जिसमें धरती की तरह पानी और सात खंडों की तरह सात आंतरिक अंग होते हैं जब हम ध्यान के माध्यम से इस अवस्था में प्रवेश करते हैं तब हम पानी की तरह एकदम हल्का सा अनुभव करते हैं कुछ क्षण के लिए हो सकता है कि हम इस शरीर और मन से परे हो जाएं जैसे कि सांस बंद हो जाना इवोलेट विचार बंद हो जाना और शरीर का अनुभव छोड़ देना यानी कुछ ऐसा अनुभव कि शरीर बाहरी ब्रह्मांड में घुल गया हो अब यह जो एक इन पद्धति है वह जापानी शिंतो समम कल्चर में सिखाई जाती है यह एक सोचने की पद्धति है जो हमारे मन पर संयम करने में बहुत उपयोगी है कि आधुनिक विज्ञान के मुताबिक जैसे मस्तिष्क की शक्ति हमारी होते हुए भी हम उसका पूरा उपयोग नहीं कर पाते उसी तरह हमारी शरीर की ऊर्जा भी हम पूरी तरह से उपयोग नहीं कर पाते तीन गुण वाले भोजन से तीन गुण वाली ऊर्जा बनती है ध्यान से ऊर्जा निर्गुण होती है और ऊपर की ओर दिशा पकड़ती है लिनी योग से जगती है तो फिर नींद से संग्रहित होती है प्रेम से विस्तारित होती है तो भय से सिकुड़ी है काम वासना से ऊर्जा नीचे गिरती है और समाधि से एक विराट अवस्था में विलीन होती है अगर आधुनिक दिन के फिजिक्स पर चलने वाले मेडिटेशन पर नजर डाली जाए हर कोई मेडिटेशन जैसे कि एस्ट्रल प्रोजेक्शन मेडिटेशन और ट्रांसिड मेडिटेशन जो सभी मेडिटेशन संगीत की कंपन की मदद से बहुत आसानी से ध्यान की गहराई में उतरने का प्रयोग करते हैं वह मन की उम्दा गहराई में जाकर स्थित हो जाती है जैसे कोई वृक्ष का बीज बदला गया हो और प्राकृतिक संयंत्र के अनुसार वह वृक्ष अपने फल भी कुछ अलग प्रकार के देने लगे जैसे हम खुद को ही एक सही तरीके से और अपने मर्जी के मुताबिक हिप्नोटाइज करते हैं कुछ देर इस प्रकार का प्रयोग करने के बाद पाएंगे कि जो आंतरिक आवाज है वह शांत हो चुकी है और फिर से खुद पर काबू संपूर्ण रूप से हमारे हाथ में आ चुका है चित्ता वृत्ति निरोधा पतंजलि योग शास्त्र के मुताबिक हमारे मन के मूलभूत तीन कार्यशील पहलू होते हैं चित्ता यानी कि माइंड स्टफ या फिर जिवंत चेतना वृति यानी कि चेतना की वृति या फिर उनकी दिशा और निरोधा यानी कि संयम हमारी जीवंत चेतना की दिशा पर काबू करना या फिर उसे सही दिशा पर संयम करके एक चित्त लगाना जिसे पतंजलि शास्त्र के मुताबिक चित्ता वृत्ति निरोधा ध्यान अवस्था कहा जाता है ह्यूमन ब्रेन जिसे माइंड या फिर यौगिक भाषा में मन भी कहते हैं पहले समझते हैं कि हमारे इस मन के मूलभूत कार्य क्या होते हैं और इसमें से कौन सी सी चीजें हम कंट्रोल कर पाते हैं और कौन सी चीजें हमारे कंट्रोल के बाहर होती है हमारा शरीर एक जटिल बायोलॉजिकल रचना से बना हुआ है इस शरीर की जटिल रचना को कंट्रोल करना एवं हमारे विचारों को एक स्मृति प्रदान करना और इंद्रियों को अनुभव करना यह तीन मूलभूत कार्य हमारे मन के होते हैं अब इनमें से कुछ ऐसी चीजें हैं जिसे हम डायरेक्टली कंट्रोल नहीं कर सकते जैसे कि शरीर की बायोलॉजिकल रिदम में इंटरफेयर करना या फिर इंद्रिय के अनुभव को रोक पाना जिसे विज्ञान की भाषा में इंवॉलंटरी एक्टिविटी कहते हैं अब जिस क्षेत्र पर हम काबू कर सकते हैं तो वह है हमारे विचार कल्पना और इमोशंस अगर कल्पना की बात करें तो कल्पना हमारे विचारों की जड़ से जुड़ी हुई है बिना विचार के कल्पना संभव ही नहीं है और आगे इमोशंस की जड़ को समझे तो वह हमारे शरीर की इंद्रियों के साथ जुड़े हुए होते हैं जिसे आधुनिक भाषा में मूड इमोशंस या फिर यौगिक भाषा में इंद्रिय के अनुभव कहते हैं पहला योग है संगीत इस ध्वनि की अपनी अपनी एक फ्रीक्वेंसी होती है फिर वह मानव सर्जित धुन हो या फिर प्राकृतिक कोई आवाज हर कोई आवाज या फिर हर कोई ध्वनि हमारे इमोशंस के साथ जुड़ी हुई होती है अगर कोई हॉरर फिल्म बिना आवाज के देखा जाए तो शायद हो सकता है कि हमारे मन में डर का उद्गम भी ना हो जैसे हर कोई ध्वनि अपने अंदर से एक फ्रीक्वेंसी प्रोड्यूस करती है उसी तरह हर वह ध्वनि इंसानी शरीर एक रिसीवर की तरह अंतरलीन यानी अपने अंदर समा लेता है और उसी फ्रीक्वेंसी के कारण हम कुछ अलग महसूस करते हैं जितनी गाठ फ्रीक्वेंसी उतना उम्दा अनुभव विज्ञान की दृष्टि से हमारे कंठ के अंदर स्वर पेटी होती है जो हमारे बोलने के समय और सोचने के समय एक कंपन उत्पन्न कराती है सोचने के समय इसलिए क्योंकि जब भी हम कुछ अच्छा सकारात्मक सोचते हैं तब वह एक सकारात्मक कंपन उत्पन्न करती है और इसी कंपन को हमारा मन अनुभव करता है इसी कारण हमारी सोच हमें सुख या दुख अनुभव कराती है बाह्य मदद अगर यही चीज बाह्य मदद से की जाए यानी कि संगीत की मदद से तब यह कंपन आंतरिक कंपन के साथ एक समान ताल में मिलाती है और कुछ क्षण के लिए उस संगीत के कारण हम अलग महसूस करते हैं शायद इसी कारण वश हमारे शास्त्रों ने मंत्र की खोज की अगर किसी भी इष्ट का या फिर किसी भी देवी देवता का मंत्र निरंतर बोला जाए या फिर निरंतर सुना जाए तो कुछ ही क्षण में हमें कुछ अलग सा महसूस हो सकता है और इसी के पीछे का यौगिक विज्ञान भी यही है कंपन कंपन का प्रयोग अगर इस कंपन का आप कभी भी प्रयोग करना चाहे तो सोते समय कर सकते हैं सोते समय हमें मन में यह बार-बार बोलना है कि मेरा शरीर और मेरा मन सो जाएगा पर मैं नहीं और कुछ अंतर पर बीटा वेव्स चलानी है यह प्रयोग खुद को हिप्नोटाइज करने के लिए और लुसिडो पाने के लिए मदद रूप साबित होगा विज्ञान के अनुसार मूलभूत पांच तरह की कंपन होती है जो डायरेक्टली हमारे दिमाग पर और हमारे इमोशंस पर असर डालती है और इसी वेव्स में सभी सन गीत और सभी धुन का समाविष्ट होता है वेस्टर्न कल्चर में अगर आधुनिक दिन के फिजिक्स पर चलने वाले मेडिटेशन पर नजर डाली जाए हर कोई मेडिटेशन जैसे कि एस्ट्रल प्रोजेक्शन मेडिटेशन और ट्रांसिड मेडिटेशन जो सभी मेडिटेशन संगीत की कंपन की मदद से बहुत आसान से ध्यान की गहराई में उतरने का प्रयोग करते हैं और इसी मेथड से खुद के अंतर्मन की गहराई में सफलता पूर्वक ध्यान किया जाता है और इसे बॉडी एंड ब्रेन स्कैन मेडिटेशन का एक विभाग भी कहा जाता [संगीत] है अब आगे दूसरा प्रयोग है एकन पद्धति जिसे थॉट कटिंग और थॉट रिप्लेसमेंट प्रोसेस कहते हैं जापानीज न्यूरोसाइंस के मुताबिक दो प्रकार की इमेजिनेशन और दो प्रकार के थॉट होते हैं एक होते हैं इवोलेट थॉट्स जिसकी थॉट्स पैटर्स हमारे शरीर की बायोलॉजिकल संरचना से जुड़ी हुई होती है इस तरह के थॉट्स होते हैं जिसे हम सुन सकते हैं पर बिना कर्म किए इसे हम चेंज भी नहीं कर सकते या फिर इसे बंद भी नहीं कर सकते जैसे हमारे शरीर में चल रही दूसरी वॉलंटरी एक्टिविटी हृदय की धड़कन ब्लड फ्लो और वैसे कई सारी गतिविधि जो हमारे ब्रेन के द्वारा अंडर कंट्रोल स्थिति में चलती है पर हम उसमें डायरेक्टली इंटरफेयर नहीं कर सकते दूसरे थॉट्स पैटर्न होते हैं वॉलंटरी जो हमारे द्वारा और हमारे मर्जी के मुताबिक चलते हैं अब यह जो एक इन पद्धति है वह जापानी शिंतो समम कल्चर में सिखाई जाती है यह एक सोचने की पद्धति है जो हमारे मन पर संयम करने में बहुत उपयोगी है उदाहरण के दौर पर अगर हमारे मन में निरंतर कोई विचार आ रहा है जैसे कि कोई अश्लील चलचित्र देख या फिर कोई ऐसी चीज जिस पर हम संयम करना चाहते हो तो जब भी विचार आए तब उस विचारों से जागृत होकर सामने संयमित प्रश्न करना जैसे कि क्या करोगे वह चीज देखकर अगर वह जरूरत मैंने पूरी भी कर दी तो उसके बाद क्या 84 बार यह विचार स्वचालित तरीके से उत्पन्न होंगे जिसमें हमें यह एक इन पद्धति से जवाब देना होगा जब 50 मा विचार आएगा तब वह विचार इवोलेट नहीं पर वॉलंटरी होगा जि हम बड़ी ही आसानी से बिना कोई सामने जवाब दिए संयम कर सकेंगे इस पद्धति को जापानी शिंतो स्म कल्चर में एक इन पद्धति कहा जाता है जिसमें इवोलेट या फिर शरीर की जरूरत के विचार हम बड़ी ही आसानी से बिना कोई बाह्य कर्मा या फिर बिना कोई उस विचारों के वश में फंसे बिना ही उसे नाबूत कर सकते हैं जब यह पद्धति का उपयोग हम कुछ समय तक करते हैं तब यह स्वचालित विचार उत्पन्न होना ही नाबूत हो जाता है या फिर टो रिप्लेस हो जाते हैं और हम हमेशा एक फोकस्ड स्टेज में रहते हैं अब आगे तीसरा प्रयोग है डीप कन्वर्सेशन टॉक ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता कि उनका दुखी होने का असली कारण क्या है और इस कारण को ना ढूंढ पाने की वजह से दुख उनका एक स्वभाव बन जाता है जब दूख हमारा स्वभाव बन जाता है तब हम खुद को बदकिस्मत व्यक्ति समझने लगते हैं और लॉ ऑफ अट्रैक्शन के नियम के अनुसार जब भी हम इस तरह की सोच रखते हैं तब हम ऐसी दुखद परिस्थितियों को आमंत्रित करते हैं जिसके कारण और भी ज्यादा ख में डूबते जाते हैं इसी कारण वश आज एक सुखी इंसान दिन बदन ज्यादा सुखी और एक दुखी व्यक्ति दिन बदन ज्यादा दुखी होता जाता है जब यह दूख भरी अवस्था हमारे मन पर हावी हो जाती है तब हम चाहकर भी विशेष कर्म नहीं कर पाते जिसकी हमें आवश्यकता होती है जब भी आप ध्यान करने बैठे तो याद रखें कि एक उम्दा आत्मा संवाद आपको इस मनो स्थिति से बाहर निकाल सकता है उदाहरण के तौर पर सबसे पहले ध्यान में ऐसी चीजों के बारे में संवाद और चर्चा करें जो आपके पास शुभ और अच्छी हो जैसे कि परिवार व्यापार आपके द्वारा किए गए कुछ विशेष कर्म जो आपका आत्मविश्वास मजबूत बनाने में मददगार हो महत्व ऐसी वस्तुओं पर ध्यान करने से और उन अच्छी चीजों और एक अच्छे समय को याद करने से आपके मन के अंतःकरण में एक सकारात्मकता का जन्म होता है जो आपको बदकिस्मत व्यक्ति होने के अंधविश्वास से बाहर निकालता है हो सकता है यह प्रैक्टिस और आत्म संवाद शुरुआती दिनों में काम ना करें पर निरंतर अभ्यास के बाद यह संवाद निश्चित रूप से आपके आत्मविश्वास को और मन की आंतरिक सकारात्मकता को रूपांतरित कर सकता है जब यह चीज आपके भीतर सक्रिय हो जाए तब जाकर उन चीजों पर ध्यान और संवाद करें जो आपको वर्तमान समय में दुख दे रही हैं हो सकता है इस दूह के कांटे को ढूंढने के लिए आपको अपने मन की बहुत गहरी गहराई में एक डुबकी लगानी पड़े जैसे पांव में बहुत छोटा सा कांटा भी व्यक्ति के चलने के अंदाज को बदल सकता है उसी तरह मन की गहराई में छुपा असली दुख का कांटा भी हमारे स्वभाव हमारी बुद्धिमत्ता और हमारी सोचने की शक्ति पर प्रभाव डाल सकता है और जब यह आत्मा संवाद गहराई में उतरता है तब हमें वास्तविकता में पता चलता है कि वह दुख कितना छोटा और वह सुख कितना बड़ा है जो हमने पूरी जिंदगी में अनुभव किया हुआ होता है जब इस दुख रूपी गहरे कांटे को आप ढूंढकर कर्म करके उसका निदान करते हैं तब जाकर ऐसी अवस्था हमारे मन में जागृत होती है जिसमें हमें सुखद सोचने सुखद और खुश रहने या फिर उत्साहित रहने की जरूरत नहीं रहती क्योंकि हमारा मन अंदरूनी रूप से एक खुश मिजाज बन जाता है जिसे हिंदू शास्त्रों में सत चित्त और आनंद अवस्था कहा गया है नकारात्मकता यह एक ऐसी चीज है जो हमारे मन में जाकर अंदरूनी तरीके से बैठ जाती है और हम उसे वास्तविकता मानने लगते हैं अगर उदाहरण के तौर पर समझे तो कोई व्यक्ति जो दुखों के कारण आत्महत्या करना चाहता हो और उसने बहुत ही दृढ़ तरीके से संकल्प भी कर लिया हो पर जब वह व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है जैसे कि पानी में डूबना जैसे ही वह पानी में जाता है तब वह अपने आप को बचाने की कोशिश करने लगता है और बस जिंदगी जीने की भीख मांगने लगता है तो फिर कौन था वह व्यक्तित्व जो कुछ क्षण पहले संकल्प ले रहा था नकारात्मकता यह एक ऐसी चीज है जो व्यक्ति को अपने मन से कमजोर बना देती है देखिए दो चीजें हो सकती हैं या तो बाह्य परिस्थिति प्रबल हो सकती है जो व्यक्ति को कमजोर बनाए या फिर व्यक्ति कमजोर हो सकता है जो बाह्य परिस्थिति को उनसे भी अधिक बलवान समझ लेता है अंग्रेजी में एक कहावत है यू आर मच स्ट्रांग न योर थॉट्स हमारे नकारात्मक विचार ही हमें विशेष कर्म करने से रोकते हैं अगर देखा जाए तो हमारा शरीर इतना ऊर्जावान और बलवान होता है कि आधुनिक विज्ञान के मुताबिक जैसे मस्तिष्क की शक्ति हमारी होते हुए भी हम उसका पूरा उपयोग नहीं कर पाते उसी तरह हमारी शरीर की ऊर्जा भी हम पूरी तरह से उपयोग नहीं कर [संगीत] पाते अब चौथा प्रयोग है ब्रह्मचर्य दो प्रकार के माइंड होते हैं एक होता है कंट्रोल्ड माइंड जिसे बार-बार ट्रेन करने की जरूरत नहीं होती या फिर बार-बार सही रास्ते पर लाने की या बार-बार उसे याद दिलाने की कि हमारा लक्ष्य क्या है और हमें क्या करना है दूसरा होता है चंचल मन जिसे विज्ञान की भाषा में मंकी माइंड कहते हैं इस तरह के मन पर जितना भी कंट्रोल करने की कोशिश करो जितना भी उस पर ध्यान करके उसे सही दिशा में लाने की कोशिश करो वह थोड़े समय बाद अपना स्वभाव दिखा ही देता है और फिर से लोर स्टेट लेवल पर चला जाता है क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है सच और झूठ की परख तो हर व्यक्ति को समय के अनुसार होती है अगर कोई हमें रात को गहरी नींद से उठाए और काम करने को बोले तो हो सकता है हम वह काम टाल दें और नींद का विकल्प चुने अंदरूनी मन से हमें पता होता है कि कौन सा कार्य ज्यादा महत्त्वपूर्ण है काम या नींद तो फिर वह क्या चीज है जो हमें सच पता होते हुए भी सही कार्य करने से रोक लेती है विज्ञान के मुताबिक हर व्यक्ति के भीतर दो प्रकार की पर्सनालिटी होती है एक हायर स्टेट पर्सनालिटी और दूसरी लोअर स्टेट पर्सनालिटी हमारे जीवन में जो भी अच्छे अनुभव होते हैं जैसे खुशी मोटिवेशन उच्च बुद्धिमता प्रेम या अन्य अच्छे आंतरिक अनुभव जिन्हें हम सोचते हैं कि शायद यह अवस्था स्थाई हो जब ऊर्जा मस्तिष्क और उसके आसपास के चक्र में घूमती है उसे हायर स्टेट पर्सनालिटी कहते हैं दूसरी है लोअर स्टेट पर्सनालिटी जिसमें ऊर्जा की कमी के कारण वह ऊपर नहीं उठ पाती और नीचे के चक्र जैसे नाभि और मूलाधार में रहती है इसके भीतर और आसपास ऊर्जा घूमने के कारण व्यक्ति हर कदम पर निर्बलता आत्मविश्वास की कमी और कई सारे नकारात्मक इमोशन से जुड़ जाता है अगर इस समय के दौरान व्यक्ति कितने भी अलग-अलग प्रकार के ध्यान क्यों ना करें वह कुछ क्षण बाद फिर से उसी निर्बल स्थिति में प्राकृतिक रूप से लौट आता है अगर व्यक्ति के भीतर ऊर्जा यानी वीर्य की कमी हो तो वह ज्यादा देर तक हायर स्टेट पर्सनालिटी को अनुभव नहीं कर पाता इसके विपरीत अगर कोई व्यक्ति ऊर्जावान हो तो जैसे मैंने पहले बताया कि एक ऑटो कंट्रोल माइंड और हायर स्टेट पर्सनालिटी होती है जिसमें हमें बार-बार पुरुषार्थ करके खुद को मोटिवेट रखने या फिर खुद को कंट्रोल करने की जरूरत नहीं रहती वह अपने आप एक ऑटो कंट्रोल स्टेट पर ऊर्जा निवास करने लगती है फिर काम वासना कोई मजबूरी नहीं रहती कामवासना हमारे लिए एक विकल्प बन जाती है जिससे आनंद उठाना या ना उठ उठाना यह सभी विकल्प पर हमें ज्यादा पुरुषार्थ करके खुद को कंट्रोल भी नहीं करना पड़ता अगर इस अवस्था को आप थोड़ा सा भी अनुभव करना चाहते हैं तो कम से कम सात दिन का भी ब्रह्मचर्य आपको कुछ अलग अनुभव प्रदान कर सकता है पूरा योग शास्त्र ऊर्जा के नियम पर टिका हुआ है और ऊर्जा के कुछ सीधे नियम हैं तीन गुण वाले भोजन से तीन गुण वाली ऊर्जा बनती है ध्यान से ऊर्जा निर्गुण होती है और ऊपर की ओर दिशा पकड़ती है कुंडलिनी योग से जगती है तो फिर नींद से संग्रहित होती है प्रेम से विस्तारित होती है तो भय से सिकुड़ है काम वासना से ऊर्जा नीचे गिरती है और समाधि से एक विराट अवस्था में विलीन होती है अब आगे पांचवा और आखिरी प्रयोग है डू नथिंग जब आप मनो मन सोच लेते हैं और एक संकल्प ठान लेते हैं कि मन में जो भी आवाज गूंज रही है वह शरीर और मन की है और मैं इस शरीर और मन से परे और अछूत और पवित्र हूं और शरीर में आंखों के बीच ध्यान केंद्रित करके यह सोचे कि जो भी जरूरत खड़ी या पीड़ा हो रही है वह मेरी नहीं बल्कि इस शरीर की है उदाहरण के तौर पर अगर कोई ऐसा विचार या फिर कोई ऐसे व्यक्ति के बारे में विचार जो आपको बार-बार सताता है या फिर ब्रह्मचर्य के दौरान काम वासना की प्रबल इच्छा जो मस्तिष्क पर हावी हो जाती है अगर उस समय हम उसे बस सुने जैसे बस एक विचार और सामने खुद को मनाना या फिर खुद पर काबू करना जैसी चीज भी ना करें बस उसे सुने और प्रतिक्रिया ना दें फिर चाहे वह कोई भी चीज क्यों ना हो बस उसे आने देना है और बिना कोई प्रतिक्रिया किए बस आंखों के बीच ध्यान लगाकर बैठे जैसे हम ध्यान के माध्यम से एक जगह पर बैठे हो और शरीर और मन अपनी जरूरत के हिसाब से शोर कर रहे हो कुछ देर इस प्रकार का प्रयोग करने के बाद पाएंगे कि जो आंतरिक आवाज है वह शांत हो चुकी है और फिर से खुद पर काबू संपूर्ण रूप से हमारे हाथ में आ चुका है एक बात याद रखें खुद के विचारों से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह विचार बस एक विचार ही है ना उनका कोई वजन है ना ही उनकी कोई हैसियत कि वे हमारी मंजूरी के बिना शरीर के किसी भी भाग को हिला भी सके जैसे कृष्ण गीता में कहते हैं कि पहले इंद्रिय फिर इच्छा फिर मन और फिर कर्म अगर इसी साइकिल को आधुनिक भाषा में समझा जाए तो इंद्रिय यानी कि सेंस जो एक सेंसर की तरह हमारे मन यानी कि दिमाग को सिग्नल भेजती है फिर आगे वह सिग्नल को एक मालिक की तरह सही और गलत की समझ रखकर कर्म करना या फिर ना करना वह हमारे हाथ में होता है अब अंत में है मेडिटेशन मेथड जैसा मैंने शुरु में कहा चित्त वृत्ति निरोधा चित्त यानी माइंड स्टफ या फिर जीवंत चेतना वृत्ति यानी चेतना की वृत्ति या फिर उनकी दिशा और निरोधा यानी संयम आपने बुद्ध और एक राजा की कहानी सुनी होगी कि जब बुद्ध कुछ बात करते होते हैं तब राजा अपना पैर बिना किसी कारण और बिना किसी संयम के हलचल करवाता है इस कथा के पीछे का योगिक सार यही है कि जब तक आप अपने शरीर पर संयम नहीं पा सकते तब तक आप अपने मन पर नियंत्रण नहीं कर सकते अब यह जो मेडिटेशन है उसे हम आधुनिक भाषा में निश्चल निरीक्षण ध्यान विधि भी कह सकते हैं क्योंकि यह ध्यान खुली आंख से शुरू होता है और बंद आंख से पूर्ण होता है निरीक्षण का नियम है जब हम किसी वस्तु को ध्यान पूर्वक निरीक्षण की नजर से देखते हैं तब हम उस वस्तु में समा जाते हैं और जब हम किसी वस्तु में समा जाते हैं तब उसे ध्यान मग्न अवस्था कहा जाता है उस समय हमारा शरीर चल अवस्था में आ जाता है यानी कि स्टिलनेस स्टेट एक शांत और अंधेरे वाले कमरे में एक दिया जलाएं ध्यान रखें कि यह दिया हमारी नजरों के सामने एक लेवल में होना चाहिए जब हम एकाग्रता से उस दिए के सामने एक निरीक्षण की नजर से देखना शुरू करते हैं तब वह दिए का प्रकाश और दिए में एक स्थिरता नजर आती है धीरे-धीरे हमारे मन के विचार नाबूत होने लगते हैं और एक एकाग्र निरीक्षण स्थिति में हमारी नजर आ जाती है है कुछ समय इस दिए को देखने के बाद अपनी आंखें धीरे-धीरे बंद करें और निश्चल होने का प्रयास करें दी का प्रकाश आप एक गर्माहट और एकाग्रता ध्यान के माध्यम से अनुभव कर सकेंगे अब इस ध्यान को आप कभी भी खुली आंख से भी कर सकते हैं जैसे कभी भी किसी भी स्थिर वस्तु पर एकाग्र होकर ध्यान देना और उसी वस्तु में एक चित्त हो जाना अब इस ध्यान के कुछ अनुभव के बारे में बात करें तो आपने सुना हो कि हमारा शरीर इस धरती की तरह पंचभूत से बना हुआ है जिसमें धरती की तरह पानी और सात खंडों की तरह सात आंतरिक अंग होते हैं जब हम ध्यान के माध्यम से इस अवस्था में प्रवेश करते हैं तब हम पानी की तरह एकदम हल्का सा अनुभव करते हैं यह एक ब्रह्मलीन अवस्था होती है जिसमें हम अनुभव के माध्यम से पानी हवा शरीर का भार और हमारे विचारों की गूंज को अनुभव कर सकते हैं कुछ क्षण के लिए हो सकता है कि हम इस शरीर और मन से परे हो जाएं जैसे कि सांस बंद हो जाना इवोलेट विचार बंद हो जाना और शरीर का अनुभव छोड़ देना यानी कुछ ऐसा अनुभव कि शरीर बाहरी ब्रह्मांड में घुल गया हो शास्त्रों के मुताबिक यह एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति का शरीर इस ब्रह्म में लीन हो जाता है कुछ महीनों तक यह ध्यान करने के बाद आपको कुछ गहरे लाभ हो सकते हैं जैसे मैंने पीछे कहा कि दो तरह के मन होते हैं एक कंट्रोल्ड और दूसरा ऑटो कंट्रोल्ड दो तरह की पर्सनालिटी होती है एक हायर स्टेट और लोअर स्टेट जब यह ध्यान आप कुछ समय तक निरंतर करते हैं तब आपके मन में और शरीर में एक क्रांतिकारी बदलाव होता है फिर आपको खुद से परेशान होने की खुद पर बार-बार संयम करने की या फिर खुद को हर रोज सही गलत समझाने की जरूरत नहीं होती आपकी जो हायर स्टेट पर्सन लिटी होती है वह मन की उम्दा गहराई में जाकर स्थित हो जाती है जैसे कोई वृक्ष का बीज बदला गया हो और प्राकृतिक समय के अनुसार वह वृक्ष अपने फल भी कुछ अलग प्रकार के देने लगे जैसे हम खुद को ही एक सही तरीके से और अपने मर्जी के मुताबिक हिप्नोटाइज करते हैं बस कुछ उसी [संगीत] तरह h