देखा आपने? क्या आप यकीन करेंगे? कि आज से 500 साल पहले हमारे पास एक ऐसा साउंड अलार्म सिस्टम था जो करीबन 3 स्क्वेर किलोमेटर के एरिया तक सतर करने की शम्ता रखता था 3 स्क्वेर किलोमेटर और ये सब उस टाइम पर जब ना तो वाइलेस टेली कम्यूनिकेशन था और ना ही मॉडर्न अप्लाइयंसेस का साथ तो बस आज के मेरी कोशिश यही है इंडिया के अकूस्टिक वंडर्स को जानने और समझने का एक प्रयास किसी किले के बारे में बात करते हैं तो मन में तस्वीर आती है बुलंद दर्वाजों की, तोप और बंदूकों की, खुफिया रास्तों की. पर क्या आपने कभी किले के साथ अकूस्टिक साइन्स यानी द्वनी विज्ञान के बारे में सोचा है?
यही बनाता है गोलकोंडा फोर्ट को इतना खास. हैदराबाद के पास बसा गोलकोंडा हुआ करता था सत्ता और प्रशासन का गड. इस किले की शुरुवात हुई थी 7th century AD में एक मिट्टी के किले से जिसने 16th सदी तक पहुँचते सुल्टान कुली कुतुब शाह के शासन में एक विस्तृत और मजबूत फॉर्ट सिटी का रूप लिया मैं ये सोच रही हूँ कि इन अकूस्टिकल सिस्टिम्स का इजात क्यूं और कैसे हुआ?
I think इन सवालों के जवाब से पहले हमें गोलकोंडा को समझना होगा और समझना होगा कि गोलकोंडा का उस समय डेकन की राजनीती और वहाँ की अर्थविवस्ता यानि की इकनॉमिक्स में क्या रोल था? और हाँ, गोलकोंडा को उस फेमिस अलाम अकूस्टिक सिस्टिम की क्या ज़रूरत थी जो मुझे यहां तक खीच लाया? बीते समय में गोलकोंडा एक ज़रूरी ट्रेड रूट पर पड़ता था हीरो की कोलूर माइंस पास में ही थी और इसके चलते वो हीरो के व्यापार का भी केंद्र बनता जा रहा था तो जो हीरे थे वो भी यही सुरक्षित रखे जाते थे कहा तो यहां तक जाता है कि दुनिया के 13 सबसे कीमती हीरे यहां रह चुके हैं शायद यही कारण रही होंगे कि कुली कुतुप शाह और उनके आर्किटेक्स ने एक मिट्टी के किले को ट्रांसफॉर्म किया एक अजै और अभिध्य किले में और यहां से शासित किया ना सिर्फ व्यापार बलकि पूरे दक्षिन भारत की नियती गोलकोंडा 11 किलोमेटर के विशाल दाइरे में फैला हुआ था चार जिलों में विभाजित इस किले में थे कई दरवाजे, महल और हॉल्स, इबादत के लिए मस्जित, यहां तक की एक शव स्नान घाट भी, यानी मौचरी बात, सुन्दर्ता और विभारिक्ता का बढ़िया मिश्रण। देखिए मुझे लगता है कि गोलकुंडा के बारे में एक नहीं दरजनों ऐसी चीज़ें हैं जो बहुती अजीबो गरीब हैं सबसे मज़िदार बात तो यह है कि ये गोलकुंडा का जो केला है वो एक इमारत नहीं है कई मील के घेरे में फैली हुई एक छोटी बोटी बस्ती है जिसे अंग्रिजी मुहावरे को अगर उधारने तो आप कहीएगा एक fortified city है और जो कई साल सौ साल में कई इमारतें अलग वक्त में बनी है पर शायद इन सब में सबसे innovative तक्नीकी advancement था गोलकोंडा की defense प्रनाली में द्वनी विज्ञान का प्रयोग इससे एक बात तो साफ हो जाती है उस समय में यहां के architects sound echo और उसकी amplification दोनों को अच्छी तरह जानते और समझते थे तभी तो उन्होंने मिट्टी के बर्तनों को जो की sound reflection के लिए जाने जाते हैं यूज किया बिल्डिंग के बाकी materials के साथ साउंड अलाम सिस्टम की शुरुआत होती है किले के इस बरामदे से साधारन से लगने वाले बरामदे की छट पर बने ये डाइमन शेप्ट इंडेंडेशन्स और दीवारों की जेयामती यानि की जॉमेट्रिक्स इसके लिए स्पेशली डिजाइन किये गए हैं यह वो उपर वाली सरवन्डगी दीवार है, डाइमंड शेप कट से, इसके दिर यह वैबरेशन होती है, यह आवाज रिफलेक्ट होती है, यहाँ क्लाब करने से, यह आवाज उस आर्चेस में टकरा कर, उन लुकेट पॉंट तक, लास्ट पॉंट है, वहाँ तक सुनाई सवाल कि यह जो क्लैप सिस्टम आप बता रहे हो इसका इस्तेमाल क्यों होता था यह किसी दुश्बन के आने की खबर पहुंचती थी अच्छा यह कुछ शादी बिया का काम होता खुशी का काम होता तो इसके अंदर कोड़वर्ड इस्तेमाल किये जाते थे एक ताली अच्छा अच्छा मतलब इस क्लैप सिस्टम जो आप कहे रहे हैं इसका में पॉपिस था सिक्योरिटी, सुरक्षा कोड़वर्ड सिस्टम इसके अंदर खास तोर से इस्टिमाल में लाया थे चलिए एक और दिल्चस्प चीज देखते हैं। ये देखें, बरामदे के साथ लगे आचिस कैसे बड़े से छोटे होते जा रहे हैं। इस सन्रचना की वज़े से बरामदे के गुमबत के नीचे पैदा होने वाली कोई भी आवाज, पहले कमप्रेस और फिर कुछ इस तरह अम्प्लिफाई होती है कि एक किलोमेटर दूर भी सुनी जा सकती है। किले के अकूस्टिक सिस्टिम की कहानी यही खतम नहीं होती। इस अद्बुत फिनॉमिना के पीछे छुपा राज है दर्वाजों और बिल्डिंग के बीच की सटीक यानी सही दूरिया और बाला हिसार और बरादरी के बीच एक उंदा शोध किया इंटेलिजन्ट दीवारों का अरेंज्मेंट जो ध्वनी को ऐसे रीडाइरेक्ट करता है कि वो एक छोड से दूसरे छोड बिना अपनी तीवरता कम किये ट्रावल करती है इस तरह के आर्चिस पूरी आवास को रिफ्रेक्ट करते हैं करते हैं इसलिए आवाज आती है फिर वापस चली जाती है इसीलिए राजा आपको सुन सकते थे जब मिस्त्रियों ने यह बात समझ ली तो उन्होंने इसका हर किले में इस्तेमाल किया खासतोर पर वो किले जो बहुत महत्पून थे यहां आके एक सवाल मुझे बहुत तंक कर रहा है कि अगर 500 साल पहले साउंड अकूस्टिक्स इतना आगे बढ़ गया था अच्छा कादर भाई ये हम कहा आए हैं अभी हम जज्मेंट हॉल में जा रहे हैं जज्मेंट हॉल जहां पे फैसला और फरियाद सुनी जाती थी जैसे मुगल खानदान में डंका सिस्टम था यहाँ पर क्लापिंग सिस्टम यहां ताली बजाएं तो एक आवाज आती है वो आवाज राजा के बेटरूम तक कहुँच पाती है और किसी किसम की सरसराहट भी हो तो वो आवाज भी राजा के बेटरूम तक सुन पाती है हलकी सी सरसराहट भी वहाँ तक सुनाई देती है जी हाँ 7 फिट डायामेटर के अंदर ही आवाज पूछती है 7 फिट के आगे जाएं या पीछे जाएं तो आवाज सुनाई नहीं पड़ती है आपको जैसे कि यह एक गुण जाएं यह आवाद उपर तक सुन पाएगा अच्छा मैं ऐसे कपड़ा बचाओ यहाँ पर तो उसकी एक गुण्श पैजा होती है वो सुनी यहाँ पर यह आवाद आपको सुनाई पाएगा ये जो गुण्ज है ये गुण्ज भी राजा के बिल्टूम तक सुनती है अच्छा तो ये इतनी हलकी सी आवाज भी वहाँ तक पूछ जाएगी ये हाँ बिल्कुल वहाँ से राजा आएगे उसके अंदर बैठते हैं वहाँ उनका बैठने का सिंगासा नहीं था वो खीचेगा तो उसके एक सरसराहट होती है तो इसी के लिए ये सिस्टम रखा जाता है ये गुण्ज ये सरसराहट वहाँ तक पहुँच पाता है और राजा होशयार हो जाता है हैदरबाद और गुलकुंडा फोर्ट का इतिहास आपस में गुथा हुआ है इस कनेक्शन में बसी है एक दिल्चस्प कहानी सुल्तान कुली कुतुपशा और हिंदू नर्द की भागमती के इश्क की सुल्तान ने भागमती को अपनी बेगम बनाया और हैदर महल के खिताब से नवाजा और इसी खिताब ने हैदराबाद को अपना नाम दिया और अब मैं अनुभव करने जा रही हूँ किले की सर्वोतम रचना को मैं हूँ बिरादरी में, जो है किले का हाईस्ट पॉइंट और मेरे गाइड है वहाँ, दरवाजा बालाहिसार में यानी किले के एंट्रेंस पे तो आए देखते हैं क्या ये काम करता है इमेजिन कीजिए, इस गार्ड पोस्ट पे बैठे गार्ड को जैसे ही दुश्मन की आहट सुनाई देती, वो इस अकूस्टिक अलाम सिस्टम से किले के बाकी गार्ड को अलर्ड कर देता। इससे पहले कि दुश्मन आक्रमन कर पाए, किले के सारे दर्वाजे और राफ बंद कर दिये जाते और फिर किले के सैनेक आक्रमन कारियों को धर्द बोचते। पर अफसोस, जो बल से कभी संभव नहीं हुआ, वो एक विश्वास खाती ने कर दिखाया। वो ही गोलकोंडा के साथ हुआ जब ओरिंग जेम ने इस पर हमला किया तो जिसके पास दरवाजी की कुझी थी उस व्यक्ति को उसने घूस देकर लालज देकर अपनी तरफ कर दिया और जब कोई चोकरना नहीं था उसने उसकी हमलावरों को भीतर प्रवेश करने का मौका दि अगर आपको इस दिवारे पर गोलगुंबस की दिवारे पर फाइनली ये है तो एक मगबरा ही जहां सुल्तान उनका परिवार और उनकी प्रेमिका दफन है गोलगुम्बस के पीछे की कहानी उसी की तरह इंट्रिस्टिंग है कहते हैं मुहम्मद आदिल शाह द्वितीय अपना मगबरा अपने पिता के मगबरे एब्राहिम रोजा से बहतर बनाना चाहते थे अहम ने क्या लाजवाब इमारत का रूप लिया तीस सालों में तयार हुआ बीजापुर का गुलगुम्बस दुनिया के सबसे बड़े सिंगल चेंबर स्ट्रक्चर्ज में से एक है इंडो इस्लामिक आर्किटेक्चर का बहतरी मिश्रन इस मगबरे की एक और खासियत है यहां देखने और सुनने को मिलता है आर्किटेक्चरल अकूस्टिक्स यानी द्वनी विज्ञान का बेमिसाल नमूना वाओ तो आप इस अकूस्टिक वांडर की बात कर रहे थे आपके आवाज कितनी बार गूँजी होगी साथ आठ बार आपको आवाजे गूँजने का सुनाई दिया और 26 सेकेंड आपके आवाजों को गूँजता हुआ सुनाई दिया एक ही बीडिंग है और वर्ल्ड में जो ऐसा वाश गुंसता हो और इस सबसे अनुका है हमारा गोल गुंपर्स मैं जितना ज्यादा ऐसे देखती हूं उतनी हैरत में पड़ जाती हूं आखिर 1656 16 इस गुंबस का भार किसी भी विजबल कॉलम या पिलर ने नहीं उठाया हुआ है। देखकर ऐसा लगता है जैसे आस्मान से टंगा हो। पर आखिर ये खड़ा किस पर है। इसके पीछे लॉजिक क्या है। स्ट्रक्चर को बनाने के लिए आठ आचिस खड़े किये गए हैं। और ये स्ट्रक्चर 90 फीट उची है। इस स्ट्रक्चर के कंधों पर गुमबत को बनाया गया। इस कारण देख कर ऐसा लगता है कि गुमबत को मुकुट की तरह आचिस के उपर बैठाया गया हो। पेंडेंटिव विज्ञान का ये अपने समय में अनोखा नमूना था। और पूरे भारत में इसकी तुलना किसी और से नहीं की जा सकती। ये एक चोकोर चबुत्रे पर वर्गाकार खड़ा किया गया है और बहुत भारी भरकम गुमबद है और इसको सपोर्ट करने के लिए कोई खंबे या पिलर्स नहीं है। तो इस तरह की दूसरी कोई architectural construction हिंदुस्तान में तो छोड़ी है दुनिया में और जग भी देखने को आपको बहुत मुश्किल से मिलती है। मैं हमेशा सोचती हूँ कि बीते समय में architects इतने विशाल water systems, गगन चूमती इमारतें। या फिर ऐसे acoustic systems बिना किसी modern technology या machinery के भना कैसे लेते थे I mean सोची कैसे इस गुमबस के base में बनी गैलरी जो की 11 feet चोड़ी है विश्व प्रसित विस्पिरिंग गैलरी बन गए। कितने साइंटिफिक और ब्रिलियंट होंगे वो माइंस जिन्होंने तब ये सोचा होगा। इस तरह के पैचवर्क शिल्पकला वा आर्किटेक्चर में ऐसा प्रभाव पैदा करते हैं। गुम्बत का आकार फुसाहट को गूँच में तबदील करता है। इस तरह का फिनोमिना संथ पॉल केथिडरल में भी देखने को मिलता है। आप आठ बार गूज सून सकते हैं और उसका कारण है वो गैलरी जिसके अंदर आप सिर्फ टेरस से जा सकते हैं विस्परिंग गैलरीज तक पहुँचते तो मेरी जान निकलने वाली है सेवन फ्लोर्स चड़ना वो भी इन मीनारों की घुमावदार सीडियों पर पर I'm sure it'll be worth it सोयस प्रसिद्ध विस्परिंग विस्परिंग गैलरी के दरवाजे तक तो हम पहुँच गए आईए देखते हैं क्या ये सच में विस्पर करती है आदलशा मगबरे के इस हिस्से को अपने जीवन काल में महफिलों, मुलाकातों और मनुरंजन के लिए इस्तिमाल किया करते थे रा इस गैलरी में और साथ ही ये गैलरी सुल्तान के प्यार की गवाह में रही यही नर्थ की रंभा के गुंग्रो की गूंज उनके बीच की दूरियों को कम करती थी राजशेकर जी बोलिया मेड़ाम आप विस्परिंग गैलरी के बारे में कुछ बोल रहे थे ओके तु सुनिये आप हमसे कितने डिस्टंस पे हैं?
एक सुन चोवी स्पूर्ण तो मेरा चेहरा आपको बिल्कुल क्लीन नहीं दिख रहा है लेकिन मेरी आवाज बिल्कुल क्लीन जा रही है जैसे कि हम फोन में डिस्कस कर रहे हैं तो इतने दूर पे भी हम इतना clean बात कर सकते हैं इस whisper ग्याल के लिए वाओ ये actually टेलेफोनी conversation लग रहा है in fact louder यहाँ से अगर मैं हाथ को गसा आपके वाज़ आएगी जो पेपर को पाड़ूंगा उसकी भी वाज़ आएगी अगर बॉटल को touch भी करूँगा वहाँ बिल्कुल clean सुनाई देगी तो touch the paper वार्थ अलब ये भी है कि यहां की आवाजे नीचे के हॉल में सुनाई नहीं देती थी अच्छा आप कह रहे थे कोईन के गिरने की आवाज भी सुनाई देगी वो सुनाई है अगर ये कैसे मुम्किन है? एक कॉइन का गिरना, 124 फीट दूर भी इतनी क्लियरली कैसे सुनाई दे सकता है? मानो बगल में लाउट स्पीकर लगाया हो? ये पॉसिबल होता है साउंड के कर्व लीनियर प्रॉपगेशन की वज़े से इसका मतलब है कि साउंड गोल गुमबस में एक करवट पाथ पर सफर करता है। गुमबत की दीवार चिकनी और गोल है। इसलिए जब आप कुछ भी बोलते हैं, तो शब दीवार पर चिपक कर आगे जाता है। शब की इंटेंसिटी गिरने से पहले ही रिफलेक्ट हो जाती है। इसी वज़े से उसकी इंटेंसिटी दूसरी तरफ पहुँचने तक बरकरार रहती है। आर्चिस ऐसे बने हैं कि आवाज आर्चिस के उपर टकराती है। और फिर नीचे नहीं आ पाती है इसलिए आवाज सिर्फ गैलरी में सुनाई देती है नीचे नहीं सुल्तान आदिल शाह और रंभा का प्यार इतना गहरा था कि मरते वक्त रंभा ने सुल्तान से एक ही वादा मांगा इस मकबरे की दोगस जमीन मगर सुल्तान के बगल में उनकी बेगम से पहले और इस ख्वाहिश को सुल्तान ने पूरा भी किया गौर से सोचो तो आज की दोनों सन्रचनाएं गोलकोंडा और गोलगुम्बस हैं तो इंडिया के अकूस्टिक मावल्स पर दोनों की सन्रचना हुई दो बिल्कुल विपरित भावों से एक है प्रेम का प्रतीक और एक तयार किया गया जंग के लिए तो ये थी प्राचीन भारत की अचंभित कर देने वाली ग्यान और विज्ञान की दो सन्रचनाएं सफर जारी रहेगा नई सन्रचना की खोज के साथ प्रेम प्र