क्या क्या गडबड़ियां दिख रही हैं आपको कैपिटलिजम में, पूझीवाद में? 70% of Americans वहाँ बता रहे हैं कि वो चाहते हैं कि उनकी जो country है उसमें कोई radical change आएं. वो लोग बोलते हैं हमें socialism ज़्यादा पसंद है capitalism से, America में. और इंडिया में भी मुझे यह लग रहा है कि हमारे देश में कोई pure economics को लेकर कोई pure right wing party नहीं है.
बेल आउट कल्चर है इस बल क्योंकि आपको कहना है कैपिटलिजम है ही ऐसा कि बेल आउट के चक्कर में क्या हो रहा है कि जो रोग कंपनिया हैं घटिया कंपनिया है जिनका आगे भी कोई फ्यूचर नहीं है अवरिज परसन है उसको लगता है कि अगर सरकार इन लोगों को बेल आउट कर रही है उस साल जितने बिलेनेर दुनिया में बने कभी ऐसा साल नहीं था कि इतने सारे billionaire एक साल में बने जैसे 2020 में हुआ प्राइवटाइटिशन को एक गाली की तरह एक एक इलजाम की तरह इस्तिमाल किया था रहे तो सब प्राइवट किये दे रहे हैं हाँ बिल्कुल पर यह बाराम नहीं होता कि वो पब्लिक सेक्टर में देखे कितना घाटा हो रहा है पर जब चाइना तेजी से एकनॉमिक रिफॉर्म्स कर रहा था 1990s में चाइना ने सौ मिलियन दस क्रोड लोग को फाइर किया था पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेस में तो बिग नंबर दस क्रोड लोग ताइवान आज की तारीख में आपने तीन देशों का जिक्र किया है स्विट्जलेंड ताइवान एंड वियत्नाम तीनों फनेंस के सा� तो इंडिया के context में ये मुम्किन है क्या कि हम sectors को identify करें, specialist को लेके आएं, policies में change करें और फिर उस पर act करें मेरे कहांसे हमारे सरकार से ये सब होगा नहीं भारत में सब जगह इस चीज पर बहुत बात होती है आर्थिक अस्मानता बढ़ रही है उसके सॉल्यूशन के तौर पर एक बड़ा रेडी मेट सॉल्यूशन सा बता जाता है जो बाइडन साब भी बोल रहा है कि अमीरों पे और टेक्स लगाओ बिल्कुल नमस्कार मेरा नाम सौरप दिवेदी है किताबवाला के एक और एपिसोड में आपका स्वागत है आज मिलने वाला है भरपूर रोचक और जरूरी ज्यान अर्थव्यवस्था के बारे में क्योंकि सुबे सवेरे ध्यान जाता है जेप पर जैसे ही दिन खर्चने निकलते हैं क हम और आप जो कमाते हैं उसके साथ अनिवार रूप से हमारा नेशन स्टेट उसकी पॉलिसीज भी जुड़ी हैं हम जो काम कर रहे हैं वो भी जुड़ा है और मामला सिर्फ अपने मुल्क की सरहत तक तो सीमित है नहीं कुछ बाहर से आता है कुछ बाहर जाता है इंपोर्ट एक्सपोर्ट जिसको बोलते हैं चालू भाषा में तो पूरी दुनिया की माली हालत पर नज़र रखनी चाहिए अब ये सब बातें कहने में आसान है पर असल में बड़ी जटिल होती है तो एक सज्जन है अर्थशास्त्री है इंवेस्टमेंट बैंकर है बहुत नामी कॉलमिस्ट है उन्होंने एक किताब लिखी और हमारे और आपके वक्त की जो सबसे बड़ी पहेली है, सबसे बड़ा सवाल है, उसका जवाब सत्रा अध्यायों के जरिये, यानी इतिहास, उसके सबक, वर्तमान और भविश्च के लिए क्या रूप रेखा हो सकती है, इसके तहीं देने की को और मॉगन स्टेडली के साथ लंबे समय तक काम किया अब अपना संस्थान चलाते हैं और रॉकेफेलर फांडेशन के भी करता धरता है बहुत-बहुत सौगत है आपका किताब वाला में सर थेंक यू रुचिर शर्मा जी पहला सवाल इस किताब के टाइटल को लेकर ही है क्या क्या गलबडियां दिख रही हैं आपको कैपिटलिजम में पूंजीवाद में अच्छा देखिए ये किताब मैंने इसलिए लिखी है क्योंकि अगर आप आज अमेरिका में देखेंगे और वहाँ के सर्वे देखेंगे पोल्स देखेंगे वहाँ पर लोग आपको ये बता रहे हैं तो जैसे जो सर्वे देखेंगे उधर 70% अमेरिका में बता रहे हैं कि वो चाहते हैं कि उनका उनकी जो कंट्री है उसमें कोई रैडिकल चेंज आए क्योंकि वह खुश नहीं है कि वह किस दिशा में उनका देश जा रहा है किस दिशा में वह उनकी एकॉनिमी जा रही है किस तरह का चीन गवर्नमेंट का ज्यादा इंटरवेंशन हां तो मतलब वह कुछ चेंज चाहते हैं जो भी स्टैब्लिशमेंट है जो भी ऑर्डर है आज में उसमें कुछ चेंज चाहते हैं और सबसे मुझे इंपोर्टेंट बात यह लगी कि अमेरिका में आज जो यंग लोग हैं अ कि ज्यादातर वह लोग चाहते हैं जब उसे यह सबाल पूछा जाता है कि आप क्या प्रेफर करते हैं कैपिटलिज्म की सोशलिज्म वह लोग सोशलिजम ज्यादा परसिदन थे कैपिटलिजम से अमेरिका में वाओ अमेरिका इस दे वर्ल्ड लीडिंग कैपिटलिज्ट नेशन फोर मेनी पीपल हम सब लोगों के लिए जो मतलब एक्जाम्पल है कैपिटलिज्म को वो बच्चमन से हमेशा वो मतलब एक्जाम्पल अमेरिका का रहा है पर अगर आज इतने सारे लोग आज के सिस्टम से नाखुश हैं तो इसलिए मैंने यह किताब लेखी कि यह क्या हुआ, what went wrong with capitalism कि आज इतने लोग अमेरिका में इतने नाखुश हैं। अब यह किताब का मेरे ख्याल से एक original angle ही है कि अभी तक और यह जो किताब के सारे reviews आए हैं वो भी इस बात के बारे में चर्चा करते हैं कि अभी तक जो भी सारी किताब यह लिखी गई हैं पे capitalism पे वो जादा capitalism पे ऐसी लिखी गई हैं कि capitalism एक बहुत ही खराब model है क्योंकि व अमीर अमीर होते जाते हैं और वहां पर ग्रीड बहुत होती है लालच बहुत है कैपिटलिजम में और उसको एक एविल की तरह पोर्ट्रेक्ट किया जाता है जो गरीब लोग हैं उनका ध्यान नहीं करते ज़्यादा तर लोग और जो लोग सलूशन आफर करते हैं वो है कि सर अमेरिका में वह बहुत ही डिस्टॉर्टेड फॉर्म कैपिटलिजिम है जैसे में किता में लिखा है कि यह कैपिटलिजिम नहीं एक तरह से यह सोशलिजिम ही है पर सोशलिजिम फॉर देड़ेज तो मैंने इसमें जैसे बोलते हैं अंग्रेजी में द फर्स्ट टू वापिस टू एडमिट प्रॉब्लम की आपकी प्रॉब्लम क्या है अगर आपकी आपका डाइग्नोसिस रॉंग है तो आपका सिलेक्शन भी रॉंग रह तो इसलिए मैं कितामे लगा कि जो प्रॉब्लम है आज कैपिटलिज्म की वो यह है कि आज का जो कैपिटलिज्म है वो जो फाउंडर्स ने उसके बारे में सोचा था उससे बहुत हट गया है और आज का कैपिटलिज्म में सरकार का जो एंवाल्मेंट है वो बहुत जादा हो इतिहास लेके 300 साल का यह argument present किया है दर्शकों को हम यहाँ पर यह बता दें कि आप यह ना समझिएगा कि इस किताब में सिर्फ अमरीका अमरीका की अर्थव्यवस्था और capitalism के बारे में बात की गई global order के वो top पे हैं उनका federal bank हो वहाँ के rate cut हो इतना connected है एक चीज दूसरी चीज इसमें रुचिर ने कई देशों की एकॉनमी के उधारन दिये जिनके वारे हम एक एक करके बात करेंगे और सबसे अधर मैं सारी जो आपने किताब में बातें गई उसको इंडिया के कंटेक्स में समझना चाहूँगा मेरे सामने ग्रेन विल आउस्टिन की किताब का एक कोट है जिसमें जवारलाल नेहरू और अम्बेटकर के बीच में एक डिबेट हो रही है नेहरू चाहते थे कि सेकुलर और सोशलिस्ट वर्ड प्रियंबल में आए है पर अम्बेट करने सको अपोज किया और जो कहा It is perfectly possible today for the majority people to hold the socialist organization of society is better than the capitalist organization of society, but it would be perfectly possible for thinking people to devise some other form of social organization, which might be better than the socialist organization of today or tomorrow. I do not see, therefore, why the Constitution should tie down the people to live in a particular form and not leave it to the people. दिन से इस विद्धि नाओ और अदरवाइस और उसके बाद हमने देखा कि एमरजेंसी के तौरान मिसेस गांधी ने सोचलिस्ट वर्ड जुड़वाया इंडिया की जर्नी के साथ से बताइए कि कब हम लोग वहीं 90 वर्ड समय में आया कि दिस इस कैपिटलिजम वह यू केंट बाय स्टेट का कंट्रोल नहीं है क्या बनेगा कितना बनेगा अ अंतहीन इंतजार नहीं है कि अच्छा फलाने का फोन होगा तो टेलिफोन लग जाएगा, सिलेंडर मिल जाएगा या कार मिल जाएगी, इंडिया ने वो कैसे टेस्ट किया कैपिटलिजम और वो जर्डी कैसी रही है?
तो पहले मैंने अपनी जर्डी और किताब की जर्डी इंडिया से शुरू करी है, तो आपने कहा, I think सबसे important बात यह है कि कैपिटलिजम असली में है क्या और सोशिलिजम असली में है क्या, इसका definition समझना मेरे ख्याल से important बात है. है तो मेरे लिए कैपिटलिज्म है कि आप लोगों को फ्रीडम दीजिए कि आप लोगों को डिसाइड करने जी कि वह क्या चाहते हैं एकनॉमिक फ्रीडम लोगों के पास है सोचलिज्म होता है कि सरकार आपके लिए डिसाइड करें कि आपको यह करना है या यह नहीं करना तो यह सोचलिज्म और कैपिटलिज्म का बहुत ही बेसिक लेवल पर डिफिनेशन है और वह में समझना चाहिए तो अभी जो कैपिटलिस्ट सिस्टम है हमारे पास इंडिया में वह अ काफी evolve हो रहा है अभी तक हम पूरी capitalist economy नहीं है पर इंडिया की अगर आप growth rate देखें तो independence से 1980s तक हम और देशों के मुकाबले बिशरते चले गई in terms of हमारा जो ranking होता था दुनिया में हमारी economy की size या per capita income देखिए वो गिरता चला गया 1950 से लेके 1980s तक 1980 के बाद इंडिया ने वापिस अपना come back शुरू किया और आज उबर के आया है कि इंडिया की economy आज दुनिया में fifth largest फिर से हो गई है पर जो मारा per capita income है which is कि अगर आप पूरा देखे population उसको divide करें जो हमारी income है उसको लेके तो अभी भी हमारी ranking दुनिया में 130 है 3000 dollar लेके तो जो इंडिया की जो journey है वो ऐसी रही है कि हमने independence के बाद बहुत देकेड्स लॉस हुआ है हमारा कि हम लोग ने हमारी एकॉनिमी और एकॉनिमी के मुकाबले बहुत पीछे रह गई और अभी कमबैक शुरू है 1990 से पर अभी कमबैक बहुत आगे हमें तरकी करनी है इस अभी देखिए कि 1980 में चाइना और इंडिया की एकॉनिमी और चाइना और इंडिया को जो पर कैपिटे इंकम था वो लगबग एक ही था आज चीन की एकानोमी हमसे चार गुना जादा उनकी पर कैपिटा इंकम है और उनके जो एकनॉमिक साइज भी इतना बड़ा है हमारे मुकाबले है तो अब हमें वापस वह जर्नी शुरू हुई है पर मेन पॉइंट ए किताब का भी है कि जितना आप लोगों को ज्यादा एकनॉमिक फ्रीडम दें जितना सरकार का एंवाल्वमेंट एकानोमी में कम रहे वह एक एकानोमी के लिए अच्छी बात है और जो वेस्टर ने नेशन्स हैं, अमेरिका और योरोप, वो उल्टा जा रहे हैं, वहाँ पर सरकार का involvement जादा बढ़ता चला जा रहा है, और उसके वज़े से उनकी economic growth rate, उनका जो अर्थविवस्ता है, उसमें अब जादा तक्तील नहीं आ रही, पर इंडिया में हमने ये economic freedom और more capitalist system adopt किया है, उ आपने पहले चेप्टर में एक sentence यूज़ किया है जिसका लब्बलू आब है कि जहां पे हमें economic freedom को चुनना था हमने welfare state पे बहुत जादा अपने आपको आशित रखा आज की तारीख में भी जब 2024 में मैं आपसे बात कर रहा हूँ तो कहने को capitalist है लेकिन उसमें अभी भी welfare के नाम पे आप remains of socialism कह लें एक किस्म का protection देना कह लें कोई उसको freebies कहता है कोई उसको affirmative action बहुत सारी चीज़ें हैं जो आप दे रहे हैं डारेक्ट चाहे वो कैश देना हो एग्रीकल्चर के सेक्टर में या स्टेट के लेवल पे या सेंटर के लेवल पे मकान बनवाना हो वो सब चीज़ें हो और एक सवाल बार बार पूछा आता है कि आपने मकान तो बनवा दिया आपने किताब में सब जगे लिखा कि लोग कैपिटलिजम से क्यों नाराज हो रहे हैं बहुत सर्वेज का आपने हवाला दिया और कहा कि इसलिए क्योंकि उनके बीच डिस्ट्रेस बढ़ रहा है उनको उसके बेनिफ कि ग्लोबल ऑर्डर में और इंडिया के कंटेक्स में भी वह बदल कि यह बहुत ज्यादा होचपोच हो गया है बहुत मिक्स हो गई है चीज है क्लायरिटी नहीं रही है क्या हुआ है हां तो मेरे ख्याल से अब यह जो आईडियोलॉजी है अमेरिका में भी इसमें बहुत होचपोच हुई है क्योंकि अमेरिका में भी मतलब काफी सालों तक ऐसे रहता था कि लेफ्ट पार्टी की पॉलिसी और कुछ है और कुछ है आज दोनों पार्टी में लेफ्ट और राइट में सरकार का रोल बहुत बढ़िया है जैसे ट्रम भी बात करते हैं तो वो चाहते हैं कि अब टैरिफ्स लगाया जाए जो ओपन फ्री मार्केट होता था एक जमाने का वो अब ओपन एक फ्री मार्केट नहीं उसका सपोर्ट नहीं कर रहे हैं वो लोग और इंडिया में भी मुझे यह लग रहा है कि ह उनकी बीच में भी अंतर जो है वो थोड़ा बहुत है पर इतना भी अंतर नहीं है कि कोई पार्टी इंडिया में बोल रही है कि हमें बिल्कुल सरकार के जैसे पहले मोदी जी ने कहा था जब वो आ रहे थे कि हमें minimum government चाहिए maximum governance और पिछले 10 सालों में उनने मतलब UPA के तुल कि उसमें थोड़ा बहुत कम किया है और ज्यादा पैसा खर्च किया इंफरस्ट्रक्चर बिल्ड करने में और मेरे कहाल से यह सही रास्ता है कि हमें इस इस स्टेज अपने डिवेलॉपमेंट के ज्यादा तर पैसा खर्च करना चाहिए इंफरस्ट्रक्चर बिल्ड करने में पर हमारे देश में भी ऐसा कोई राइट विं� हमें सारे पब्लिक सेक्टर यूनिट बंद करने चाहिए, प्राइवेटिजेशन करना चाहिए, हमें और फीडम देनी चाहिए लोगों को प्राइवेटिजेशन को एक गाली की तरह, एक इलजाम की तरह इस्तिमाल किया था, यह तो सब प्राइवेट किये दे रहे हैं हाँ, हाँ बिल्कुल, पर यह नहीं होता कि वो पब्लिक सेक्टर में देखे कितना घाटा हो रहा है, सरकार का कितना घाटा हो रहा है, टैक्सपेयर का कितना घाटा हो रहा है, इस पर यह ज़्यादा फोकिस नहीं आ रहा है, तो यह जो आइडिलॉजिकल डिवाइड और अभी जो अंतर है लेफ्ट और राइट के बीच में अमेरिका में हो या और देशों में हो एकनॉमिक्स को लेके वो गैप इतना जादा नहीं है और इशूस पर लेके काफी है इमिग्रेशन पर रिलिजिन पर लेके काफी गैप है पर एकनॉमिक्स पर जो अंतर है वो इतना जादा नहीं है इसमें पहले चेप्टर में तो आपने डिटेल हों बताया कि कैसे वो फेडरल बैंक आया देट हेमिल्टन एसर्चन एविथिंग फिर एक टर्म आता है दूसरे चेप्टर में की नेशन्स इकॉनमी और प्रिंसिपल वो थोड़ा सा आप विवार्ट को बता सकें कि क्या है क्योंकि इस concept का कीनेशियन economics is a school of thought that focuses on government intervention ये क्या है सर कीनेशियन am I pronouncing it right? no I am not sure what's the term here exactly you are talking about कीनेशियन हाँ केंजियन केंजियन हाँ केंजियन हाँ बिल्कुल आप देखिये साब भाजा चलिए ये भी सीख लिया है केंजियन हाँ केंजियन जी केंजियन कि जो जॉन मिनाट केंज थे मेरे ख्याल से पिछले सेंचुरी के सबसे मशूर एकॉनिमिस्ट थे और ये एकॉनिमिस्ट का जो थॉट प्रोसेस था ये 1930 के बाद बहुत मशूर हुआ आफ्टर दे ग्रेट डिप्रेशन क्योंकि जब ग्रेट डिप्रेशन हुआ था उसके पहले ज़्यादा मानना था अमेरिका में और काफी देशों में कि सरकार को अगर कोई मंदी भी आए तो सरकार को कुछ नहीं करना चाहिए कि मंदी में भी अपनी आप जो बिजनेस सर्वाइव करें करें जो बंद हुए और जो स्ट्रांग है वह सर्वाइव करेंगे और चलेक्शन एक नैचुल सेक्शन बिल्कुल बिल्कुल साइड टर्म तो वह पूरा कंसेंसिस था कि नैचुल सेलेक्शन होना चाहिए सरकार को कुछ नहीं करना चाहिए पर जब 1930 में इतना बुरा डिप्रेशन आया फिर थॉट प्रोसेस चेंज हुआ कि नहीं यह सरकार को कुछ करना चाहिए लोग जब अमेरिका में अनेंप्लॉयमेंट है अ वह 25-30% रेड हो गई तब आया कि सरकार को बिल्कुल कुछ काम करना चाहिए और उस टाइम जॉन मेनार्ट केंज हैं बहुत मशूर एकॉनिमिस्ट उस टाइम के उन्होंने कहा था कि जब मंदी आये तो सरकार को काफी पैसा इस्तमाल करना चाहिए और फिर उसके बाद जो है करने की जरूरत नहीं है तो वह था थॉट प्रोसेस जॉन मेनाट केइंस का उसके बाद यह बड़ा चेंज आया हमारे एकनॉमिक पॉलिसी में कि जब भी मंदी आए तो बिल्कुल यह हुआ कि सरकार को जाकर बेल आउट हां मतलब पैसा खर्च करें पर जॉन में भी यह कहा था कि एक बार जब तेजी आ जाए एकॉनिमी में तो फिर सरकार को कुछ ज्यादा करने की जरूरत नहीं है पर मैंने जो किताब में लिखा है कि अब जो है ऐसा हो गया है कि मंदी में भी सरकार बहुत खर्च करती है और तेजी भी आए तो मतलब सरकार मतलब खर्ची खर्च करती है कभी ऐसे रहता ही नहीं है कि सरकार जो है बोले कि अब तेजी आई है तो चलो हम अपना बैलेंस थोड़ा बढ़ाते हैं थोड़ा सर्पलस रन करते हैं वो जमाना गया आप तो ही डेफिसिट दिखते हैं मंदी हो या तेजी हो बेल आउट कल्चर है जो कि आपको कहना कैपिटलिजम है ऐसा कि बेल आउट के चक्कर में क्या हो रहा है कि जो रोग कंपनियां हैं घटिया कंपनी है जिनका आगे भी कोई फ्यूचर नहीं है जॉम्बी टर्म भी आपने इस्तेमाल किया थोड़ा बहुत ही इंपोर्टेंट चीज है कि 1980 के पहले अमेरिका में यह सोचना था कि अगर कोई प्राइवेट सेक्टर की कंपनी हो अगर वह किसी मुश्किल का सामना करें तो उसको बंद कर जाना चाहिए और अ और सरकार का रोल है कि वो इन चीजों में कोई दखलंदाजी ना करे, no interference, वो होता था, फिर 1984 में एक अमेरिका का काफी बड़ा बैंक था, उसको अमेरिकन सरकार ने बचाया, और वो पहला बहुती महत्रपूर्ण step था, जब किसी बड़ा बैंक को सरकार ने जाके बचाया, उ वह बहुत ही इंपोर्टेंट चेंज था क्योंकि उसके बाद जब उन्होंने एक बार वह किया उसके बाद हर प्रेसिडेंट सेट हुआ और उसके बाद हर बार कोई बैंक या कोई फिनांचल इंस्ट्यूशन किसी भी परिशानी से गुजरा तो उस टाइम अमेरिका की सरकार तो ये bailout culture जो है 1980 से शुरू हुआ तो जैसे पिछले अब क्या हो रहा है कि जैसे पिछले साल भी अमेरिका में कोई एक bank था silicon valley bank वो एक bank था जिसमें काफी tech sector है काफी अमीर आदमी है tech sector की उनकी deposits उदर थे पर वापर जो है वो bank थोड़ी परशन में पड़ा तो फिर से American सरकार ने जाके वापर उस bank को बेल आउट किया तो यह बेल आउट कल्चर से मैंने मैंने बोला इसमें दो चीजें इसके वजह से नेगेटिव कॉनसिक्वेंसें हैं अगर आप देखिए एक तो है कि आदमी को लगता है जो आवरेज परसन है उसको लगता है कि अगर सरकार इन लोगों बड़े बड़े धन्ना सेटों का तो करजा सरकार माफ कर रही है हम गरीबों से एक एक इंस्टॉलमेंट वसूलने पे उतारू है इस आर्ग्यूमेंट ठीक है तो एक तो वो आर्ग्यूमेंट हुआ और पर दूसरा आर्ग्यूमेंट एक एकनॉमिक आर्ग्यूमेंट भी है क deadwood जैसे किलाते हैं हम इसको अगर आप इतना deadwood को alive रखें तो आप जो बहुत और जो companies हैं आप उनको फिर बाहर रख रहे हो तो ये जो companies जिनको आप जिन्दा रख रहे हो इनका नाम एक तरह से zombie companies है ये zombie term जो है ये जपान में जब जपान के economy काफी गिर रही थी तो जपानी सरकार ने बहुत पैसा खर्च किया था और काफी यह जो कंपनीज है इनको कैसे बंद नहीं किया जाए और यह भर्षा डर रहता है अगर यह कंपनी बंद हो जाएंगी तो अनेंप्लॉयमेंट बढ़ जाएगी और लोगों अपनी नौकरी खो देंगे ठीक है अगर आपको यह आर्ग्यू कि इस दौरान आपको जो कॉंसेक्वेंस आपनी समझ देखिए कि वह बहुत सारी कंपनीज हैं जो आना चाहती है जिनको आप भारती जगह ले सकती है इजाक्टी तो यह टर्म जपान में वह था उस टाइम अमेरिका में अगर आप अमेरिकन मीडिया में तो अमेरिकन लोग हम नहीं करते हैं सब काम और उस टाइम जो अमेरिकन कंपनीज थी जो जॉम्बी कंपनीज थी वह अगर जॉम्बी कंपनी अमेरिका में पूरा शेयर सिर्फ 2% आज जो है जॉम्बी कंपनी अमेरिका में 20% है 20% कंपनी को जॉम्बी कंपनी के लाइट है और ये जॉम्बी टर्म है क्या ये टर्म है कि ये कंपनी हैं जो 3 साल तक लगातार उनकी आमदनी इतनी नहीं है कि वो अपना करजा चुका सकें तो इसलिए उनको बार-बार बैंक या मार्केट जाना पड़ता है नया कर्जा लेने के लिए चीप लोन सब लोगों सब लेते जाएंगे और यह जो काफी है यह सेंट्रल बैंक हो यह सरकार हो वह लोन को अब इस टेस्टिंग देते रहें आपने एटीज का अमरीका का जिक्र किया और पहली बार जब उन्होंने है कैसे इस आदमी को इंटरप्रेट किया जाए हिंदुस्तान में गांजे की तलब रखने वाले कहते हैं कि इस कमबक्ती वजह से हमारे यहां गांजा इलीगल हो गया पर जो पर रोनल्ड रीगन द एंबेसडर ऑफ क्रूअल फॉर्म ऑफ कैपिटलिजम द वन वह इंचोड लेस्ट गवर्नमेंट इंटरवेंशन और वह इ थे क्योंकि वह बात करते थे कि लोगों को हमें एकनॉमिक फ्रीडम देना चाहिए है मार्केट पर सलूशन है और उनका जो पर्सनलिटी थी मुझे बहुत पसंद आई थी और मुझे याद है कि जब पहले जब राजीव गांधी भी गई थे अमेरिका 1985 में और रेगन से मिले उनका काफी capitalist रूप था और heart से मैं भी capitalist हूँ तो मुझे बहुत अच्छा लगा था पर जब मैं किताब लिख रहा था और मैंने उनका record ज़्यादा देखा तो मैं लगा उनकी बात और कुछ थी और जो काम उनने किया था उसमें बहुत बड़ा अंतर था एक तरह तो जैसे हमने बताया कि वो बात कर रहे थे कि market को ज़्यादा power दें और सरकार का role कम हो पर उनके भी जब 8 साल वो power में थे तो government का जो role है वो बढ़ता चला गया वो कम नहीं हुआ तो वो बोल कुछ और रहे थे और जो उनकी सरकार और कुछ कर रही थी regulations बढ़ रहे थे intervention बढ़ रहा था exactly regulation बढ़े intervention बढ़ा और government spending भी उनके time और बढ़े थी वो defense पे काफी spend कर रहे थे पर उनने कुछ ज़्यादा कम नहीं किया तो tax tax cut थोड़े काटे उने अमीर के tax cut काटे थे तो अमीर के taxes जब काटे तो लगा कि अरे यह तो देखो ज्यादा प्रो मार्केट हो गए हैं ज्यादा प्रो बिजनेस हो गए हैं तो यह डिस्टिंक्शन भी मैंने कितार में लिखा है कि प्रो बिजनेस और प्रो मार्केट में बड़ा अंतर है मार्क प्रो मार्केट हो तो आपको कंपेटिशन एंकरेज करने चाहिए आपको जो स्मॉल मीडियम साइज बिजनेस है उनको ज्यादा एंकरेज करने चाहिए पर अगर प्रो बिजनेस हो तो जो बड़े उद्योगपति हैं आपकी पॉलिसी उनके फेवर में जाती है फिर तो इस पर बड़ा अंतर है और यह हमें इंडिया अ भारत में भी सरकार को समझना चाहिए कि प्रो बिजनेस और प्रो कंपेटिशन में बड़ा अंतर है। किसी एजाम्पल से समझा सकते हैं यह बात इंडिया की कंटेक्स में। नहीं किसी भी सेक्टर में मैं चाहता हूं कि ज्यादा कॉन्सेंट्रेशन नहीं होना चाहिए। जैसे कि किसी भी सेक्टर में सिर्फ दो या तीन प्लेयर से ज्यादा होने चाहिए। यह मेरा मानना है। कि अ नहीं इन नाम ले लेंगे ना हमारे जैसे दर्शकों को समझने में आसानी हो तो मैं नाम इसमें ले देंगे आप ने इंडिस्ट्री बता दीजिए कि अच्छा तो हम समझ रहे हैं तो क्या हो रहा है नहीं तो इन टर्म्स अगर अभी जैसे टेक्नोलॉजी सेक्टर या पूरे मार्केट में उदर यूएस में सिर्फ पाँचे कंपनी आज डॉमिनेट कर रही है यह सर अमेरिका में बहुत टाइम से नहीं हुआ है कि जो वहां पर माइक्रोसॉफ्ट गूगल एपिल यह जो कंपनीज है इनका डॉमिनेशन बहुत बढ़िया है इनका इंडिया में भी जो शेयर गूगल और बाइक और फेसबुक और यह सब कंपनी ले रही है कि यह बहुत ज्यादा शेयर ले रही है और यह इंडियन कंपनीज को काफी टॉप कंपेटिशन दे रही है और इंडियन की मीडिया कंपनी इनके वजह से भी काफी कमजोर हो रही है तो मेरा क्योंकि इनका ग्लोबल डॉमिनेशन इतना हो गया है और उनके पास इतना पैसा बन गया है कि अब यह पैसा किसी भी और कहीं भी फैक सकते हैं तो इतना सारा डॉमिनेशन कं कि सिर्फ 45 कंपनीस को करना और वह भी अमेरिका में नहीं वह सारी दुनिया में करना मेरे लिए कैपिटलिज्म के लिए काफी खतरा है क्योंकि कैपिटलिज्म को कंपेटिशन एंकरेज करना चाहिए इसमें मार्केट कैपिटलिज्म की बात इन्होंने जो interest rates हैं बहुत low रखी, in terms of कि America में, almost zero थी, exactly, almost zero थी, और interest rates तो zero करना मतलब कि लोगों को पैसा free में देना, और वो लोग कौन पैसा इतना उठा सकते हैं, जो जिनके bank से अच्छे connections हो, और bank भी बोले कि चलो ये तो बड़ी company हैं, इनको तो पैसा free दे सकते हैं हम, और आप सब्सक्राइब करें और जो बिजनेस है उसमें पैसा कम लगाएं तो यह फिनेंचलिजेशन टर्म में यूज किया है कि जब इजी मनी होता है तो ज्यादा पैसा जो है वह इन चीजों में जाता है गलत चीजों में जाता है जब पैसी कीमत इतनी कम होती है जाए पर और यह यह इजी मनी आ बीजाता है यह जो जॉंबी कंपनी के हमने बात करी इनको कैसे जिंदा रखें वो सब पैसा उसमें जाता है कई जगह किताब में आया है कि वेन यू आर इंचॉरिंग की मनी का फ्लो रहे तो यह भी देखिए कि वहीं पर जाकर तो नहीं अटक रहा है जहां पर जाता रहा है वह ठीक से डिस्ट्रिब्यूट हो नहीं एक सेंटेंस इसमें दो इंट्रेस्ट रेट्स आप पर हैप्स इन हैं इन्हेरेंटली बोरिंग द ड्रामा देट फ्री मनी के निस्टर अप इज एपिक यह थोड़ा इंडियन कंटेक्स बताएं कि कैसे आ तो यह बात मैंने समझाई है कि आप इंट्रेस्ट की बात करते हैं तो बोलते हैं कि लोग आज से क्या होता है तो मैंने बोला कि अगर आप दुनिया में देखें तो जब इंट्रेस्ट रेट्स बहुत हाई होती थी 1980s में तो दुनिया भर में सिर्फ सौ बिलिनेर थे आज देखें दुनिया में तो 3000 बिलिनेर हैं और बहुत जो बिलिनेर हैं इन्होंने अपनी काफी जो आमदनी करी है इनकी हुई है बिकोज इंट्रेस्ट इतनी लोग लो रहे हैं कि जब आप इतना पैसा एक पिपल बॉरो मोर्ड स्पेंड मोर नहीं आप और यह जब आप इतना पैसा मतलब फैक्को एकोनोमीज पर और इतना पैसा करो तो कुछ लोग जो है उनकी आमदानी बहुत ज्यादा ही बढ़ती है जिन जिनको एक्सेस हो इस पैसा का तो इसलिए मैंने लिखा है कि इतने सारी बिल्लियनेर हो गए हमारे लेवल प्लेट फील्ड नहीं हां लेवल प्लेट फील्ड नहीं है तो यह मतलब और मैंने यह भी बोला इस इस किताब में कि देखो कैपिटलिजम के वजह से इनेकॉलिटी बढ़ेगी यह तो कैपिटलिजम का एक फीचर है पर हमेशा यह फीलिंग रहनी चाहिए आम आदमी को कि ओपर्चुनिटी में इकॉलिटी है आउटकम में इकॉलिटी नहीं हो क्योंकि जो आ और यह सबसे बड़ी खराब बात रही है कि अभी कि बहुत लोग अमेरिका में फील कर रहे हैं कि उनके पास opportunity नहीं है इन टर्म्स अफ इकॉल opportunity नहीं है तो यह सबसे बड़ी प्रॉब्लम हो गई है opportunity की हम बात कर रहे हैं इंडिया की context में हम देखते हैं कि बहुत ही पॉलिटिकली भी एक transition का दौर चल रहा है बहुत ही new voices new demands आ रही है और एकॉनमी को लेकर भी बहुत सवाल पूछ जा रहे हैं कि सही दिशा में जा रहे हैं क्या है कुछ कोर्ट करेक्शन जरूरत है जब भी कि एक डीमोनटाइजेशन की बात होती है आपने उसका भी किताब में जिक्र किया कि आप किस तरीके क्या-क्या स्टेप्स लेते हैं लोग जीएसटी की बात होती है और उसके बाद को विड की बात होती है एंड देन यू अफ टॉप बॉट द सर्वियल रही थी क्या तो यह एक्सप्लेंट करें जरिक लॉजिक है तो मेरा यह मानने कि इस पार्ट जो को विड पर स्टेप उठाए गए यह स्टेप कि इसे उठाएगे क्योंकि सरकारों को यह अपने में बिलीव था कि हम कितना भी पैसा स्पेंड कर सकते हैं को विड की रिलीफ के लिए तो जैसे जब यह पैंडेमिक हुआ 2020 में पहले भी पैंडेमिक हुए थे सौ साल पहले कुछ हुआ था आज एजिया में 1950 में भी हुआ था जिस टाइम हमने कभी ऐसा कदम नहीं उठाए था कि सारी एकॉनोमीज को मैंने बंद कर दिया पूरा बिजनेस अमें धन्ता बंद कर दिया और इसलिए नहीं उठाए थे क्योंकि उस टाइम हमें लगा अ लग रहा था सरकारों को कि अगर हम पूरा धंदा बंद करेंगे तो लोग अपनी आमदनी कैसे करेंगे लोग अपना जीवन कैसे गुजारेंगे घर बैठकर अगर उनके पास कोई पैसा नहीं आ रहा हो इस बार सरकारों पर सरकारों ने अपने आप इतना अधिकात था उनको कि नहीं कुछ नहीं होता हम तो पूरी अकाउनमी बंद कर सकते हैं और घर को और घर बैठे लोगों को चेक भेज देंगे कि जो उनकी आमदनी काम से होती थी वह वह घर बैठकर वह कमा पाएं अब इंडिया में हमने इतना नहीं कर पाए पर अमेरिका में यूरोप में ऐसी बहुत पॉलिसीज हुई अब मेरा यह मानत है कि यह ऐसे कभी इस ऐसे लोग कर सकते हैं क्या कि आप बतला लोगों को बोलो आप आप घर बैठो आपको हम पैसा भेज रहे हैं और और यह हो जाएगा उनके पास काफी आमदनी थी पर उनने कमाए और उस साल जितने billionaire दुनिया में बने कभी ऐसा साल नहीं था कि इतने सारे billionaire एक साल में बने जैसे 2020 में हुआ तो ये जो perversion हुआ ये जो हुआ इसके वज़े से मैंने in fact जो किताब का idea था ये pandemic में ही आया था तो इसलिए मतलब ये सर्यल मुझे लगा कि ये ऐसा नहीं हो सकता कि आप लोगों को बोल दो कि आप घर बैठो आपको हम चेक भेजेंगे और इसके वज़े से कोई consequence नहीं होगा और उसके बाद हमें देखा क्या consequences हुए कि उसके बाद inflation बहुत बड़ा America में और सबसे पहली ब क्योंकि मतलब लोग काफी तंग थे कि हमें इतना इंफ्लेशन से गुजारा करना पड़ा बाइडन से नरिध मोदी पर आते हैं अभी पिछली दिनों एक खबर आई कि लेटरल एंट्री में सरकार ने विज्ञापन निकाला फिर वहां की रिजर्वेशन में नहीं है तो उसको कैंसल किया गवर्नमेंट ने सरकारी भर्तियों में देरी स्टेट गवर्नमेंट के लिए और सरकारों का आकार घटना चाहिए ये कैपिटिलिजम का और कैपिटिलिजम के जरीए प्रोग्रेस का मूल आधार है इंटरवेंशन कम हो, गवर्मेंट का साइस कम हो एक लाइन आप लिखते हैं सब बेच देंगे ये तो, सब माल कमाने में लगे हुए हैं कंसर्वेटिव्स कास्ट पबलिक एम्प्लोईज एज लेजी इंकॉंपिटेंज सरकारी माल समझ रखा है क्या?
गोया सरकारी माल किसी और का और सरकारी माल मतलब ढिलाएगा रे यार बड़ा सरकारी रभईया मतलब सोस्त ढीलासा है ये जो एक बड़ी डिबेट है ब्यूरोक्रेसी ब्यूरोक्रेसी का इंटरवेंशन या प्राइवेट कर दिया जाए जो मैंने तोरी दे पहले आपसे कहा भी की इसे एक गाली की तरह स्थमा रहे है जबकि आप अगर देखें आप यूपी और एंडिया एक किस्म की कंटिन्यूटी है, इक्नॉमिक पॉलिसीज में 19 और वर्ष कोई ड्रास्टिक चेंज नहीं दिखता है, हाउ डू यू लुक एट इट, क्योंकि आगे के चेप्टर्स में भी इस पर बात होती है, आपने डेविट ब्रुक्स को भी कोट किया नहीं तो मैंने बस यह लिखा है जैसे इंडिया में भी कि अगर आप देखो कि हम कितना पैसा स्पेंड करते हैं उसकी आउटकम क्या है जी तो और यह लोगों को कैसे तंग करता है इन टर्म्स ओफ दाइट देट इंडिया में हम इतना पैसा सर्च करते हैं ऑन रेगुलेशन कंप्लायंस पर इसका जो आउटकम है वह इतना खराब हुआ है और सो माइस ऑफ बिलीफ इसकी गावर्नमेंट का रोल होना चाहिए किसी एकानोमी में पर उसका बेर मिनिमम पर रोल होना चाहिए एकानोमी पर सो इन टर्म जो पर दो पॉइंट यह मेकिंग है इस थैंक अगर इंडिया की जो बिरोक्रिसी है अगर आप भी मतलब उसे इंटरफेस करें तो आप देखिए कि मतलब आजमी उससे कितना तंग है कितनी तानाशाई है और कितना तंग है उससे तो देख रोल हैस टू बी मिनिमाइज्ड आज थिंग वेट इन टर्म्स अप इस सरकार ने एक किसी भी सरकार ने ऐसे कोई कदम नहीं उठाए हैं जिससे अ बिरोक्रिसी का रोल इस एकॉनिमी में जैसे इंप्रूव हो जैसे मैं चाइना की बात करी किताब में अब एक चीज चाइना के बारे में लोग कम जानते हैं हम सोचते हैं चाइना जो है कोई कम्यूनिस्ट कंट्री है वहाँ पर स्टेट उसको सब चलाता है पर जब चाइना 10 करोड़ लोग को उनको बोला था कि आप जाएए तो इस एक बिग नंबर दस करोड़ लोग 1990s में और बोला था कि आप जाके जहाँ आपको नौकरी मिले पर हमारा public sector बहुत बड़ा है हम ऐसे नहीं चला सकते और उनको private sector में भेजा drastically they reduce the size yes of the state तो मेरे ख्याल से तो वही है कि हर country को state की जरूरत है पर उस state को कैसे target किया जाए कैसे use किया जाए that is very important रुचिर जी मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि एक private individual या जो expert हैं अलग-अलग domain के वो government के साथ आके काम करें policy formation में और उसके better result दिखें because they have a specialization आपने इसका एक example दिया है ताइवान के context में to build a semiconductor industry that could compete worldwide ताइवान recruited Morris Chang, a graduate of MIT and veteran of Texas Instrument ताइवान आज की तारीख में आपने तीन देशों का जिक्र किया है स्विट्जलेंड, ताइवान और वियत्नाम तीनों फनेंस के सापसे बहुत अच्छे अच्छे और अभी उभरते हुए अच्छे और किस तरह से 1970s, 80s तक उनकी हमारी जैसी स्थिती थी ताइवान की लेकिन उन्होंने knowledge पे, research पे कुछ चीज़ों पे dedicated focus किया GDP का एक बड़ा हिस्सा उस पे खर्च किया and now they are standing in world order तो इंडिया की context में ये मुम्किन है क्या कि हम सेक्टर को आइडेंटिफाई करें, स्पेशलिस्ट को लेके आएं, पॉलिसीज में चेंज करें और फिर उस पर एक्ट करें. मेरे क्यांसे हमारी सरकार से इस सब होगा नहीं. In terms of that, हमारी सरकार की capability है इस सब को करने में, यह काफी limited है. तो in terms of yes, मैं चाहता हूँ कि जो हमारा private sector है, वो research and development पे और spend करें, क्योंकि इंडिया में देखेंगे जितना हम spend करते हैं, research and development पे, वो काफी कम है, compared to Taiwan and other countries and all that.
और जो सरकार कर सकती है करे पर सरकार जो आपने इंडियन गावर्मेंट की केपिबिलिटी देख रखी है मुझे उनसे कुछ ज्यादा उम्मीद नहीं है कि वो ऐसा कर पाएगी मैंने टाइवान के एक्जाम्पिल इसलिए कोट किया है कि अगर आप टेक्नोलॉजी का इस्तमा पर वो मतलब अपने 20% को लेके काफी efficient outcome achieve कर पाती है इसलिए मैंने टाइवान का example quote किया है मैंने स्विजिलेंड का example तो इसने quote किया है कि वो दुनिया की सबसे अमीर देश स्विजिलेंड है और it's also counted among the five happiest countries तो मतलब ultimately तो हमें क्या चाहिए हम चाहते हैं कि एक देश खुश रहे और उनकी लोग खुश रहे और अमीर भी रहे पर वापर भी जो सरकार का role है वो काफी लिमिटेड है कंपेर्ट टू आदर यूरोपियन कंट्रीज और वहां पर एक अच्छी बात है और वह इंडिया के लिए देखना है कि उन्हें बात है चीज कि आफ फॉर्म ऑफ डी सेंट्रलाइजेशन इस स्विचिलेंड में कोई सेंट्रल प्राइम मिनिस्टर सेंट्रल लीडर की बात का नाम कभी नहीं सुनेंगे पर वहां पर जो हर कैंटोन है स्विचिलेंड में अलग प्रोविंसेंस एक प्रोविंसेंस हैं वह अपना एरिया में स्पेशलाइज करती है इंडस्ट्री का भी वैसी डिसेंट्रलाइजेशन है कि एक एरिया में चॉकलेट बन रही है, दूसरे में घड़ी बन रही है, तीसरे में कुछ और बन रहा है। अबस्टलूटली, तो इसलिए मतलब बहुत ही फैसिनेटिंग मुझे स्टोरी लगी स्विजिडेंड की, कि उन्होंने कैसे डिसेंट्रलाइज मॉडल करके, और अब वे बिकम दे तो यूगी हां अगर अगर में ट्राविल करेंगे और जैसे मेरे कार्थ चब्बीस वांप पर प्रोविंसेंस है इस प्रॉविंस में जाएंगे आप तो आपको वह बताएंगे कि उनकी प्रिशालिटी अलग है और वह अपने डिसिजिन लेती है यह नहीं वेट करती कि जूरिक से या उनके कैपिटल से कोई बर्न से कोई इंस्ट्रक्शन आए तो मुझे वह मॉडल स्विचिलेंड का बहुत पसंद आया है और इसलिए मैंने उसके बारे मे कि एन वायरमेंट वेर दिखाई थी इसे अधर क्योंकि आपने अमरीका कंटेक्स में भी लिखा कि कैसे सदन स्टेट की तरफ ज्यादा इंडिस्ट्रीज मूव कर रही है और उनको अब एक एज मिल रहा है इंडिया में भी क्योंकि एक बड़ी डिबेट है इंडिया में और यह मोदी जी भी कहते थे जब वह पहले सरकार में आए थे पर उन्हें उससे वह थोड़ा चेंज हो गए जब वह पहले सरकार में आए थे तो वह बोलते थे अबाउट कंपेटिटिव फेडरिलिज्म देखिए कि इंडिया और चाइना में यह सबसे बड़ा difference है कि जो पूरी चाइना की society है, it's very homogeneous कि एक ही तरह के लोग हैं उधर, हान डाइनिस्टी को लेकिन, इंडिया की मतलब बहुत ही diverse heterogeneous society है, आपको यह मालव है कि जो तामिलनाडू में काम करता है, वो कर्नाटका में नहीं काम करता है, कर्नाटका में जो काम करता है, जो कोई culture है, कर्नाटका का केरला से बहुत different है, तो इसलिए इंडिया में, इंडिया has to be run as a culture, कि एज़ अ कम्यूनिटी ऑफ स्टेट्स ज्यादा सेंट्रलाइजेशन लेकर अगर आप इंडिया को रन करेंगे तो आपको सक्सेस नहीं लिखें था थोड़ी देर पहले एक सवाल के जवाब में स्विड्जिलैंड और स्वीडियन का जिक्रा आ रहा था एक बिल्कुल यहां से देखने पर यूटोपियन सा लगता है अरे साहब यहां पर तो टैक्स इतने ज्यादा है फिर भी एवरेज इनकम बहुत फिर चलिए बट मोबाइल भी नहीं है बाबदादाओं को पास पैसा था तो उनका गुजारा ठीक से चल रहा है थोड़ा यह समझाइए क्योंकि आपने पूस्ट पीपल लुकेट स्कैंडिनेवियन कंट्रीज फ्रीड एंड डैनमाक एंड नॉर्वेयर प्राइमली सोशलिजम भी है लेकिन वह कैपिटलिजम का बड़ा आदर्श सा रूप दिखता है अगर मैं ठीक-ठाक समझ पाया हूं थोड़ा बताइए नहीं तो सुझन डिफरेंस यह कि मैंने बोला कि स्वीडिन में भी इन टर्म हम उसकी बहुत बात करते हैं जैसे अमेरिका में मतलब लोग बोलते हैं स्वीडिन जैसा बनना चाहिए हमें ज्यादा और मेरी बात है कि स्वीडिन ने भी अगर देखिए कि उनकी सरकार बहुत ब और स्वीडिन में भी एक अच्छी बात है कि अब वो बिलीव करते हैं कि सरकार को उनकी आमदनी जितनी होती है उससे ज़्यादा स्पेंड नहीं करना चाहिए तो इसलिए वो जब 2008 का बड़ा क्राइसिस हुई थी ग्लोबल फिनेशल क्राइसिस स्वीडिन ने उसको काफी अच्छा संबारा था क्योंकि जो उनकी सरकार थी उस टाइम वो उनके पास दे रैन आप बजट कोई ज़्यादा डेफिसिट नहीं था तो इन टर्म्स वो मेरा इमानिक है कि अगर हमें स्वीडन का मॉडल देखना है तो हमें पूरी तरह से देखना चाहिए कि उनकी सरकार ने क्या किया, उनकी सरकार how much they spent on in terms of किस पे spend करती है, उसका outcome क्या है, पर स्विडजन का मॉडल मुझे जादा पसंद है क्योंकि they have not faced any major economic crisis and उनका सरकार का role is much smaller compared to even Sweden now and they have been able to achieve better कि रिजाइट्स उनकी उनकी पर कैपिट इंकम स्वीडिन से हायर है उनका वेल्ट स्वीडिन से हायर है उनकी और उनका जो है और यह रिवांट टू स्टेडी यू डोंट एफ्ट टू स्पेंड योर फॉरचून ऑन पढ़ाई तो मतलब सरकार को जो है अपनी प्राइटी से रखनी पड़ती है जैसे प्रॉब्लम यह हो गई है अमरीका में और यूर्प की काफी देशों में कि चाहिए सरकार सब कुछ करें पढ़ाई पर खर्च करें अ green energy पे खर्च करे, defense पे खर्च करे, China के साथ मतलब मुकाबला करना है उस पे खर्च करे, तो मतलब इसका कोई end नहीं है नफ, कि सरकार सब पे खर्च करे, जैसे फ्रांस की, आप बात देखें today, फ्रांस में सरकार का जो spending है, वो 60% of GDP है, 60%, अगर फ्रांस का, तो ये मतलब कैसी capitalist economy है, जैसे सरकार का role इतना बड़ा है, कि वो 60% है, है और वहां पर सबसे खराब बात है मैं मैं भी फ्रांस में था पैरिस के ओलिंपिक्स देखने के लिए कि दो चीज मुझे लगी होता है एक कि इतने इतना स्पेंड करने के बाद लोग अभी तक सरकार से वह नाखुश हैं वहां पर रायट होते रहते हैं प्रोटेस्ट होते रहती हैं ओलिंपिक्स के पहले भी हुआ और दूसरी बात कि फ्रांस में सारा पार सिर्फ पैरिस में है तो पैरिस का जो पॉपिलेशन है वो किसी और सेकंड सिटी से 6 या 7 गुना ज्यादा है तो और कोई सिटी फ्रांस में कुछ उनको ज़्यादा कुछ लाम मिलते हैं नहीं है सारा पार सारा कॉंसेंट्रेशन पैरिस में रहता है तो ये कैसा economic model है लोगों के लिए और लोग खुश नहीं है अगर लोग खुश हैं इस model से तो मैं बोलो चलो ठीक बात है बार बार बात करें distrust की और प्रोटेस्ट होते रहते हैं खुश नहीं है तो और वहां पर गावर्नमेंट स्पेंडिंग सिस्टी परसेंट तक पहुंच गई है एज एडिटीपी वियत्नाम का मॉडल कैसा है क्योंकि वह भी एक टर्न अरांड स्टोरी है यू एफ सेटिड की चीन के बारे में बहुत बा जो चाइनर ने सई कदम उठाए थे 1980 और 1990 में वो आज वियेटनाम उठा रही है तो जैसे चोटी-चोटी चीजें हैं कि एक चीज मुझे काफी लगी थे टुड़े जो सारी अगरबति अंदर में खरीद रहे हैं वह सब वियेटनाम में बनती है तो तो अ कि विट्नाम का जो मैनुफाक्ट्रिंग सेक्टर है इंडिया से बहुत ज्यादा मजबूत है और जो और जितना पैसा विट्नाम लेती है बहुत है इन टाइम आज विट्नाम का अगर आप एफडीआई देखें तो वह तीन चार परसेंट है शेयर और जीडीपी इंडिया का वह नंबर है वह सिर्फ एक परसेंट है तो विट्नाम का एक कम्यूनिस्ट कंट्री कहाती है एक तरह से और पुलिटिकल मॉडल होता है पर एक पर एकानोमी का मॉडल उनका और कुछ है वह लोगों को काफी एकनॉमिक फ्रीडम देना, कंपनीज को ज़्यादा एकनॉमिक फ्रीडम देना, तो उनका एकनॉमिक मॉडल और कुछ है। भारत में सब जगह इस चीज़ पर बहुत बात होती है, आर्थिक अस्मानता बढ़ रही है। उसको भी एक गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता है कि पैसे का concentration हो रहा है आप लिखते हैं The talk of abolitioning billionaires is utopian, dangerous and impractical Nations that tried to eliminate an economic or financial elite ended up only concentrating power and wealth in a political elite What is the way forward then? क्योंकि अंतता एक political system है जो nation state को साथ में रखता है जिसमें सब लोगों को hope मिलती रहे सब लोगों को लगे कि मेरी प्रोग्रेस हो रही है, मेरे लिए मौके हैं और जब वो कम दिखती है तो एक टर्मॉयल होता है, प्राइमर्डली वो एकनॉमिक रीजन से होता है, आइडेंट्री के रीजन और बाकी सारे रीजन उसके बाद आते हैं, इंडिया की केस में इस ची और पूरा फिर कैपिटिलिजम का मॉडल ही क्रिटसाइज होने लगता है कि और लाइन क्या होती है अमीर और अमीर हो रहे हैं गरीब और गरीब हो रहे हैं आलाकि फैक्चुली ये गरीब औ गलत है क्योंकि जो पार्टी लाइन के ऊपर आए हैं वो संक्या बड़ रही है आप इसको कैसे देखते हैं नहीं तो मैं मतलब बोलता हूं कि इंडिया में जैसे मतलब एक कहावत है कि जो भी आप इंडिया के बारे में बोलें उसको उल्टा भी साइड होता है जी तो तो इं मैं मैन्यूफैक्ट्रिंग में फार्मासूटिकल में टेक्नॉलॉजी में तो मुझे लगता है कि इंडिया में यह यह अच्छी बात है कि इतना जो वेल्ट क्रिएशन हो रहा है इंडिया में यह इतना कॉंसेंट्रेशन नहीं हो रहा सिर्फ दो या तीन उद्योगपुति के साथ यह काफी सारी बिल्लियनर इंडिया में उबर के आ रहे हैं तो मैं तो मुझे यह बात इंडिया के बारे अच्छी लगती है कि कि इतने सारे जो नए लोग आ रहे हैं वह डिफरेंट सेक्टर से आ रहे हैं और यह नहीं कि सिर्फ एक दो लोगों को सारा लाभ इसका पर इट बिकमिंग पॉलिटिकल इशू जिसमें एक बड़े वर्ग को यह कहा जा रहा है कि देखो वह तो लोग तो हमेशा इल्जाम लगाते हैं पर और और ठीक बात भी है, मतलब इसके वज़े से ये जो बड़े उद्योगपति हैं, ये भी थोड़ा मतलब कंट्रोल में रहते हैं, और जो मतलब सरकार है, वो भी थोड़ा conscious हो जाती है कि देखें हमारे policies ऐसा ना होएं कि वो सिर्फ इनको लाब मिले, तो ये तो democracy की अच्छी ब कि जो डिफरेंट सेक्टर से आ रहे हैं और नई नई लोग आ रहे हैं नई नई बिलियनेर बन रहे हैं नई नई सेक्टर्स में वह बिलियनेर उबर के आ रहे हैं तो और मुझे लगता है कि जो काफी लोग इंडिया में जैसे मुझे दो चीज इंडियो के बारे में लोग काफी वह अभी इसके बारे में बताऊंगा एक है कि इंडिया में जो काफी जो रिच लोग हैं अ कि देश टिवर एटिट्यूड है इट इस टिल वन ऑफ एस्पिरेशन कि हम चाहते हैं कि हम भी उनके जैसे बने जैसे काफी और देश जापने मैं घूमा हूँ ब्रसिल हो साथ आफ्रिका हो वहाँ पर जो अमीर लोगें उनके तरफ बहुत नराज़गी है और इतनी नराज़गी है कि वहाँ पर अगर कहीं घूमते हैं तो बहुत सारे बॉडी गार्ड के साथ घूमते हैं जादा मेंगी कार नहीं खरीदते कि उनके जो घर होते हैं वह चुपचाप से कई घर बनाते हैं जैसे कोई देख ना पाए कि वह कि उनके पास कितनी वेल्थ हो इसे इंडिया में मेरे ख्याल से जब लोग इतना खुला खुला घर बनाते हैं बड़े-बड़े बिल्डिंग बनाते हैं यह भी तो एक सिगनल है कि इंडिया में हम इन चीजों को हम एडमाइर करते हैं और जो देश है वहां पर हम यह सब चीजें नहीं कर पाते लोग तो इसका बड़ा मुझे बहुत important signal दिखने में आता है कि जो बाकी लोग वह देखकर एसपायट ज्यादा हो रहे हैं बजाएं इसके घरे साथ यह क्या एक्साइट है क्योंकि मतलब जो और देश है वहां पर यह बिल्कुल प्रैक्टिकल नहीं हो सकता कि आप ऐसी जाकर इमारत बनाएं या बिल्डिंग बनाएं वहां पर अगर आप ऐसा करेंगे तो बैकलैश बहुत रहेगा वैसे इंडिया में मुझे मैं देखता हूं हां कोई दस परसेंट लोग बोलेंगे यह ठीक नहीं है वह ठीक नहीं है पर 90% लोग आज सिंह मतलब अधिक जाते हैं कि वह भी वह बनना चाहिए तो एस्पिरेशन इंडिया में काफी अभी तक positive है interesting final argument is which is the title of final chapter as well the only way out is through दूब के पार जाना है आप लिख रहे हैं when money is not free people treat it with more respect make more careful investment decisions and do fewer stupid things what are those stupid things in Indian context which we can avoid हाँ तो मेरा यह यह बात है कि जब आप लोगों को बहुत फ्री पैसा देते हो जब आपकी इंट्रेस्ट जीरो होती है तो लोग उसको जाकर फिर स्पेंड करते हैं मतलब या मतलब स्पेकुलेट करते हैं स्टॉक मार्केट में ज्यादा स्पेकुलेट कर दिया जाकर उसको आप इसी गलत धंदे में लगा दिया बिना ज्यादा सोच समझ के तो इसलिए मतलब वह मेरे ख्याल से चीज होती है कि जब आप अपना पैसा इन चीजों लगा रहे हो जिससे कोई ज्यादा फायदा नहीं है पर आप सिर्फ पैसा लगा रहे हो कि और पैसा उससे बने तो वह जो इसलिए वह चीज मेरे ख्याल से अमेरिका में का काफी हुई और इंडिया में तो इस किताब में इसलिए यह सब बताया कि हम इंडिया में क्या-क्या सीख सकते हैं क्योंकि यह इन लोगों तो काफी कैपिटलिस्ट अकाउनिमी बनाई है और और देखना पोस्ट कैपिटलिस्ट वर्ल्ड इन वे पर हम अभी तक एसपाइर करें टो बिकाम अ कैपिटलिस्ट नेशन तो हम इन देशों से क्या सीख सकते हैं, क्या गलतिया करी है नो ने और क्या साई कराएं इस देशों से क्या सीख सकते हैं, क्या गलतिया करी है नो ने और क्या साई कराएं इस देशों से क्या सीख सकते हैं, क्या गलतिया करी है नो ने और क्या साई कराएं इस देशों से क्या साई करी है नो ने और क्या साई कराएं चाइनर ने क्या ठीक किया उसके बाद क्या गलतिया करें कि चाइनर में पिछले चार पांच साल इतनी मंदी आई है तो ये सब मैंने I have tried to cover in the book लास्ट कोशिएन Can dollar be replaced? बिलकुल तो मेरा ये मानना है कि अगर आप इतिहास देखें तो हर सौ साल कोई नई currency आई है जो दुनिया भर को पूरा dominate करा है तो सौ साल पहले dollar के पहले होता था sterling जी उससे सौ साल पहले होता था French Currency, उसके पहले Spanish, उसके पहले Portuguese और यह सिलसला जारूबा है मेरे कहा था Dutch Currency को लेके कि हर सौ साल के लिए कोई ना कोई Currency रहती है जो दुनिया भर में सबसे acceptable हो, जिसमें सबसे ज़्यादा trust हो और वो Currency पिछले सौ साल से American Dollar रही है और अभी तक American Dollar है और हमारे lifetime में हमेशा American Dollar बहुत ही important Currency रहेगी पर मुझे लग रहा है कि यह जो पॉलिसी अमेरिका फॉलो कर रही है इसके वजह से जो फेट है डॉलर में वह हलका हलका कम हो रहा है अब अमेरिका के यह लाभ में कि कोई जादा कोई कंपेरिटर नहीं है उसके सामने जैसे चाइना एक टाइम हो सकता था पर चाइनी की चा� कि यूरोप के अंदर मतलब हमेशा झगड़ा पड़ता रहता है कि मतलब यूरोप यह शुरू नहीं हो पाया यह शुरू नहीं हो पाए तो इसके वजह से डॉलर काफी और चल रहा है पर अमेरिका में भी सबसे बड़ी गलती जो अमेरिका अभी कर रहा है वह यह बिलीफ है कि हम कुछ भी करें कितना भी पैसा स्पे मतलब रेशन को जाकर कोई सैंक्शन कर दें उनको निकाल दे सिस्टम से यह इन सारे एक्शन का कोई कॉन्सेक्वेंस नहीं रहेगा और इसका मैंने वार्णिंग दिया कितार में कि यह बात आपको समझना बहुत ही गलत बात है क्योंकि इतिहास में हर सौ साल कोई ना कोई न� अपना पैसा डॉलर में कम डाल रहे हैं तो वो प्रोसेस है वाले बिगान इंटरेस्टिंग प्रोसेस शुरू हो गया और हमारा रुचिर शर्मा जी से परचे भी हो गया है तो हमने और इन भाई साबने यह तैकिया है कि जब यह अगली मर्तबा भारत आएंगे अमरीका में फर्राटे से सो मीटर की दोड़ भी लगाते हैं, अभी आपने जिक्र सुना ही कि पैरेस उलंपिक में हुआ आये हैं, डिमोक्रेसी पे लगातार दिल्चस्ट टिपडियां करते हैं, पिछली किताब भी इंडियन डिमोक्रेसी और ट्रेवल के एरधिक एरधी बिल्ट की गई जल्द आए जैसे पिछली किताब भी हिंदी में तो आ चुकी है बिल्कुल इफेक्ट रिमेंबर करेक्ट जी तो एनी प्लान टू ब्रिंग इट इन इनियल लैंग्वीजेस यह इस पर अभी डिस्क्रेशन जा रही है यह बुक अभी तो रिलीज हुई है पर मैं चाहता हूं कि इसको लोग पढ़े पहले को मिनबॉक्स में जरूर बताइए और यह भी बताइए कि इन दिनों क्या पढ़ रहे हैं आप देखते रहिए लंटा अ