"
अंतर्दृष्टि
कहानी के अंत में दादाजी ने सबको समझाया कि परिवार में मिलजुल कर रहना, प्रेम से रहना सबसे महत्वपूर्ण है। किसी भी डाली का टूटना उन्हें स्वीकार्य नहीं है।
दादाजी का परिवार के प्रति समर्पण और सदस्यों को एकजुट रखने की कोशिश प्रशंसनीय है।
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