हेलो स्टूडेंस वेलकम टू डेफिनेट सक्सेस पाठशाला मैं आपकी हिंदी एजुकेटर रुपाली वर्मा आज का लेकर आई हूं जैसा आप सभी को पता है कि क्लास टेन्थ हिंदी कोर्स भी हमने स्टार्ट कर दिया है तो कोशिश भी में जो हमने सबसे पहले बुक स्टार्ट करी है क्लास टेंथ में, वो हमने ली है इसपर्श भाग दो, इसपर्श भाग दो जो पुस्तक है, वो हमारे दो पार्ट में डिवाइडिट है, यह चीज में आपको सबी को पता है, कि दो भाग में इसको हमने अलग-अलग करके प� एक है आपका पद्धिखंड यानि की काविखंड और दूसरा है गद्धिखंड तो आपका जो काविखंड सबसे पहले आ रहा है साथ चेप्टर इसके अंदर दिये हैं कबीरदास जी की साखी तो वो करीबन आठ साखियां थी जिनने हमने कम्प्लीट किया उसके बाद उसका detail explanation और DPP solution हमने आपको दे लिया आज हम करा रहे हैं इसका second chapter ठीक है तो इस पर्श बुक जो है हमारी इस पर्श भाग दो उसके पद्यखंडे का दूसरा अध्याय है मीरा के पद तो यहां पर इस चैप्टर में मीरा बाई जी के दो पद दिये गए हैं अब हम इन पदों को पढ़ें उससे पहले बहुत जरूरी एक चीज है वो है ह उनको ये बारे में हम जरूर जाने, ये compulsory जान लीजे, हिंदी में हम खास तोर से आपसे ये चीज़ कहते हैं, कि questions कभी-कभी तो पूछे जाते हैं, कभी नहीं पूछे जाते हैं, लेकिन अगर हम लेखक या लेखिका के बारे में अच्छे से समझ जा मीरा बाई के पत इसका कर रहे हैं डिटेल एक्स्प्लिनेशन तो आज हम देख रहे हैं सबसे पहले अपनी कवियतरी मीरा बाई जी का परिचे क्या है देखिए मीरबाई का जन्म 1498 यानि कि 1498 इसी में लगभग राजस्तान में मेरता के पास चौकडी ग्राम में हुआ था तो आपको यह याद रखना होगा कि कब हुआ था और कहा हुआ ठीक है उनके पिता का नाम रत्न सिंग था तथा वे जोधपुर संस्थापक राव जोधा की प्रपोत्री थी। तो आब ये ध्यान रखें, पिता का नाम रत्नसंथा था। लेकिन वो पोती, प्रपोत्री का मतलब होता है पोती, यानि कि पिता के भी पिताजी। जी उनका वह कौन थे वह थे जोधपुर के संस्थापक जरूर संस्थापक राव जोधा अब यह क्या है हम आपको बता देते हैं जोधपुर का कि स्थापना जिसने करी है हम उनके बारे में बात कर रहे हैं ठीक है बच्पन में ही उनकी माता का निधन हो गया यानि कि मीरा बाई की जो माता जी है जब मीरा बाई चोटी थी तभी उनका निधन हो गया अतावे अपने पितामा राव जोधा जी के पास रहती थी तो माता राव दाजी बड़े ही धार्मिक एवं उदार प्रवित्ती के ए थे यानि की जो उनके दादा जी थे राव जोधा वो बहुत ही जादा धार्मिक प्रवित्ती पूजा पाट ये सारी चीजों में वो बहुत आस्था रखते थे और नियम से सारे कायदे फॉल यानि कि बश्पन से ही वो शिरी कृष्ण को ही पूजा करती थी, राधिका का मतलब क्या है, वो बश्पन से ही शिरी कृष्ण को पूजा करती थी, मीरा बाई का विवाह उदैपुर के राणा सांघा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ, अ� विवाह के कुछ ही समय बाद उनके पती की मृत्ती हो गई मतलब विवाह हुआ और उसके कुछ समय बाद पती थे उनकी यानि की कौन है भोजराज जी की मृत्ती हो गई इसके पश्चात इनकी भक्ते दिन प्रति दिन भरती गई अब भाई वो बश्पन से ही श्री कृष्ण की आराध्या थी तो करती थी लेकिन जब विवाह हुआ तो शायद थोड़ा सा उनके जो ये पूजा पाट है जो इनकी आराधना है इसमें थोड़ा खलर आया लेकिन जैसे ही पती की मृत्ती हुई उसके बाद इन्होंने कि एक तरीके से परिवार से सारी चीजें उन्होंने त्याग दी और सिर्फ अपना ध्यान किसम मीरा बाई मंदरों में जाकर वहाँ मौझूद कृष्ण भक्तों के सामने कृष्ण जी की मूर्ती के आगे नाचती रहती थी वे कृष्ण को ही अपना पती कहती कि यही हमारे पती है और लोग लाज खोकल क्रश्न के प्रेम में लीन रहती मीरा बाई का नाचना और गाना राजपरिवार को अच्छा नहीं लगा राजपरिवार ने कई बार मीरा बाई को विश्च दे कर मारने की कोशिश करे तो इनके पदी भोजराज जी के जो छोटे भाई थे वो उसके बाद गद्दी पर बैठे अब राज भाई राजघराने की बहु इस तरीके से मंदिर में जाए नाचे गाए साधुं के साथ बैठे तो एक तरीके से जो है वो उनकी ही मान सम्मान को ठेस पहुँच रही थी तो इन्होंने कहा कि भाई बहुत समझाने की कोशिश करी मीरा बा अंतता परेशान होकर मीरा बाई पहले वरंदाबन और फिर द्वारिका की ओर चली गई फिर उन्होंने वहाँ उदैपूर छोड़ दिया क्योंकि उदैपूर में ही थे वहाँ से छोड़ दिया और ये कहां चली आ� लेकिन इनके मृत्यू को लेकर भी कई बाते हैं कहा जाता है कि ये श्रीकश्री की मूर्ती के अंदर समहा गई थी लेकिन इस चीज के लेकर कोई भी पुक्ता साक्ष मौजूद नहीं है ये सिर्फ कही सुनी बाते हैं क्या पता सही भी हो हरी आप हरो जनरी भीर द्रौप दीरी लाज राखी आप बाढ़ियो चीर भगत कारण रूप न रहियो धरियो आप शरीर बूड़ तो गजराज राखियो काटी कुंजर पीर दासी मीरा लाल गिरदर हरो मारी पीर तो यहाँ पर मीरा बाई जी जो है वो शिरी कृष्ण से जो है request मतलब एक तरीके से प्रार्थना कर रही है कि आप तो अपने सभी भक्तों की जो है पीड़ा को हरते हैं तो मैं तो आपकी दासी हूँ तो उसी तरीके से आप भी मेरी पीड़ा को हरी है अब उनकी पीड़ा क्या है वो शिरी कृष्ण से विरहा में है वो चाहती है कि शिरी कृष्ण से उनको दर्शन दे और वो उनहीं के साथ रहें उनको दासी बन कर वो रहना चाहती है तो यही उनोंने यहाँ पर उनके द्वारा क्रपा की गई लोगों और जिन पर क्रपा करी है उनके बारे में बताया है और अपनी यह प्रॉबलम यानि कि अपनी तकलीफों को हरने की प्रार्थना करी है क्या कहते हैं हरी आप हर जनरी भीर, क्या कहते हैं? हरी, शिरी कृष्ण, आपने जो है सभी लोगों की पीड़ा को हरा है, यानि कि आप अपने भक्तों की पीड़ा को हर लेते हो, अगर वो किसी तकलीफ में होते हैं, आपसे प्रार्थना करते हैं, आपका नाम प दुस आशन द्वारा द्रौपदी का चीर हरण किया जा रहा था तरब द्रौपदी ने आपको पुकारा था तो आपने द्रौपदी की लाज बचाने के लिए उसकी चीर अर्था चीर मतलब कपड़ा अर्थात उसकी साडी को बढ़ा दिया दूसरा क्या है भगत कारण रूप नर है यो धरेव आप शरीर है तो आप यहाँ पर क्या कह रहे हैं कि आपने अपने भक्त की रक्षा के लिए नर सिंग का रूप धारण किया कैसे कह रहे हैं प्रहलाद उनका बहुत बड़ा भक्त था अब उन्होंने क्या किया उनके पिता जी जो थे हिरना कश्यप उन्होंने पूरे राजमितों दिया था जिसको भी पूजा करनी है मेरी करो लेकिन खुद उनका पुत्र जो प्रहलात था वो विश्नू की आराधना करते थे तो जब ये पता चला तो हिर्णा कश्चप ने कई तरीके से उन्हें मारने की कोशिश करी, करी ना, उन्होंने सापों से भरे कमरे में छोड़ दिया, उन्हें जिन्दा जला दिया, पहार से फेक दिया, विश पिला दिया, लेकिन विश्णु जी ने हमेश सकता है ना घर में मार सकता है ना बाहर मार सकता है ना कोई पशु मार सकता है ना कोई यह मनुष्य मार तो इस तरहे का उन्होंने जो है एक वर्दान मांगा था जो वर्दान था तो इस तरीके से हर कोई उनको मार नहीं सकता था तब विश्णु जी ने जो है वो नरसिंग पर अपने प्रश्चन नर बूड तो गजराज राखियो काटी कुंजर पीड अब क्या कह रहे हैं डूबते हुए गजराज को आपने बचाया उसकी पीडा से उसको हर लिया अब क्या था एक गजराज थे अर्थात हाती थे वो नदी को पार कर रहे थे और जब नदी को पार कर रहे थे उसी समय जब मध्य नदी में पहुंचे तो एक मगर ने उनके पैर को पकड़ लिया, मगरमच्छोता है न, उसने उनके पैर को पकड़ लिया और अंदर की तरफ खीचने लगा, तो गजराज के पैर को उसने पकड़ा हुआ था, उससे उनको दर्द भी हो रहा था, और वो धीरे डूब भी और नदी पार कराई तो इस तरीके से एक जब गजराज ने उनको पुकारा था तो विश्णु जी ने उनकी भी मदद करी थी तो कहा रहा है बूड तो गजराज राखेओ काटी कुंजर पीर यानी की डूबते हुए गजराज को आपने बचाया और उसकी मतलब की गिरिधर कौन है श्री कृष्ण की दासी है आप उसकी पीड़ा को हरूँ अब मीरा बाई को क्या पीड़ा है मीरा बाई को श्री कृष्ण से विरहा पीड़ा है यानि कि वो श्री कृष्ण से दूर है वो सिर्फ श्री कृष्ण की दासी बनके उ आप पौराणिक समय से अनेक भक्तों की लाज रखी हैं। उधारणता आपने द्रौपदी की लाज रखने के लिए चीर हरण के अवसर पर उनके वस्त्रों को इतना बढ़ा दिया कि वदुशाशन के हाथों लज्जत नहीं ह हाती का कश्ट हरने के लिए आपने मगर मच्च को मारा था मीरा कहती है कि मैं तो आपकी दासी हूँ आप मेरी भी पीड़ा दूर कर लीजिए यानि कि मेरी जो विरहावेदना है उसे दूर कर दीजिए ये कामना मीरा बाई श्री कृष्ण जी से करती अब इनकी कावे पंगतिया जो कावे सौंदर है देखे क्या है सबसे पहले मैंने हमेशा बताया कि कावे सौंदर में दो चीज़े आती है पहला होता है कावे पक्ष और दूसरा, sorry, कलापक्ष और दूसरा होता है आपका शिल्पपक्ष, यानि कि कलापक्ष, ठीक है, भावपक्ष और कलापक्ष, मीरा की, सबसे पहले भावपक्ष क्या है, भावपक्ष का मतलब होता है कि जो पंक्तियां आपको दी गई है ओपर दया करने की आदत पर प्रकाश जा रही है कि कोई भी उनको अगर सच्चे मन से बुकारता है तो ईश्वर उनका हमेशा मदद करती है यही दो भाव पूरे उन्होंने पताए हैं तो यह चीज हमने यहाँ पर लेती हैं अब आते हैं क्या कला पक्ष क्या है भाषा सरल एवं सरस है भाषा प्रभावत पादक है यानि कि सरल भाषा है और प् ब्रजभाशा के शब्दों के साथ राजस्थानी भाशा के शब्दों का भी प्रियोग किया गया है ब्रजभाशा है चुकी देखे मीरा भाई राजस्थान की है तो वो उनकी मात्रभाशा रही तो उसमें उनका राजस्थानी पुट तो मिलता ही मिलता है लेकिन चूकी वो द्वारिका में और विंदावन में रही तो ब्रजभाशा का चूकी सिरी कृष्ण की आराधना उन्होंने ब्रजभाशा में ही करी है तो ब्रजभाशा में राजस्थानी वर्� पूरे पद में द्रश्टान तलंकार प्रयोग किया गया, द्रश्टान तलंकार का तातपर क्या कि हमारे सामने हर एक पिच्चर बनाई जा रही है, जैसे दुशाशन द्वारा चीरहरण का जो द् पंगतियों के सामने पंगतियों के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है तो यहाँ पर क्या है दृष्टान्त अलंकार फिर आते हैं प्रतेग पंगति के अंतिम पद शब्द तुकान्त है ये तो हमने देखा है गयात्मक शैली का प्रेवग है तो रमीरा भाई जी के जितने भी पद हैं उन्होंने भक्ती से ओधप्रोत होके कहे हैं और सब गाये हैं ठीके तो लयात्मक बोलिये या गयात्मक बोलिये बात एक ही है इनके काव्यांश पे दूसरा काव्यांश यानि कि दूसरा पत्त क्या है देखिए शाम माने चाकर राखो जी गिरधारी लाल माने चाकर राखो जी चाकर रसियों बाग लगाईयों नित उठ दर्शन पाईयों ब्रिंदावरनी गुण् मोर मुकुट पी तामबर सोहे गल बयजनती माला वृंदावन में धेऊ चरावे मोहन मुरले वाला उचा महल बानवा विचविच राखू बारी सावरिया रै दरस पासू पहर कुसुम्बी साडी तो अब यहाँ पर क्या कह रही है अब वो शिरी कृष्ण की दासी बन रही है क्या कहती है शाम माने चाकर राखो जी क्या कहती है श्री कृष्ण जी मुझे आप अपनी दासी बनाकर अपना नौकर बनाकर अपने पास रख लीजिए जी यानी कि गिरी को धारण करने वाले उन्होंने गोवरधन परवत को धारण किया था ना तो इसलिए क्या बोला जाता है गिरी धर को धारण यानी कि गिरी को पहाड को धारण करने वाले श्री कृष्ट जी मुझे चाकर राखो अर्थात मुझे अपनी नौकरी में रख लीजे मुझे अपनी दासी बना लीजिये चाकर रासियों बाग लगाईयों नित उठ दर्सन पाईयों तो क्या कहें जब आप मुझे अपना चाकर रख लेंगे तो मैं क्या करूँगी मैं बाग लगाऊंगी और नित उर्त दर्शन पाएंगे यानि कि फिर जब मैं वो बाग लगाओंगी आप उस बाग में टहलने आएंगे, तो जब आप उस बाग में टहलने आएंगे, तो मैं सुबा नित उठकर आपके दर्शन प्राप्त कर लूँगी। बृन्दावन री गुण्ज गलियों में गोवन्द लीलिया गासू, फिर क्या कहें बृन्दावन की जो गलिया है, मैं उसमें घूम कर शिरी कृष्ण की लीलाओं के गीत गाओंगी, चाकरी में दर्शन पासू, अब क्या कह उनकी चाकरी करेंगे जब हम किसी की चाकरी करते हैं यानि किसी की नौकरी करते हैं तो हमें सैलरी मिलती है पैसा मिलता है तो वही कह रही है कि जब मैं आपकी चाकरी करूँगी तो उसमें आपके दर्शन के रूप में जो है मुझे वो सैलरी मिलेगी जब मैं आपकी ठीक है तब जो इसमरण जो मैं आपका करूँगी इस प्रकार से मैं आप वो अपने जितने मैंने जो सैलरी पाई है मैं उसे खर्च कर दूंगी तो हमलोग को जब सैलरी मिलती है तो हमलोग खर्च करते हैं सिंपली बात है जो हमलोग का म जब मैं आपको जब मैं इसमरण करूँगी तो उस तरीके से मैं अपनी ये सैलरी खर्च करूँगी भाव भागती जागरी पासियों यानी की भाव के रूप में यानी की आपका इसमरण करने के रूप में मेरी जागरी मतलब मैं आपको याद करूँगी उससे मेरा पूरा का पूरा मेरा एक दन संपत्ती इकठा हो जाएगी तो मीरा बाई जी क्या कह रही है कि भाई दर्शन के रूप में जब मुझे सैलेडी प्राप्त होगी और इसमरण के रूप में जब मैं आपको याद करूँगी तब तक वो धीरे वो खर्च होगी और जो बचेगी जो आपका इसमरण करके मेरे पास जो बचेगा दर्शन, इस्मरन और सामर्थ के रूप में वो मेरे पास में रहेगी, तीन तरीके से, आप क्या कहते हैं, मोर मुकुट पातम, पीतांबर सोल मेरे प्रभु कोन शिरी कृष्र वो मोर मुकुट धारन करते हैं और पीतांबर सिर पर मोर मुकुट और शरीर पर पीतांबर धारन करते हैं गले में उनके बैजन्ती माला है बैजन्ती माला मतलब फूलों की माला है विरंदावन में धेनु चरावे मोहन मुरली वाला तो क्या कहे रहे पूरी विरंदावन में वो गायों को चराया करते हैं मेरे मोहन मुरली बजाने वाले उचा महल बानवा विच राखूं बारी तो क्या कह रहे हैं उचे महल बनाओंगी और उसमें बीच में जो है बहुत सारे ज़रोके रखूंगी सावरियारे दरस पाईओं पहन कुसुम्बी सारी और क्या कह रहे हैं फिर कुसुम्बी साडी का मतलब क्या होता है केसरिया साडी केसरिया साडी पहने कर मैं उन जरों को से श्री कृष्ण के दर्शन प्राप्त करूँगी उन्होंने बगीचा लगाया बगीचे में वही जब वो घूनने आएंगे तो वहीं पर वो बहुत सारी क्या कहते है महल बनाएं उसी में महल बना होगा उसी में बहुत सारे जरोके होंगे तो उन्ही जरोकों से केसरिया साडी पहने कर मैं सि आधी रात में आपके दर्शन प्राप्त करूँगी मीरा रे प्रभु गिर्धर नागर हीवरो घारो अंधीरा तो क्या कह रहे है मीरा के प्रभु तो है वो सिर्फ श्री कृष्ण है उन्हीं को उन्होंने अपने हिदय में बसा रखा है अच्छा इसमें जो ए कोई भी स्थान हो वो हर हाल में श्री कृष्ण से मिलना चाहती हैं देखिए क्या होता है मध्यरात्रियों में जैसे अंधेरा होते ही इस्त्रियों को बाहर निकलने नहीं दिया उस समय की बात अगर हम करें तो नहीं दिया जाता था और ये क्या कह रही है आधी रात यानि कि मद्र राती यानि कि रात में बारा बजे जो है वो श्री कृष्ण के दर्शन पाएंगी यानि कि समय कोई भी हो अगर श्री कृष्ण मुझसे मिलना चाहते हैं तो मैं हर कंडीशन में वहाँ पर उनसे उस समय फिर दूसरी चीज उन्होंने क्या बोली जमनाजी तीरे यानि की नदी के किनारे अब क्या ह��ता है नदी के किनारे उस समय बहुत जादा खतरा होता है रात के समय क्यों होता है निशाचर निकलते हैं नदीों के किनारे निशाचर होते हैं निशाच लेकिन अगर श्री कृष्ण मुझे उस खत्रे वाली जगा पर भी बुलाएंगे, वो भी मद्रात्री को तो भी मैं आने को तयार। तो इसका तातपर यहाँ पर यह है कि आप किसी भी समय मुझे बुलाईए, मैं आओंगी। कितने भी विकट परिस्थितियों में बुलाई है मैं आऊंगी कितना भी मुश्किल इस्थान हो जहां पर लोगों की जाने की मनाई हो लेकिन आप अगर मुझे वहाँ पर दर्शन देंगे तो मैं वहाँ पर आऊंगी तो इस तरीके से मीरा जी ने क्या कि वो बस श्री कृष्ण से मिलना चाहती हैं ये चीज उन्होंने यहाँ पर व्यक्त करी हैं अब इसकी व्याख्या देखे क्या है, मीरा श्री कृष्ण से प्रार्थना करती है कि हे कृष्ण आप मुझे दासी बना कर रख लीजिये, वे गिरधारी जी से पुना यही बिनती हराती है कि दासी बनकर वा उनके लिए बाग लग अब जब बाग लगाएंगी तो श्री कृष्ण उसमें तहलने आएंगे जब तहलने आएंगे तो इस तरीके से मीरा बाई रोज उनके दर्शन कर लेंगी वा वरंदा वन की कुछ गलियों में कृष्ण की लीला का गान करना चाहती हैं दासी बन कर उन्हें कृष्ण नाम इस्मरन का अवसर प्राप्त हो जाएगा अगर वो दासी बन जाएंगे तो क्या हो जाएगा सिरी कृष्ण का इस्मर भाविवं भक्ती की जागिर अथवा सामराज्य भी उन्हें प्राप्त हो जाएगा तो उनकी संपत्ती क्या होगी उनका इसमरन ही उनकी संपत्ती हो जाएगी वे शिरी कृष्ण के रूप माधुर्य का वरणन करते हुए कहती हैं कि शिरी कृष्ण क उन्होंने अपने गले में बैजन्ती फूलों की माला को धारण किया है वो वरंदावन में गाय चराते हैं और मनमोहक मुरली बजाते हैं उनके उचे मूचे महल हैं, मीरा बाई महल के विशाल आंगन में फुलवारी लगाना चाहती हैं वे कुसुम्बी साडी पहन कर अपने प्रिये के दर्शन प्राप्त करना चाहती हैं कुसुंबी साडी का मतलब आप समझ लीजिएगा केसरिया साडी जैसे आप लोग देखते हैं ना कि मीरा बाई जी जो है वो केसरिया साडी धारन करती है ना देखे मैंने आपको यहाँ पर अर दिख ये देखिये है ना इस तरीके से जो है ना ये इनोंने जो धारन किया हुआ है हम लोग काफी आगे निकला है एक मिनिट ये रहा है चीके तो इस तरीके से क्या है उनोंने केसर या साडी को धारन करनी की बात गई है ठीके केसर या साडी पूरी पहन कर ये विंती करते वे कहती है कि यमुना नदी के किनारे आप मुझे आधी रात में दर्शन देकर क्रताध करें। आप ही मेरे ब्रबु हैं, आप ही गिरधर नागर हैं। मीरा का हिदे अपने प्रिये श्री कृष्ण से मिलने के लिए व्याकुल हो रहा है कि मतलब वो श्री कृष्ण से हर हाल में मिलना चाहती है चाहे कोई भी परिस्तिया हो कोई भी स्थान हो कोई भी समय हो वो मीरा बाई जी जो है श्री कृष्ण से म अब आज आते हैं कावि सौंदर, कावि सौंदर क्या है वही चीज़ इसमें दो चीज़ें आएंगी भावपक्ष और कलापक्ष हमेशा ध्यान रखना कावि सौंदर में ये चीज़ें आती हैं कोई भी पंग दी है तो उसमें क्या भाव निकल कर आ रहा है एक तरीके से क्या आर्थारा है ये चीज और कावी मतलब किस तरह की शब्द है अलंकार है रस है ये सारी चीजें पूछी जाती है यहाँ पर क्या है यहाँ मीरा बाई के दास से भक्ती परिलक्ष श्री कृष��ण की आराधना कर रही हैं ये चीज व्यक्त हो रहा है मीरा कृष्ण मिलन के लिए व्याकुल हो रही है यानि कि वो हर हाल में श्री कृष्ण से मिलना चाहती है इसलिए उन्होंने बोला कि आधी रात में जमना जी तीरे शिरी कृष्ण के रूप माधुरे का सजी वरन हुआ है जैसे उन्होंने बोला कि मोर मुकुट धारन और पी तामबर ओडे हुए हैं गले में बयजनती माला है गायों को चराते हैं तो श्री कृष्ण के माधर रूप का भी दर्शन बहुत अच्छे से किया गया है कला पक्ष में आ जाते हैं किस तरह की शब्दा वली लिए है राजस्थानी भाषा का प्रेयोग हुआ है और भावा विवेक्ती में संक्षम है यानि कि इसमें जादा तर जो है वो राजस्थानी शब्दों का इस्तिमाल किया गया है पासियों घड़ा अधिरों हैं गासियों रखियों तो बहुत सारी ऐसे शब्द हैं जादा तर जो है वो राजस्थानी भाषा के शब्दों का इस्तिमाल किया गया है भाव भागती मोर मुकुट मोहन मुरली में अनुपरास अलंकार है, उचा विच में पुनरुक्ती प्रकाश अलंकार है, संपूर्ण पद में माधुर्य गुण विद्धिमान है और गयात्मक शैली का प्रियोग ह अब इनका सार निकल कर क्या आ रहा है ये देखते हैं देखे क्या है पारिवारी दुखों से मुक्ती पानी के लिए मीरा घर द्वार छोड़ कर वरंदा वन में जा बसी एवं क्रश्न में हो गई अब क्या हुआ कि जब तक ये जो है अ है तो इसलिए जो है बार-बार जो है राजघराने से इनको वापस आने के लिए मजबूर किया जाता जब यह नहीं मानी तो उन्हें जो है वो विगन आ रहा था ठीक है तो कहते न भक्ति एकागर होकर करी जाती है दमाग में बहुत सारी टेंशन हो तो हम नहीं कर सकते तो वही चीज है बार-बार जो है उनकी भक्ति में विगन आ रहा था तो वो जो है कहां चली आई वरंदावन चली आई फिर अपने आखरी समय में द्वारिका भी आ गई थी तो वहां आकर वो पूरी तरीके से कृष्ण की भक्ति में ही लीन हो गई थी उनकी रचनाओं में उनके आराद्य कहीं निर्गुण निराकार ब्रह्म कहीं सगुण साकार गोपी वल्लब श्री कृष्ण तो कहीं न उनके कई रूपों का वर्णन हुआ है मगर उन सभी रूपों के जरिये उन्होंने सिर्फ एक बात व्यक् हैं अब आ जाते हैं इनके पहले पद में जो हम लोगों ने देखा था जहां पर उन्होंने बहुत सारे उधारण दिये थे कि किस तरीके से आप अपने भक्तों की प्रॉब्लम्स को हरते हैं मीरा बाई मनुष्य मात की पीड़ा हरने की बात करती है वे विभिन एतिहासिक एवं पौराणिक उधारणों के द्वारा अपनी बात की पुष्टी करती है वो बताती है कि भाई ये हुआ है वे द्रौपरदी, प्रहलाद, गजराज और उन पर हुई इश्वरी क्रपा को याद दिलाती हैं तो द्रौपदी को दिखाया उन्होंने प्रहलात को बताया हाती कुंजर अर्थात हाती इन सभी के उधारण देकर बताया कि किस रीके से आप अपने भक्तों की जो है पीड़ा को हर लेते हैं इन तो भाई मीरा बाई भी शिरी कृष्णी की ऐसी ही भक्त है उनकी कथा नुसार केवल ईश्वर ही जन की पीड़ा हर सकते हैं तो कर्तव विबोध का ज्यान कराने का मतलब है कि भाई मैं भी तो आपको याद करनी हूँ तो मेरी भी जो पीड़ा है उसे भी आप हर लीजी उनकी दासी बन के रहना चाहती हूँ तो ये उन्होंने अपनी तकलीफ को बया किया है कि शरी कृष्ट उनकी इस बात को सुने और उनकी बीडा को हरे दूसरा पत देखी क्या है मीरा अपने आराध्य की दासी बन कर रहने की इच्छा प्रकट करती है उन्होंने बला क्या कहते हैं गिरधर मानो चाकर राखियो जी चाकर मतलब क्या होता है नौकर तो इस तरीके से वो उनका नौकर बन के वे इश्वर के दर्शन की अभिलाशा करती हैं उनके प्रभु पीतांबर पहने हुए सिर पर मोर मुकट एवं गले में बैजन्ती माला धारन करते हैं वे वरंदा वर में गाये चराते हैं तो उनके जो प्रभु हैं उनका रूप सौंदर है बताया और वो क्या करते हैं ये बताया वे कुसुम्बी साडी पहन कर आधी रात के समय अपने आराधिकरशन के दर्शन के लिए यमुना तट पर जाना चाहती हैं जाऊंगी मीरा के लिए उनके ईश्वर कही सर्वस्य है प्रभु मिलन ना होने के कारण उनका हिर्दय अधीर हो रहा है अब वो श्री कृष्ण से हर हाल में मिलना चाहती है हार एक कोशिश कर रही है उनसे प्रार्थना कर रही है उनकी भक्ती मे तो उद्भस्क अधिर का मतलब क्या है कि वो किसी भी तरीके से सिरी कृष्ण को पालेना चाहती है ये बात बताई गई है तो इस तरीके से हमने ये मीरा बाई के दो पदों को आपके सामने एक्सपीन किया आपको बहुत अच्छे से समझ में आ गया होगा कि मीरा बाई ने इन पदों में क्या कहा है तो इसी तरीके से हम एक कर के चैप्टर लेके आ रहे हैं तो अभी हमारा सेकिन चैप्टर का एक्सप्लेनेशन हुआ है और अब इसी चैप्टर के NCERT questions यानि कि जो आपकी NCERT book में इस चैप्टर के बाद जो questions दिये गए हैं उनके solution कराएंगे ठीक है तो वो तो मिलेंगे आपको अगले वीडियो में लेकिन उससे पहले आपको definite success पाटशाला को like subscribe share करना है फटा फट ताकि हम तो चलिए मिलते हैं अगली बार अपने इसी चैप्टर के NCERT क