मुद्रास्फीति (Inflation)
परिभाषा
- मुद्रास्फीति को महंगाई भी कहते हैं।
- यह सामान और सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर में वृद्धि को दर्शाता है।
- इससे मुद्रा की क्रय शक्ति घटती है, यानि पहले जहाँ ₹1 में अधिक खरीदा जा सकता था, अब कम हो पाता है।
मुद्रास्फीति के कारण
मांग-संचालित इन्फ्लेशन
- डिमांड बढ़ना: जब वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है, लेकिन आपूर्ति स्थिर रहती है।
- सरकारी खर्च: सार्वजनिक व्यय में वृद्धि से बाजार में अधिक पैसा आता है, जिससे मांग बढ़ती है।
- निजी निवेश: निजी क्षेत्रों में अधिक मुनाफे के कारण लोग अधिक खर्च करते हैं।
- निर्यात में बढ़ोतरी: जब अधिक उत्पादन विदेशों में निर्यात होता है, तो घरेलू मांग की आपूर्ति कम हो जाती है।
- जनसंख्या वृद्धि: अधिक लोग अधिक चीजों की मांग करते हैं।
आपूर्ति-संचालित इन्फ्लेशन
- सप्लाई में कमी: वस्तुओं की आपूर्ति में कमी से मूल्य बढ़ते हैं।
- उत्पादन कारकों की कमी: भूमि, श्रम, पूंजी आदि की कमी से उत्पादन घटता है।
- भंडारण: कुछ व्यापारी वस्तुओं को छुपा कर रखते हैं और बाद में ऊँचे दाम पर बेचते हैं।
मुद्रास्फीति के प्रकार
- क्रीपिंग इन्फ्लेशन: जब मूल्य 1-2% प्रति वर्ष बढ़ते हैं।
- वॉकिंग इन्फ्लेशन: जब मूल्य 3-4% प्रति वर्ष बढ़ते हैं।
- रनिंग इन्फ्लेशन: जब मूल्य 5-6% या अधिक बढ़ते हैं।
- गैलोपिंग इन्फ्लेशन: जब मूल्य 10% या अधिक हो जाते हैं।
- हाइपरइन्फ्लेशन: जब मूल्य अत्यधिक और तेज़ी से बढ़ते हैं।
मुद्रास्फीति का नियंत्रण
- मॉनिटरी पॉलिसी: बैंक अपने ब्याज दरों को बढ़ाकर पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करते हैं।
- फिस्कल पॉलिसी: सरकार अपने खर्च को कम करती है और कर बढ़ाती है।
- क्रेडिट कंट्रोल: बैंकों द्वारा लोन देने पर रोक लगाई जाती है।
अन्य प्रकार की स्थिति
- स्टैगफ्लेशन: जब उच्च मुद्रास्फीति और उच्च बेरोजगारी एक साथ होती हैं।
- डिफ्लेशन: सामान्य मूल्य स्तर में कमी, इससे वस्तुओं की कीमत घटती है।
इन सब प्रक्रियाओं और कारणों के अनुसार मुद्रास्फीति का प्रभाव और नियंत्रण विभिन्न आर्थिक स्थितियों पर निर्भर करता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि मुद्रास्फीति कैसे हमारी आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है।