Study IQ IS अब तयारी हुई अफोर्टबल Welcome to Study IQ मेरा नाम है आदेश सिंग History of Uttar Pradesh दुस्तों, आज हम जिस राज्य की बात करने जा रहे हैं वो कोई आम राज्य नहीं है वैसे आम तो कोई राज्य नहीं सबी राज्यों की अपनी विशेष्टा है लेकिन ये राज्य भारत में होने वाली किसी भी बात या घटना पर ये श्रीराम, श्रीकृष्ण और बुद्ध की जन्म भूमी है, तो कबीर और महावीर का कर्मस्थल, यहीं पर गंगा शिव में समाहित हुई है, और यहीं की मिट्टी से लक्ष्मी बाई और मंगल पांडे जैसे सबूतों ने जन्म लिया है। इस राज्य की धर्ती ने भारत को सबसे ज्यादा प्रधान मंतरी दिये हैं। कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता की राह इसी राज्य से होकर गुजरती है। यह राज्य देश की राजनीती की दिशा और दशा तै करता है। तो वहीं आर्थिक मुद्दों में भी यह सबस ये अपनी गंगा जमुनी तहजीब और अपनी नजाकत के लिए सारी दुनिया में फेमस है। दोस्तों, हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश की। भारत के उत्तर मध्य में बसा उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला और चौथा सबसे बड़ा राज्य है। ये राज्य जितना नएपन से भरा है, उत्तर वैदिक काल में इसे ब्रह्म रिशी देश या मध्य देश की नाम से जाना जाता था। ये वैदिक काल के कई महान रिशी मुनियों जैसे भारतवाज, गौतम, याग्यवल्किय, वशिष्ठ, विश्वामित्र और वाल्मी की आदी की तपु भूमी रहा आर्यों की कई पवित्र पुस्तकें भी यहीं लिखी गई भारत के दो महान महाकावियों, रामायन और महाभारत की कथा भी इसी क्षेत्र पर आधारित है उत्तर प्रदेश का इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है जब आर्यों ने इस सरजमी पर कदम रखा और वैदिक सभिता का आरम हुआ तभी से यहां का इतिहास मिलता है आर्य सिंदू और सतलज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी भाग की ओर बढ़े। इन्होंने यमुना और गंगा के मैदानी भाग और घागराक शेत्र को अपना घर बनाया। इन ही आरियों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यवर्त अथवा भारत वर्ष पड़ उत्तर प्रदेश के उस इतिहास से रूबरू कराएंगे, जिसके बारे में किताबों में बहुत कम जानकारी है। तो आईए, चलते हैं उत्तर प्रदेश के एतिहासिक सफर पर। Ancient History of Uttar Pradesh उत्तर प्रदेश के एतिहासिक पन्नों को पल्टें, तो हम पाते हैं कि इसकी शुरुवात पुरातात्विक काल से होती है। पुरातात्विक अन्वेशनों ने अबके उत्तर प्रदेश की प्राग एतिहासिक सभिता पर नई रोशनी डाली है। प्रतापगड में पाई गई मानव खोपडियों के अवशेश लगभग 10,000 ईसापूर्व के हैं. पुरा पाशानकालीन सभिता के साक्ष इलाबाद के बेलन घाटी, सोनभद्र के सिंगरॉली घाटी और चंदौली के चकिया नामक पुरा स्थलों से मिले हैं. इसके साथ ही कबीर नगर जिले में लहरादेव इलाके में प्राचीन कृषी के साक्ष मिले हैं.
यहां से 8,000 ईसापूर्व से 9,000 ईसापूर्व के मध्य के चावल मिले हैं. नव पाशानकाल के साक्षों की बात करें, बुंदेलखंड और प्रताबगड के सराय नाहर राय से उत्खरनन में आउजार और हथियार मिले हैं वहीं तामर पाशानिक संस्कृति के साक्ष मेरट और सहरनपुर से प्राप्त हुए हैं इसके बाद हडपा काल के साक्ष भी उत्तर प्रदेश में पाए गए हैं बता दें कि उत्तर प्रदेश में आलमगीरपुर गंगा यमुना में पहला स्थल था जहां से इसके अलावा मेरट, सहरनपुर, जॉनपुर, आगरा, अलीगड, बदाईयूं मथुरा, फैजाबाद, एटा, बरेली, वाराणसी, साहरनपुर, मथुरा, कन्नौज, बुलनशेर, बलिया और इलाबाद में भी हडपा कालीन सभिता के साक्ष मिले हैं। आगे वैदिक साहित्य और दो महाकावियों रामायन और महभारत से इस क्षेत्र के सात्वी शताब्दी ईसापूर्व के पहले की जानकारी मिलती हैं। वैदिक साहित्य गंगा के मैदान का वर्णन करते हैं। वहीं महभारत की पूरी गाथा हस्तिनापूर के आसपास घूमती हैं। जबकि रामायन में भगवान राम का जन्मस्थान पूरी गाथा हस्तिनापूर के आसपास घूमती हैं। अयोध्या है। देखा जाये तो उत्तर प्रदेश में एक व्यवस्थित इतिहास की शुरुआत छटी शताब्दी ईसापूर्व के अंत में होती है। जब उत्तर भारत में सोलह महा जनपद वर्चस्व के लिए संघर्ष कर रहे थे। उन सोलह महा जनपदों में से आठ महा इसी दौरान उत्तर प्रदेश ने भगवान बुद्ध के आगमन और बौद धर्म के प्रसार को देखा। यहीं पर गौतम बुद्ध ने अपना अधिकांश सन्यास भगवान बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के सारनात में अपना पहला उपदेश दिया था। चौखंडी स्तूप यहां उस स्थान को चिन्हित करता है, जहां भगवान बुद्ध अपने शिष्यों से मिले थे। इसी कारण उत्तर प्रदेश को बौद धर्म का पालना कहते है उत्तर प्रदेश का विकास मौर्य सम्राट चंद्र गुप्त प्रथम 330-380 ईसा पूर्व के काल में देखने को मिला। इसके बाद 268-232 ईसा पूर्व तक सम्राट अशोक ने यहाँ पर अपने सामराज्य का विस्थार किया। अशोक काल के दोरान कला और वास्तो कला अपने चरम पर थे। पहली शताबदी इस्वी में कुषाणों ने एक ऐसे विस्तृत सामराज्य की स्थापना की, जिसमें उत्तरी भारत के अधिकांश भाग के अतिरिक्त मध्य एशिया के कुछ प्रदेश भी शामल थे। भारतिय संस्कृति के इतिहास में कुषाण काल का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। कुषाणों के संरक्षन में भारत ने धर्म, कला, साहित्य, दर्शन आदी के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नती की। कुषाण शासकों के प्रयासों से ही भारतिय सभ्यता और संस्कृति क कुशानों ने उन परिस्थितियों में लगातार दू सदियों तक उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत पर शासन किया। कुशान काल में मथुरा कला का विस्तार हुआ। मथुरा कुशान नरेशों की राजधानी रही है। साथ ही वो उत्तर भारत का एक बड़ा व्यापारिक लगभग 330 से लेकर 380 इसवी तक इस सरजमी पर शासन किया। उनके बाद चंद्र गुप्त द्वितिय ने लगभग 380 से लेकर 415 इसवी तक यहां पर राज किया। गुप्त काल के दोरान ही हिंदू कला का भी काफी विकास हुआ। गुप्त सामराज्य को तोड़ने वाले हुणों के आकरमण के बाद गंगा यमुना दौआब ने कन्नौज का उदै देखा। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्ष वर्धन ने 606 से लेकर 647 इसवी तक उत्तर प्रदेश पर शासन किया। इन्होंने कन्नौज के पास थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों पर शासन किया। हर्ष वर्धन के शासन काल के दोरान कन्नौज सामराज्य अपने चर्मोत कर्ष पर पहुँच गया था। हर्ष वर्धन की मृत्यू के तुरंद बाद उनका सामराज्य कई राज्यों में बिखर गया। जिसके बाद इस क्षेत्र पर नियंतरन करने के लिए त्रिकोणिय संघ पूर्व से बंगाल के पाल सामराज्य और दक्षिन में दक्कन में आधार भूत राष्ट्रकूट सामराज्य शामिल थे। गुर्जर प्रतिहार शासक वच्चराज ने कन्नौज के नियंतरन के लिए पाल शासक धर्मपाल और राष्ट्रकूट राजा दंती दुर्ग को सफलता पूर्वक चुनौती दी और पराजित कर दो राज छत्रों पर कबजा कर लिया। कन्नौज गुर्जर प्रतिहार सामराज्य का केंद्र बन गया। अपनी शक्ती के चर्मोत कर्ष के दोरान अधिकतर उत्तरी भारत पर इनका अधिकार रहा। मध्यकाल में उत्तर प्रदेश मुस्लिम शासकों के आधिन हो गया था, जिससे हिंदू और इस्लाम धर्म के पास आने से एक नई मिली जुली संस्कृति का विकास हुआ. आईए जानते हैं उत्तर प्रदेश के मध्यकाल को. Medieval History of Uttar Pradesh भारत में एक हजार से एक हजार तीस इसवी तक मुसल्मानों का आगमन हो चुका था. लेकिन उत्तरी भारत में बारवी शताबदी के अंतिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासक स्थापित हुए, जब मुहम्मद गौरी ने गहडवाल राजवंश और दूसरे शासकों को हराया। बता दें कि गहडवाल राजवंश ने 11 वी शताबदी से लेकर 12 वी शताबदी तक उत्तर प्रदेश पर शासन किया था। दास वंश की स्थापना की और अधिकारों पर कबजा किया। उसने 1210 इसवी तक शासन किया। मुहम्मद जलालुद्दीन खिलजी ने दास वंश के अंतिम सुल्तान को खाड़ फेका। और दिली के सुल्तानु का खिलजी वंश स्थापित किया। जिसने 1290 से 1320 इसवी तक श शरकी वंश की स्थापना हुई। शरकीयों ने जौनपुर को अपनी राजधानी बनाया, जो एक शताबदी से कम समय तक रही। इस वंश को 1489 इसवी में सुल्तान बहलोल लोधी ने पराजित किया। 1414 से 1526 इसवी तक दिल्ली की बागडोर, सयद और लोधी राजाओं के हा सिकंदर लोधी के शासन काल के दोरान 1504 इसवी में आगरा को उपराजधानी का दर्जा दिया गया। सिकंदर लोधी के बाद इब्राहिम लोधी आगरा की गद्धी पर बैठा। लगभग 600 सालों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी ना किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केंद्र दिल्ली या उसके आसपास था। और सरवाधिक सभल मुस्लिम वंश मुगल वंश की नीव रखी। इस सामराज्य ने 200 सालों से भी अधिक समय तक उपमाधुई पर शासन किया। जो अफगानिस्तान से बांगलादेश तक फैला हुआ था। जिसकी शक्ती उत्तर प्रदेश में केंद्र कृत थी। चौसा के युद्ध में मुगल राजा हुमायू को सूरी वंश के राजा शेर शाहसूरी ने हराया। और उत्तर प्रदेश पर सूरी वंश का राज शुरू हो गया। शेर शाहसूरी और इसलाम शाहसूरी ने अपनी राजधानी के रूप में ग्वालियर से शासन किया इसलाम शाह सूरी की मृत्यू ने हेमू के लिए दिल्ली पर शासन करने का रास्ता खोल दिया पानीपत की दूसरी लड़ाई में मुगल वंश के सबसे प्रमुख राजा अकबर ने हेमू से सत्ता छीन ले और एक बार फिर इस सामराज्य का महनतम काल अकबर से लेकर औरंगजेब और आलमगीर का काल था जिसका शासन काल 1556 से 1605 इसवी तक जिन्होंने आग्रा के पास नई शाही राजधानी फतैपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहान, जिनका शासन काल 1628 से 1658 इस्वी तक था, उन्होंने आग्रा में अपनी बेगम की याद में ताज महल बनवाया। शाहजहान आग्रा और दिल्ली में भी आर्किटेक्चर की दृष्टि से कई इमारते बनवाई थी। बात जाहे सल्तनत काल की हो या फिर मुगल काल की। हर समय में उत्तर प्रदेश प्रासंगी क्राह। अकबर ने तो उत्तर प्रदेश की माटी को अपना सब कुछ मान लिया था। अकबर ने फतैपुर सीकरी और इलाबाद में जो केले बनवाए थे, उसी की नीव पर मुगल वंश सैक्डों साल तक बना रहा। इसके अलावा सल्तनत काल में संभल हो या आगरा जौनपुर सभी और मुस्लिम संस्कृति से मिली जुली एक नई संस्कृति का विकास किया। इस संस्कृति के जन्मदाता अकबर ही थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दर्बार में आकिटेक्चरल, लिटरिचर, पेंटिंग और म्यूजिक एक्सपर्ट्स को नियुक्त किया था। और उनका विकास किया था। अठारवी शताबदी में मुगलों के पतन के साथ ही इस मिश्रित संस्कृती का केंद्र दिल्ली से लखनो चला गया और जहां सांप्रदायिक सद्भाव के महौल में कला, साहित्य, संगीत और काव्य का विकास हुआ। जब उत्तर प्रदेश आधुनिक भारत के पढ़ाओं पर पहुंचा, तो उत्तर प्रदेश का अलग ही रूप देखने को मिला। चलिए जानते हैं उत्तर प्रदेश का आधुनिक इतिहास। Modern History of Uttar Pradesh 1707 में औरंगजेब की मृत्यू के पश्चात, अगले 50 सालों तक दिल्ली की गद्दी पर कुल अधिक प्रदेश का अलग ही रूप देखने को मिला। आठ मुगल शासकों ने शासन किया सत्रा सो सत्तावन तक वर्तमान उत्तर प्रदेश में पांच स्वतंत्र राज्य स्थापित हो चुके थे इस दोरान अवध और रुहेल दो ऐसे क्षेत्र बन गए जो शक्ती के संघर्ष को और अवध और रुहेला ने इधर सत्रवी शताब्दी के मद्य तक और अब वो उत्तर भारत की ओर बढ़ रहे थे अठारवी शताबदी में आते मुगल सत्ता का पतन हो गया इधर इस्ट इंडिया कमपनी उत्तर भारत में अपनी जड़े जमाने लगी उसने शुरुवात में विभिन समराज्यों से इसमें नवाबों के प्रांत अवध, गुआलियर के सिंधिया 1834 में इस्ट इंडिया कमपनी ने जिसे आगरा प्रेजिडेंसी कहा गया सन 1857 की क्रांती की शुरुवात भी उत्तर प्रदेश के मेरट शहर से ही हुई थी ये क्रांती लगभग एक साल तक चली और धीरे पूरे उत्तर भारत में फैल गई इस क्रांती को भारत का पहला स्वतंतरता संग्राम नाम दिया गया इस संग्राम में जहांसी की राणी लक्ष्मी बाई, अवध की बेगम हजरत महल, बख्त खान, नाना साहब, तातिया टोपे आदी अनेक देश भक्तों ने भाग लिया 1858 इसवी में विद्रोह के दमन के बाद इस्ट इंडिया कंपनी को भारत का शासन बृतिश ताज को सौंपना पड़ा। 1880 इसवी के बाद भारती राष्टवाद के उदय के साथ उत्तर प्रदेश का प्रांत स्वतंत्रता आंदोलन में भी सबसे आगे इस प्रदेश ने भारत को मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालविय, जवाहरलाल नेहरू और पुरुशुत्तम दास टंडन जैसे महत्वपूर्ण राश्टरबादी राजनैतिक नेता दिया। और लखनव में उच्छ नियायाले की एक हाई कोर्ट बेंच स्थापित की गई। और संचार के साधनों का व्यापक विकास हुआ अंग्रेजों ने यहां आधुनिक शिक्षा और वेस्टन कल्चर को भी बढ़ावा दिया इसी के तहट यहां पर 1921 में लखनाओ विश्व विद्याले की स्थापना हुई बाद में 1935 में इसका संक्षिप्त नाम टिहरी गडवाल और रामपुर स्वतंत्र राज्यों को युनाइटिट प्रोविंसेस में शामिल कर लिया गया। 24 जनवरी 1950 को गवर्नमंट अव इंडिया एक्ट 1935 के तहट युनाइटिट प्रोविंसेस का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश कर दिया गया था। लेकिन सन 2000 में उत्तर प्रदेश का विभाजन कर एक नए राज्य उत्तराखंड की स्थापना की गई। दरसल उत्तर प्रदेश के गठन के तुरंत बाद राज्य के हिमालई क्षेत्रों में अशान्ती विकसत हो गई थी। इतनी ज्यादा जनसंख्या और इतने बड़े एरिया के कारण लखनाओं में बैठी सरकार उन पर ध्यान नहीं देगी और उनकी देखरेक नहीं कर सकेगी व्यापक बेरोजगारी, घरीबी और अपरियाप्त बुनियादी धांचे ने उनके असंतोष में योगदान दिया 1990 के दशक में एक अलग राज्य की उनकी मांग में तेजी आई 2 अक्टूबर 1994 को मुजफर नगर में एक हिंसक घटना से आंदोलन बढ़ गया जब पुलीस ने राज्य समर्थक प्रदर्शन कारियों पर गोली बारी की जहां बहुत से लोग मारे गए। अंतमे नवंबर 2000 में उत्तरांचल को उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी हिस्से से अलग कर एक नए राजिका गठन किया गया। 2007 में इसका नाम बदल कर उत्तराखंड रख दिया गया। तो दोस्तों ये थी उत्तर प्रदेश की गौरवगा था। ये मुगलों के पर्चम, पतन और अंग्रेजों के आगमन का गबाह बना। यहां की मिट्टी ने अंग्रेजों की गुलामी देखी है। तो इसी मिट्टी से क्रांती की चिंगारी भी उठी है उत्तर प्रदेश की धर्ती हमेशा से सोना उगलने वाली रही। तभी तो अंग्रेजों ने बंगाल हाथ में आने के बाद भी उत्तर प्रदेश पर कबजा करने के लिए अपना सब कुछ जोंग दिया। अटल बिहारी वाज पे इतक शामिल हैं उत्तर प्रदेश के इतिहाज से अगर कुछ अनकहिक किस्से आपको भी मालूम हैं तो कॉमेंट सेक्षन में हमारे साथ जरूर शेर करें दोस्तों अंत में UPSC मेंस के रेलिवेंस को देखते हुए Study IQ IS अब तयारी हुई Affordable