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भारत में खाद्य सुरक्षा की स्थिति
Jan 11, 2025
फूड सेक्योरिटी इन इंडिया
फूड सेक्योरिटी का परिचय
फूड सेक्योरिटी का अर्थ है कि खाना पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो, सस्ता हो और सभी के लिए सुलभ हो।
कुछ सेक्शन ऐसे होते हैं जो भोजन का खर्च नहीं उठा सकते और इन्हें सरकार की सहायता की आवश्यकता होती है।
फूड सेक्योरिटी के मुख्य आयाम
उपलब्धता
: आयात से या पुराने स्टॉक से उपलब्ध कराना।
सुलभता
: भोजन की पहुँच हर व्यक्ति तक हो।
सस्ती दर
: लोगों की आर्थिक क्षमता के अनुसार भोजन की दर।
फूड इनसिक्योरिटी के कारण
गरीब और भूमिहीन मजदूर, भिखारी, विधवाएँ, गर्भवती महिलाएँ आदि फूड इनसिक्योर होते हैं।
बंगाल के अकाल (1943) जैसे घटनाएँ, जिसके कारण लाखों लोगों की भूख से मृत्यु हुई।
भूख के प्रकार
सीजनल भूख
: एक विशेष समय पर खाना उपलब्ध होता है।
क्रॉनिक भूख
: लंबे समय तक पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिलना।
सरकार के प्रयास
ग्रीन रेवोलूशन 1960 में, जिससे अनाज का उत्पादन बढ़ा।
बफर स्टॉक: FCI द्वारा फूड ग्रेन्स की खरीद और स्टोर की जाती है।
पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (PDS): गरीबों तक कम दाम पर अनाज पहुँचाना।
रैशनिंग सिस्टम
रेशन शॉप्स के माध्यम से गरीबों तक अनाज
अंत्योदय कार्ड और बीपीएल कार्ड के माध्यम से सस्ता भोजन।
पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (PDS) का वर्तमान स्थिति
1992 तक यूनिवर्सल कवरेज थी।
1997 में टार्गेटेड पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (TPDS) का आरंभ हुआ।
2013 में नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू किया गया।
लाभ
फूड की उपलब्धता, सुलभता और सस्ती दर सुनिश्चित होती है।
किसानों की आय में स्थिरता।
आलोचनाएँ
बफर स्टॉक्स की उचित प्रबंधन की कमी।
रेशन शॉप्स में मालप्रैक्टिसेस।
PDS की एफिशिएंसी में कमी।
कोऑपरेटिव और अन्य प्रयास
अमूल जैसे कोऑपरे टिव फूड सेक्योरिटी को इंश्योर करते हैं।
डेवलपमेंट साइंस द्वारा ग्रेन बैंक्स की स्थापना।
धन्यवाद!
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